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Delhi: ‘लापरवाह’ हुआ जीटीबी अस्पताल, बेसमेंट में पड़ा सड़ रहा लाखों का सामान

अस्पताल के मातृ एवं बाल स्वास्थ्य विभाग ब्लाक के बेसमेंट में बड़ी संख्या में बेड कार्टून में बंद सिरिंज दवाएं पीपीई किट ग्लूकोज की बोतलें व अन्य चिकित्सा संबंधी वस्तुओं को बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया गया है। इस संबंध में जब प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग अध्यक्ष डा. अमिता सुनेजा से फोन कर पक्ष मांगा गया तो उन्होंने कहा कि चिकित्सा अधीक्षक से बात कीजिए।

By Jagran NewsEdited By: Mohammad SameerUpdated: Sun, 08 Oct 2023 07:33 AM (IST)
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‘लापरवाह’ हुआ जीटीबी अस्पताल
निखिल पाठक, पूर्वी दिल्ली। सरकारी अस्पतालों में मरीजों के बेहतर इलाज व सुविधाओं के लिए सरकार की ओर से करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। अस्पताल में बेड, दवाओं, ग्लूकोज व अन्य स्वास्थ्य संबंधी वस्तुओं पर सरकार प्रतिवर्ष काफी मोटी रकम खर्च करती है।

लेकिन मरीजों को अस्पताल में बेड या दवाओं की कमी बताई जाती है, जिससे उन्हें बाहर हजारों से लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। ऐसा ही कुछ दिलशाद गार्डन स्थित गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल में लापरवाही की सारी हदें पार होने का मामला सामने आया है। अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से बेड, दवाएं समेत चिकित्सा सामग्री सड़कर बर्बाद हो रही है।

अस्पताल के मातृ एवं बाल स्वास्थ्य विभाग ब्लाक के बेसमेंट में बड़ी संख्या में बेड, कार्टून में बंद सिरिंज, दवाएं, पीपीई किट, ग्लूकोज की बोतलें व अन्य चिकित्सा संबंधी वस्तुओं को बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया गया है। इस संबंध में जब प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग अध्यक्ष डा. अमिता सुनेजा से फोन कर पक्ष मांगा गया तो उन्होंने कहा कि चिकित्सा अधीक्षक से बात कीजिए। उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। फिर चिकित्सा अधीक्षक डा. अस्मिता एम राठौर से पक्ष मांगा गया तो उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया।

जीटीबी यमुनापार का सबसे बड़ा अस्पताल है। इसमें 1700 बेड की क्षमता है। बेहतर इलाज की उम्मीद में यहां पर दिल्ली के अलावा उत्तर-प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों से भी लोग आते हैं। अस्पताल में प्रतिदिन छह-सात हजार की ओपीडी रहती है। शनिवार को दैनिक जागरण की टीम मातृ एवं बाल स्वास्थ्य विभाग ब्लाक के बेसमेंट में पहुंची। वहां पाया कि बेसमेंट के कोने-कोने तक हजारों नए बेड पड़े हुए थे।

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वहीं सैकड़ों की संख्या में मौजूद कार्टून भी थे। उन कार्टून की जब पड़ताल की गई तो पाया कि अधिकतर कार्टून में पीली और नीली पालिथिन में नई पीपीई किट बंद पडी थीं। इसी के साथ ग्लूकोज की बोतलें, सिरिंज दवाएं, कैनूला भी कार्टून में पड़े-पड़े सड़ रहे थे।

उस बेसमेंट में हमें अप्पाविस्क पीएफएस दवा के पैकेट भी मिले। यह दवा आंखों में सूखापन दूर करने व नमी लाने में उपयोग की जाती है। आलम यह था कि बेसमेंट में पानी व नमी के चलते अधिकतर कार्टून गल और सड़ चुके थे। जिसकी वजह से उनमें बंद पड़ी चिकित्सा सामग्री भी सड़ने लगी है।

चिकित्सा सामग्री को छिपाने की कोशिश जारी

बेसमेंट में पहुंचकर देखा कि दो-तीन लोग बाहर से नजर आने वाले कार्टून को अंदर ले जाकर छिपाने की कोशिश कर रहे थे। सूत्रों ने बताया कि कुछ दिनों पहले तक यहां बेड और कार्टूनों की संख्या दोगुनी थी, जिनको ट्रक में भरवाकर कहीं और ले जाया गया है।

कोरोना के समय बना था कोविड सेंटर

कोरोनाकाल में अस्पताल के पास जीटीबी एन्क्लेव स्थित रामलीला ग्राउंड में 500 बेड का कोविड सेंटर बनाया गया था। सूत्रों का दावा है कि कोरोनाकाल समाप्त होने के पश्चात उन सभी बेडों को उपयोग करने के बजाय यहां सड़ने के लिए छोड़ दिया गया है। उस समय पीपीई किट, ग्लूकोज व अन्य स्वास्थ्य संबंधी सामग्री भी खरीदी गई थी। जिसकी कीमत करोड़ों रुपये थी।

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