दिल्ली में छिपा है तापमान को कम करने का हल, पानी की भी नहीं होगी कमी; बस करने हैं ये उपाय
Delhi Heat Wave and Water Crisis भीषण गर्मी में अप्रत्याशित रूप से तप रही राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक लापरवाही का भी बड़ा हाथ है। मनमाने तरीके से अवैध कॉलोनियों की बसावट ने सैकड़ों आर्द्र भूमि (वेट लैंड) को निगल लिया। राजधानी में कभी सैकड़ों की संख्या में आर्द्र भूमि हुआ करती थी और यह भूजल रिचार्ज के साथ गर्मी सोखने का काम करती थी।
अजय राय, नई दिल्ली। भीषण गर्मी में अप्रत्याशित रूप से तप रही राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक लापरवाही का भी बड़ा हाथ है। मनमाने तरीके से अवैध कॉलोनियों की बसावट ने सैकड़ों आर्द्र भूमि (वेट लैंड) को निगल लिया। राजधानी में कभी सैकड़ों की संख्या में आर्द्र भूमि हुआ करती थी और यह भूजल रिचार्ज के साथ गर्मी सोखने का काम करती थी।
इससे गर्मी के मौसम में तापमान के साथ भूजल का संतुलन भी बना रहता था। इस अनदेखी का असर दिल्ली के भूजल स्तर पर भी पड़ा है और जलापूर्ति के लिए पड़ोसी राज्यों से मिन्नतें करनी पड़ रही हैं।
ज्यादातर जल निकाय और झीलों पर अतिक्रमण
विशेषज्ञों के मुताबिक, अब भी उन आर्द्र भूमि की तलाश करके पुनर्जीवित कर लिया जाए, तो राजधानीवासियों को आगे चलकर बड़ी राहत मिल सकती है। दिल्ली में कुल 1,045 जल निकाय हैं, जिनमें झीलें भी शामिल हैं, लेकिन ज्यादातर अतिक्रमण और अवैध कब्जे की जद में हैं। दो साल से भी अधिक समय से इन्हें चिह्नित करने के साथ पुनर्जिवित करने की बात कही जा रही है, लेकिन इनमें 258 आर्द्र भूमि को यह मान लिया गया है कि अब इसका वजूद ही नहीं है और इसे चिह्नित नहीं किया जा सकता।
जल निकायों को जिंदा रखने का काम कागजों पर
दिल्ली सरकार ने दिल्ली के 16 जल निकाय एजेंसियों के समन्वय से जल निकायों के संरक्षण व पुनरुद्धार की रूपरेखा तैयार की है। इनमें 685 जल निकायों के संरक्षण की कार्ययोजना तैयार की गई है। आर्द्र भूमि मित्र तैयार किए जा रहे हैं, लेकिन ये सब कागजों पर ही ज्यादा हैं। इसी क्रम में 10 जल निकायों को अधिसूचित करने के लिए प्राथमिकता सूची में रखा गया है।
इसमें प्राकृतिक आर्द भूमि नजफगढ़ झील, संजय झील, वेलकम झील, टिकड़ीखुर्द झील और वसंत कुंज स्थित स्मृति वन हैं और मानव निर्मित भलस्वा झील, हौज खास झील, कोंडली स्थित स्मृति वन झील, पूठ कलां झील और दरियापुर कलां झील शामिल है।
आद्र भूमि करती है तापमान नियंत्रित
विशेषज्ञों के मुताबिक, आर्द्र भूमि मूल्यवान पारिस्थितिकी तंत्र हैं। यह पर्यावरण की गुणवत्ता और जैव विविधता को बनाए रखने में भी मदद करते हैं। जैव विविधता के विशेषज्ञ डॉ. फैयाज खुदसर ने कहा कि ये स्थापित सिद्धांत है कि आर्द्र भूमि की वजह से तापमान नियंत्रित करने में मदद मिलती है, लेकिन दुर्भाग्य से दिल्ली में अधिकांश आर्द्र भूमि कब्जे का शिकार हो गईं और उनका वजूद मिट गया।
ऐसे में अधिक से अधिक आर्द्र भूमि की पहचान कर उसे पुनर्जिवित करने की जरूरत है। जलवायु संरक्षण के लिए काम करने रहे रामवीर तंवर बताते हैं कि तालाब प्राकृतिक तरीके से भूजल रिचार्ज करने के साथ आसपास के क्षेत्र को ठंडा रखने में मदद करते हैं, लेकिन ज्यादातर आर्द्र भूमि का वजूद अतिक्रमण के कारण खत्म हो गया है। जो बचे हैं उन तलाबों का क्षेत्र कम करने के साथ कंक्रीट बीछा दी गई है।
ऐसे में ठंडा करने के बजाय खुद ही गर्म हो गए हैं। ये समझना होगा कि तालाबों को अपने स्वरूप में रखा जाए यानी मिट्टी, घास और मछलियां हों। अन्यथा पंचतारा होटलों में तमाम स्विमिंग पूल बने हैं, लेकिन वे आर्द्र भूमि नहीं हो सकते। यमुना नदी में भी नाले का पानी और केमिकल भरा है, ऐसे में इससे भी तापमान को सोखने या भूजल रिचार्ज में मदद नहीं मिल सकती है।
ये उपाय करने की जरूरत
यमुना के बाढ़ क्षेत्र में सैकड़ों हेक्टेयर में आर्द भूमि थी, उन्हें पहचानने और पुनर्जिवित करने की जरूरत है। इसके लिए इंडिकेटर प्रजाति के घास होते हैं, जैसे नरसल, पटेरा आदि। ये घास जहां हैं उसका मतलब है कि उस जगह पर कभी आर्द्र भूमि थी, अब सिल्ट और कूड़े से भरा हुआ है।
हाईवे को भी इसी हिसाब से तैयार करना होगा। मसलन, सड़कों के किनारे वर्षा जल को भूजल में भेजने लिए संचयन की व्यवस्था करनी होगी। साथ ही डिवाइडर के बीच में मिट्टी भरकर घास और छोटे पौधे लगाने से वर्षा जल अवशोषित होगा। इससे भूजल स्तर ठीक करने के साथ अधिक तापमान को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।