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Excise Policy Case: क्या सही है केजरीवाल की गिरफ्तारी? वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी ने खड़े किए इतने सवाल, क्या जवाब दे पाएंगी CBI-ED

Delhi Excise Policy Case दिल्ली शराब घोटाला मामले में हुई सीएम केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कई सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने पाकिस्तान की न्यायिक प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसा भारत में नहीं हो सकता है। उन्होंने कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीबीआई और ईडी को लेकर क्या-क्या कहा है। इस रिपोर्ट में सबकुछ पढ़िए।

By Vineet Tripathi Edited By: Kapil Kumar Updated: Wed, 17 Jul 2024 02:06 PM (IST)
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शराब घोटाला मामले में सीएम केजरीवाल की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई हुई। फाइल फोटो

विनीत त्रिपाठी, जागरण, नई दिल्ली। Delhi Excise Policy Case आबकारी घोटाला से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई की गिरफ्तारी व इसके बाद रिमांड आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान पाकिस्तान की न्यायिक प्रक्रिया का जिक्र हुआ।

सिंघवी ने किया पाकिस्तान की न्यायिक प्रक्रिया का जिक्र

केजरीवाल की तरफ से जिरह करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने केजरीवाल को चार दिन पहले ही पीएमएलए के तहत नियमित जमानत दी है। हमें गर्व है कि हम पाकिस्तान नहीं हैं जहां तीन दिन पहले इमरान खान रिहा हुए, सबने अखबार में पढ़ा और उन्हें एक और मामले में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन, हमारे देश में ऐसा नहीं हो सकता।

सिंघवी ने कहा कि सीबीआई के पास गिरफ्तार करने के लिए कोई सुबूत नहीं था। सीबीआई ने सिर्फ इस रूप में गिरफ्तारी की थी कि अगर केजरीवाल बाहर आते हैं तो यह एक अतिरिक्त गिरफ्तारी है। केजरीवाल के पक्ष में तीन रिलीज ऑर्डर हैं।

सिंघवी ने कहा कि जून में रिहाई और पुनः आत्मसमर्पण का कार्य ही ट्रिपल टेस्ट की पूर्ण संतुष्टि को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते उन्हें अनिश्चित काल के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा करना उचित समझा है।

सिंघवी ने तर्क दिया कि केजरीवाल को मनी लांड्रिंग मामले में नियमित जमानत मिल चुकी है, जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। जिस पर अदालत में निर्णय होगा। वहीं, केजरीवाल को शीर्ष अदालत से अंतरिम जमानत मिल चुकी है। ऐसे में सीबीआई की गिरफ्तारी इसी का परिणाम हैं।

14 मार्च 2023 को केजरीवाल को समन भेजा गया

सिंघवी ने कहा कि पांच तारीखों को देखना जरूरी है। 17 अगस्त 2022 में हुई प्राथमिकी में केजरीवाल का नाम नहीं है। इसके बाद 14 मार्च 2023 को केजरीवाल को समन भेजा गया और मैं समन पर पेश हुआ। सीबीआई ने बीते 240 दिनों में मुझसे पूछताछ की जरूरत नहीं समझी।

सिंघवी ने कहा कि वर्ष 2024 में तीन महीने बीतने के बाद चुनाव आचार संहिता लागू होने पर 21 मार्च को ईडी ने केजरीवाल को गिरफ्तार किया। केजरीवाल न्यायिक हिरासत में थे और इसी बीच सीबीआई ने कस्टडी की मांग की।

सीबीआई पूरे मामले में 26 जून को सक्रिय हुई

सिंघवी ने कहा कि सामान्य ज्ञान के अनुसार, इस परिस्थिति में केजरीवाल को गिरफ्तार करने की जरूरत नहीं थी। वह भी तब जब निचली अदालत ने 20 जून को केजरीवाल को नियमित जमानत दे दी। सीबीआई पूरे मामले में 26 जून को सक्रिय हुई। अचानक से केजरीवाल सीबीआई के लिए अहम हो गए और वह उनकी कस्टडी की मांग करती है।

सिंघवी ने कहा कि 12 जुलाई को केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से ईडी मामले में अंतरिम जमानत मिल गई। ऐसे में सीबीआई की गिरफ्तारी के कारण केजरीवाल वहीं पर हैं, जहां थे, क्योंकि जांच एजेंसियां किसी भी हथकंडे से केजरीवाल को सलाखाें के पीछे रखना चाहती है।

सिंघवी ने क्या रखें अपने प्वाइंट

सिंघवी ने तर्क दिया कि ऐसे में मेरा प्वाइंट यही है कि दो साल तक चुप बैठने वाली सीबीआई केजरीवाल को अदालत से राहत मिलने के बाद क्यों सक्रिय हुई। सिंघवी ने कहा कि मेरा दूसरा प्वाइंट यही है कि आप स्वतंत्रता के सबसे व्यापक मौलिक अधिकार और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए केजरीवाल के साथ व्यवहार नहीं कर सकते।

सिंघवी ने कहा कि सीबीआई अनुच्छेद 21 के तहत प्रक्रिया का पूर्ण उल्लंघन कर रही है। केजरीवाल पहले से ही ईडी की हिरासत में हैं। न्यायिक हिरासत में होने पर लगभग दो साल बाद सीबीआई सीआरपीसी की धारा 41ए के संदर्भ में रिमांड पर केजरीवाल से पूछताछ करने के लिए आवेदन करती है।

सिंघवी ने कहा, केजरीवाल की बात नहीं सुनी गई

सिंघवी ने कहा कि आखिरकार केजरीवाल आतंकवादी न होकर एक मुख्यमंत्री हैं। केजरीवाल को आवेदन की प्रति कभी नहीं मिलती और कोई नोटिस नहीं दिया गया है, केजरीवाल की बात नहीं सुनी गई। अदालत ने सवाल किया कि क्या सीबीआई में औपचारिक गिरफ्तारी नहीं होती?

सिंघवी ने कहा कि सीबीआई के आवेदन को ट्रायल कोर्ट द्वारा उसी दिन अनुमति दी जाती है, जबकि केजरीवाल को कोई सूचना दिए बिना या उनकी बात सुने बिना। यह कोई डाकघर प्रणाली नहीं है। मुझसे पूछताछ करने के बाद अगले दिन एक और आवेदन दिया जाता है कि कृपया गिरफ्तारी की अनुमति दें। हैरानी की बात यह है कि आवेदन में ही धारा 160 का जिक्र है। अब अचानक केजरीवाल आरोपित बन गए। कैसे, क्या कब, कुछ नहीं।

सिंघवी ने खड़े किए कई बड़े सवाल

सिंघवी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट केवल एक ही कारण के आधार पर रिमांड की इजाजत देता है कि वह संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा है। सिंघवी ने कहा कि अगर केजरीवाल पूछताछकर्ता से कहें कि तुम भाड़ में जाओ तो मैं जवाब नहीं दूंगा, क्या अदालत कह सकती है कि आपको गिरफ्तार कर लिया जाएगा? मैं अपनी बात समझाने के लिए एक अतिवादी प्रश्न पूछ रहा हूं। अनुच्छेद 22 क्या है? लोग भूल रहे हैं, फिर हम संवैधानिक अधिकारों के बारे में ये सब किस बात का व्याख्यान दे रहे हैं।

सिंघवी ने कहा कि केजरीवाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना के आदेश में बहुत दिलचस्प वाक्य है कि पूछताछ अपने आप में गिरफ्तारी का आधार नहीं हो सकती। यह एक उल्लेखनीय मामला है। ऐसा नहीं है कि आप आंखों पर पट्टी बांध लें और गिरफ्तारी होने दें।

सिंघवी ने कहा कि अंत में जांच एजेंसी की प्रार्थना है कि कृपया केजरीवाल को गिरफ्तार करने की अनुमति दें। यह कैसी प्रार्थना है? मैंने इस प्रकार का आवेदन कभी नहीं देखा है, जिसमें यह दिखाने का एक भी प्रयास नहीं किया गया कि आप किस धारा के तहत गिरफ़्तारी करना चाहते हैं। कोई कारण भी नहीं बताया गया। उसी दिन, बिना मुझे सूचना दिए या मुझे सुने, इसकी अनुमति दे दी गई।

सिंघवी ने कहा कि सीबीआई ने केजरीवाल से 25 जून को तीन घंटे तक पूछताछ की है। उसके बाद बिना कोई कारण बताए एक साल पुराने समन पर वे अब धारा 41 के तहत गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। जबकि यह नहीं बताया कि कैसे, कब और कौन सी गिरफ्तारी।

सिंघवी ने कहा कि 25 जून को आवेदन दिया गया, उसी दिन आदेश पारित कर दिया गया और भगवान की थोड़ी सी दया के लिए धन्यवाद, केजरीवाल को अगले दिन आदेश मिल गया। सिंघवी ने कहा कि निचली अदालत कुछ इस तरह से काम कर रही है।

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सिंघवी ने कहा कि मान लीजिए कि केजरीवाल कहते हैं कि 100 करोड़ का कोई सवाल ही नहीं है और इसके बारे में कुछ नहीं जानता। तो जांच एजेंसी तर्क देती है कि संतोषजनक जवाब नहीं और यह अपराध की संतुष्टि है। सिंघवी ने तर्क दिया कि जैसे ही केजरीवाल कहते हैं कि मैं निर्दोष हूं, तो जांच एजेंसी कहती है कि यह एक टालमटोल वाला उत्तर है। यह पूछताछकर्ता का व्यक्तिपरक दृष्टिकोण नहीं है। अंततः न्यायाधीश ही निर्णय करेगा कि सत्य क्या है। किसका सच? मेरा उत्तर सत्य या आपकी इच्छा सत्य?

सिंघवी ने कहा कि 12 घंटे या उससे कम समय में उसे गिरफ्तार करना कैसे जरूरी है? क्यों? कोई जवाब नहीं, जबकि आवेदन में कहा गया कि गिरफ्तारी की अनुमति दी जाए। जज को इसे फेंक देना चाहिए था क्योंकि यदि अदालत इसकी अनुमति देता है और कहता है कि जाओ और उसे गिरफ्तार करो, तो यह वैध हो जाएगा।

सिंघवी ने कहा कि केजरीवाल न्यायिक हिरासत में जेल में हैं तो जांच एजेंसी पूछताछ कर सकती है और उन्हें गिरफ्तार करने की जरूरत ही नहीं है। इसीलिए इसे अपनी सुरक्षा के तौर पर की गई गिरफ्तारी का नाम दिया गया है, ताकि केजरीवाल स्वतंत्र न हो सकें। सिंघवी ने सवाल किया कि आखिर इन प्रविधानों का मास्टर कौन है। निश्वत तौर पर जज है न कि पुलिस।

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