मुस्लिम शादियों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सिस्टम बनाए दिल्ली सरकार, हाईकोर्ट ने दिया आदेश
हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को मुस्लिम विवाहों के लिए एक निश्चित समय सीमा के भीतर ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली बनाने का निर्देश दिया है। इस आदेश से मुस्लिम जोड़ों को अपने विवाह को पंजीकृत करने में होने वाली परेशानियों से निजात मिलेगी। अभी तक मुस्लिम जोड़ों को विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत अपने विवाह को पंजीकृत करने के लिए मजबूर होना पड़ता था जो उनके धार्मिक विश्वासों के विरुद्ध था।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने दिल्ली सरकार को एक निश्चित समय सीमा के भीतर अपने आधिकारिक पोर्टल पर मुस्लिम विवाहों की ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली (Online Registration System) बनाने निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने अपने आदेश में मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से निर्देश के कार्यान्वयन की निगरानी करने और समय पर अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
अदालत ने ये आदेश एक जोड़े द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। याचिकाकर्ताओं ने 11 अक्टूबर, 2023 को इस्लामी शरिया कानून के तहत विवाह किया था। दोनों ने विदेश यात्रा के लिए वीजा जारी करने के लिए कुछ देशों की आवश्यकता के अनुसार, अपने विवाह को पंजीकृत (Marriage Registration) करने की मांग की थी।
मुस्लिम पर्नल लॉ के तहत हुई शादी
हालांकि, मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के तहत संपन्न विवाहों के लिए एक प्रभावी ऑनलाइन पंजीकरण तंत्र की अनुपस्थिति के कारण, याचिकाकर्ताओं को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत अपने विवाह को पंजीकृत करने के लिए मजबूर होना पड़ा।ऑनलाइन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के सिर्फ दो विकल्प
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता एम सुफियान सिद्दीकी ने कहा कि उनके मुवक्किल को दिल्ली सरकार द्वारा अनिवार्य विवाह पंजीकरण प्रणाली के अधीन किया गया था, जिसमें ऑनलाइन पोर्टल पर केवल दो विकल्प दिए गए थे। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत पंजीकरण।
अधिवक्ता ने तर्क दिया कि दिल्ली (विवाह का अनिवार्य पंजीकरण) आदेश, 2014 के तहत ऑफलाइन विकल्प या उपयुक्त ऑनलाइन विकल्प की अनुपस्थिति ने याचिकाकर्ताओं को प्रभावी रूप से उनके विश्वास और इरादे के विपरीत एक वैधानिक व्यवस्था में मजबूर कर दिया, जिससे अनुच्छेद 14, 21 और 25 के तहत उनके संवैधानिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किलों पर विशेष विवाह अधिनियम, 1954 लागू नहीं होना चाहिए, और याचिकाकर्ताओं ने मुस्लिम पर्सनल ला के तहत विवाह पंजीकरण के लिए एक प्रभावी ऑनलाइन तंत्र की अनुपस्थिति के कारण, गलती से विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपना विवाह पंजीकृत कर लिया था।
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