Delhi News: वसंत उत्सव की अनूठी परंपरा से महकी निजामुद्दीन दरगाह, गेंदे और सरसों के फूलों की हुई बारिश; ऐसे शुरू हुआ था यह उत्सव
महबूब इलाही निजामुद्दीन की दरगाह खास वासंती रंग ओढ़े हुई थी। पीली चादर के साथ पीले सरसों व गेंदे के फूल निजामुद्दीन दरगाह के हर कोने को पीलापन और विशेष खुशबू दिए हुए थे। कव्वाली में भी मशहूर शायर अमीर खुसरो के वसंत पर लिखे नज्मों की वर्षा हो रही थी। मौका भी खास था बुधवार शाम यहां धूमधाम और परंपरागत तरीके से वसंतोत्सव मनाया गया।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। महबूब इलाही निजामुद्दीन की दरगाह खास वासंती रंग ओढ़े हुई थी। पीली चादर के साथ पीले सरसों व गेंदे के फूल निजामुद्दीन दरगाह के हर कोने को पीलापन और विशेष खुशबू दिए हुए थे। कव्वाली में भी मशहूर शायर अमीर खुसरो के वसंत पर लिखे नज्मों की वर्षा हो रही थी।
धूमधाम से मनाया गया वसंतोत्सव
मौका भी खास था, बुधवार शाम यहां धूमधाम और परंपरागत तरीके से वसंतोत्सव मनाया गया। इसमें हजारों लोग पीले परिधान और पीले साफे के साथ हाथ में पीले फूल लिए शामिल हुए। इसके लिए दरगाह में विशेष तैयारियां की गई थीं। दरगाह को विशेष पीले लाइटों से सजाया गया था। हर ओर पीले गेंदे और सरसों के फूलों की महक थी।
800 से अधिक वर्षों से चली आ रही है यह अनूठी परंपरा
वैसे यह कोई पहली बार नहीं है। गंगा-यमुना तहजीब को प्रगाढ़ करने की यह अनूठी परंपरा 800 से अधिक वर्षों से चली आ रही है। जब यह दरगाह हिंदू धर्म के विशेष उत्सव को आत्मसात करता है। विशेष बात कि इस उत्सव में शामिल होने के लिए हर धर्म के लोग शामिल हुए। विदेशी पर्यटक भी इसे देखने के लिए विशेष तौर पर पहुंचे। इसमें कई विशिष्ट लोग भी शामिल थे।क्या बोले दरगाह के अध्यक्ष अफसर अली निजामी?
दरगाह के अध्यक्ष अफसर अली निजामी ने बताया कि हजरत निजामुद्दीन का अपने भांजे ख्वाजा तकीउद्दीन नूंह से गहरा लगाव था। बीमारी से उनका निधन होने से औलिया दुखी रहने लगे थे। उन्हें इस हाल में देखकर उनके अनुयायी हजरत अमीर खुसरो परेशान थे। एक दिन खुसरो ने महिलाओं के समूह को पीले वस्त्र पहनकर और सरसों के फूल लेकर गाते जाते देखा।
ऐसे हुई दरगाह में बसंत पंचमी मनाने की शुरूआत
खुसरो के पूछने पर उन महिलाओं ने बताया कि वे अपने भगवान को खुश करने के लिए यह वस्त्र पहनकर फूल चढ़ाने मंदिर जा रही हैं। ऐसे में खुसरो ने भी तुरंत पीली साड़ी पहनकर और सरसों का फूल लेकर “सकल बन फूल रही सरसों’ गाते हुए हजरत निजामुद्दीन के पास पहुंच गए और नृत्य करने लगे। उन्हें यह करता देख निजामुद्दीन औलिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई। कहा जाता है कि तब से वसंत पंचमी का पर्व दरगाह पर मनाया जा रहा है।
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