Delhi Floods: यमुना ने चूमी अतीत की चौखट, इतिहास के झरोखे से दिल्ली और जमुना
आज लाल किले के आसपास यमुना के पानी को बढ़ता देख हर किसी के माथे पर चिंता की लकीरें हैं लेकिन ये तो प्रकृति ने अपने पुराने रास्ते पर ही गति पकड़ी है। वास्तव में अपनी पुरानी राहों पर यमुना फिर से लौटी है। अब समय चक्र के साथ खतरे का निशान 205 मीटर पर मानकर उस मानक के हिसाब से जनजीवन भले रचबस गया हो लेकिन...
By Manu TyagiEdited By: Pooja TripathiUpdated: Sat, 15 Jul 2023 03:14 PM (IST)
यमुना नदी...जमुना कह लीजिए। इसके किनारे कई संस्कृतियों, सभ्यताओं और शहरों के गवाह हैं जो अस्तित्व में आए, विकसित हुए और बाद में लुप्त हो गए। आज जब यमुना अपने पुराने स्थानों पर लौटी है तो राजधानी उत्सुक है, उत्साहित है और अपनी जमी-बसी गृहस्थी के अस्त-व्यस्त हो जाने के भय से सहमी भी है।
लेकिन कुछ भी कहें वास्तविकता तो यही है कि दिल्ली की असली टाउन प्लानर यमुना है। पांडवों से मुगलों तक और मुगलों से अंग्रेजों तक सभी को इससे मोह तो रहा, वक्त के साथ सभी ने यमुना के बदलते रास्तों के साथ अपना विस्तार कर लिया। आज जब यमुना अपने उफान पर है तो इतिहास की लहरों में समाई इसकी स्मृतियां स्वयं ही लौट आई हैं, इन्हीं स्मृतियों को प्रस्तुत कर रही हैं मनु त्यागी :
पांडवों से लेकर मुगलों और अंग्रेजों तक को दिल्ली खूब आकर्षित करती थी, क्योंकि यहां अरावली की गोद में यमुना नदी की शीतलता मिलती थी। आचार्य चतुरसेन ने अपने कहानी-संकलन ‘बड़ी बेगम’ में बहुत ही खूबसूरती से इस बात का जिक्र किया है कि किस तरह से गर्मी की तपिश में झुलस रहे मुगल बादशाह शाहजहां को यमुना की शीतलता दिल्ली खींच लाई।
वो लिखते हैं कि अभी दिल्ली नई बस ही रही थी। आगरा की गर्मी से घबराकर बादशाह शाहजहां ने यमुना के किनारे अर्धचंद्राकार यह नया नगर बसाया था। आज जहां लाल किले तक यमुना अपने पुराने रास्ते पर पहुंच गई है और आपदा में फंसी दिल्ली को राहत देने के लिए तमाम राहत दल जुटे हैं, उसी स्थान पर कभी मुगल शासन काल में उनकी रानियां यमुना के घाटों पर सैर के लिए ढलती शाम के दृश्य देखने के लिए नाव पर बैठकर निकलती थीं। इतिहास की पुस्तकों और उस दौर के किस्सों पर बनी पेंटिंग्स में इसके दृश्य भी देखने को मिलते हैं।
यमुना के अस्तित्व पर बनी है रिंग रोड
आज लाल किले के आसपास यमुना के पानी को बढ़ता देख हर किसी के माथे पर चिंता की लकीरें हैं, लेकिन ये तो प्रकृति ने अपने पुराने रास्ते पर ही गति पकड़ी है। वास्तव में अपनी पुरानी राहों पर यमुना फिर से लौटी है।अब समय चक्र के साथ खतरे का निशान 205 मीटर पर मानकर उस मानक के हिसाब से जनजीवन भले रचबस गया हो, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि यहां यमुना बहती थी। आज राजधानी की सबसे वयस्त रिंग रोड के स्थान पर कभी यमुना ही थी। इतिहास इसीलिए होता है कि आप कभी भूगोल की, प्रकृति की वास्तविकता को नहीं भूलें और उसके अस्तित्व को अपने साथ लेकर ही आगे बढ़ें।
दरअसल, सलीमगढ़ का किला जब बनाया गया था, वो जगह तब यमुना किनारे एक टापू की तरह थी। कह सकते हैं कि ये किला टापू पर बना है, क्योंकि तब यमुना की एक धारा लालकिले और सलीमगढ़ के साथ ठीक उसी तरह बहा करती थी जिस तरह आज रिंग रोड इन किलों से होकर निकलती है। पिछले करीब एक हजार वर्षों में यमुना लगातार पूर्व की ओर खिसकती रही है।जैसे-जैसे नदी की धारा पूर्व की ओर हटती गई, नदी के किनारे और पानी के पास रहने की इच्छा के कारण दिल्ली में शहर बसाने वालों ने अपने शहर धीरे-धीरे दक्षिण से उत्तर और पूर्व की ओर बसाए। संभवत: यमुना के इतने नजदीक बसने का विचार दिल्ली ने भीषण गर्मी से बचने के लिए ही बनाया हो। अब आप समझ सकते हैं कि चार दिन पहले जब यमुना ने खतरे का निशान लांघा तो सबसे पहले राजधानीवासी इस रिंग रोड पर ही क्यों जूझे?
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