Delhi: सफदरजंग में बोन मैरो प्रत्यारोपण का पहला मरीज स्वस्थ, इन बीमारियों से पीड़ित लोगों को मिलेगी राहत
सफदरजंग अस्पताल में बोन मैरो प्रत्यारोपण कराने वाली पहली महिला पूरी तरह स्वस्थ है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि मरीज अब घर जा सकती है। उसे जल्द अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी। अस्पताल के बोन मैरो प्रत्यारोपण के प्रभारी डॉ. कौशल कालरा ने बताया कि मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित 45 वर्षीय महिला मरीज को एक अगस्त को अस्पताल में भर्ती किया गया था।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। सफदरजंग अस्पताल में बोन मैरो प्रत्यारोपण कराने वाली पहली महिला पूरी तरह स्वस्थ है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि मरीज अब घर जा सकती है। उसे जल्द अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी। एम्स के बाद यह सुविधा शुरू करने वाला सफदरजंग अस्पताल सरकारी क्षेत्र का दूसरा अस्पताल है।
अस्पताल के बोन मैरो प्रत्यारोपण के प्रभारी डॉ. कौशल कालरा ने बताया कि मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित 45 वर्षीय महिला मरीज को एक अगस्त को अस्पताल में भर्ती किया गया था। बोन मैरो प्रत्यारोपण के लिए मरीज के शरीर से ही स्टेम सेल लिए गए थे। पांच अगस्त को उसे मरीज में प्रत्यारोपित किया गया।
क्यों संवेदनशील होते हैं 12 दिन?
प्रत्यारोपण के बाद मरीज के बोन मैरो से गुणवत्तापूर्ण रक्त बनने में 12 दिन समय लगता है। इस कारण प्रत्यारोपण के बाद लगभग दो सप्ताह का समय मरीज के लिए बहुत संवेदनशील होता है। इस दौरान मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे संक्रमण का खतरा रहता है।
दिल्ली के दो प्रमुख अस्पतालों में यह सुविधा शुरू होने से ब्लड कैंसर, अप्लास्टिक एनीमिया व थैलेसीमिया जैसी बीमारियों से पीड़ित विशेषकर गरीब व मध्यवर्ग से संबंधित मरीजों को राहत मिलेगी। डाक्टरों का कहना है कि बोन मैरो प्रत्यारोपण थैलेसीमिया का एक मात्र कारगर इलाज है। सरकारी अस्पतालों में इस सुविधा के अभाव के कारण काफी संख्या में मरीज इस उपचार से वंचित रह जाते हैं।
रिपोर्ट इनपुट- संतोष कुमार सिंह