दिल्ली का एक 'भुतहा सरकारी बंगला', जहां दो CM ने रहने से किया था इनकार; एक मंत्री ने की जिद तो हो गई मौत
Haunted Bungalow in Delhi दिल्ली के शामनाथ मार्ग का बंगला नंबर 33 दशकों से चर्चा में रहा है। इस बंगले में रहने वाला मुख्यमंत्री कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। एक मंत्री ने तो अपनी जान ही गवां दी।
By V K ShuklaEdited By: JP YadavUpdated: Sat, 19 Nov 2022 03:02 PM (IST)
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। भुतहा बंगला के नाम से कुख्यात शामनाथ मार्ग का बंगला नंबर 33 एक बार फिर चर्चा में है। यह वही बंगला है जहां पर स्थित दिल्ली संवाद एवं विकास आयाेग के उपाध्यक्ष के कार्यालय को उपराज्यपाल के आदेश पर सील कर दिया गया है। इस आदेश के तहत उपराज्यपाल ने उपाध्यक्ष जस्मिन शाह के इस कार्यालय में प्रवेश पर रोक लगा दी है। वैसे यह पहली बार नहीं है जब इस बंगले काे लेकर विवाद हुआ हो।आजादी के बाद से यहां से नेतृत्व देने वालों के साथ विवाद की कहानियां जुड़ती रही हैं। जो भी यहां रहा या जिसने यहां कार्यालय बनाया उसके साथ विवाद जुड़ता रहा है। पूर्व में यहां रहने वाले दो मुख्यमंत्री तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए हैं।
बंगले में क्या क्या है सुविधाएं
यह शामनाथ मार्ग का बंगला नंबर 33 है। यह 5500 वर्गमीटर में फैला दो मंज़िला बंगला है।बंगले में तीन बेडरूम, ड्राइंग रूम, डाइनिंग हाल और कांफ्रेंस रूम हैं। बंगले में गार्ड के लिए अलग कमरा है और नौकरों-चाकरों के लिए अलग से 10 क्वार्टर हैं। बंगले के चारों तरफ़ एक बड़ा सा लान है। बग़ीचे में पानी का फव्वारा है। आज़ादी के बाद इसे दिल्ली के मुख्यमंत्री निवास के लिए सबसे बेहतरीन माना गया। दिल्ली विधान सभा यहां से महज़ 100 गज़ दूर है।
शीला दीक्षित ने बंगले में रहने से कर दिया इनकार
सूबे के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने 1952 में इसे अपना निवास बनाया। 1993 में दिल्ली के एक अन्य मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना भी यहीं रहे। दोनों मुख्यमंत्रियों को कार्यकाल ख़त्म होने से पहले ही पद छोड़ना पड़ा।मदनलाल खुराना की गद्दी जाने के बाद किसी ने इस बंगले को अपना घर नहीं बनाया। अफ़वाह फैल गई कि ये बंगला मनहूस है। मुख्यमंत्री बनने के बाद साहब सिंह वर्मा और शीला दीक्षित ने इसमें रहने से मना कर दिया।बंगले में हुई एक मौत
साल 2003 में दिल्ली सरकार में तत्कालीन मंत्री दीपचंद बंधु ने सहयोगियों की सलाह को नज़रअंदाज़ करते हुए इसे अपना निवास बनाया। उन्होंने कहा कि वो अंधविश्वासी नहीं हैं और बंगले में शिफ़्ट हो गए, लेकिन कुछ ही दिनों बाद वो बीमार पड़ गए। उन्हें मेनिनजाइटिस हो गया, जिससे उनकी अस्पताल में मौत हो गई। इसके बाद इस अफ़वाह ने और ज़ोर पकड़ लिया कि ये बंगला मनहूस है।
शक्ति सिन्हा को छोड़नी पड़ी दिल्ली सरकार
इसके बाद अगले 10 सालों तक किसी नेता या अफ़सर ने इस बंगले को अपना घर नहीं बनाया। साल 2013 में वरिष्ठ नौकरशाह शक्ति सिन्हा ने इसमें रहने का फ़ैसला किया। शक्ति सिन्हा भी चार माह ही रह सके। कुछ ऐसे हालात बने कि उन्हें दिल्ली सरकार ही छोड़नी पड़ी। 2015 में इस बंगले को फिर से नया निवासी मिला।आशीष खेतान ने करवाया था बंगले में बदलाव
अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली सरकार को नीतिगत सलाह देने वाले दिल्ली संवाद एवं विकास आयोग का दफ़्तर बना दिया। आयोग के उपाध्यक्ष आशीष खेतान को यह जगह पसंद आई और उन्होंने इस बंगले में कुछ बदलाव कराए।
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