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'हमें दिल्ली HC के लिए नहीं मिल रहा बजट', पार्षदों का फंड बढ़ाने की जनहित याचिका पर अदालत ने की अहम टिप्पणी

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें दिल्ली सरकार और एमसीडी को एमसीडी के लिए आवंटित धन बढ़ाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। अदालत ने याचिकाकर्ता को एमसीडी सदन के भीतर और स्थायी समिति के समक्ष मामला उठाने की सलाह दी। याचिका में कहा गया था कि अपर्याप्त फंडिंग से पार्कों स्कूलों औषधालयों के रखरखाव में गिरावट आई है।

By Jagran News Edited By: Monu Kumar Jha Updated: Tue, 05 Nov 2024 04:15 PM (IST)
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने एमसीडी फंड बढ़ाने की याचिका पर की सुनवाई। फाइल फोटो
एएनआई, नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ( Delhi High Court) ने मंगलवार को एक एमसीडी पार्षद द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें दिल्ली सरकार और एमसीडी को एमसीडी के लिए आवंटित धन बढ़ाने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि धन का उपयोग सड़क मरम्मत, स्कूलों, पार्कों, औषधालयों और मनोरंजन केंद्रों के रखरखाव सहित विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों के लिए किया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अगुवाई वाली पीठ में न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला भी शामिल थे, जिन्होंने याचिकाकर्ता को एमसीडी सदन के भीतर और स्थायी समिति के समक्ष मामला उठाने की सलाह दी और बाद में याचिका का निपटारा कर दिया।

इस मुद्दे को एमसीडी सदन में उठाएं-दिल्ली HC

पीठ ने मामले का निपटारा करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि हम दिल्ली उच्च न्यायालय के लिए धन सुरक्षित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो हम आपके धन को बढ़ाने के लिए निर्देश कैसे जारी कर सकते हैं? आपको इस मुद्दे को एमसीडी सदन में उठाना चाहिए।

याचिका में दिल्ली सरकार और एमसीडी को निर्वाचित दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) पार्षदों को पर्याप्त धन आवंटित करने में उनकी कथित विफलता के संबंध में निर्देश देने की भी मांग की गई है। दिल्ली के सिद्धार्थ नगर से निर्वाचित पार्षद सोनाली द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि एमसीडी पार्षदों के लिए अपर्याप्त फंडिंग ने उनके वैधानिक कर्तव्यों को पूरा करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न की है।

दिल्ली के नागरिकों पर पड़ रहा खराब असर-याचिकाकर्ता

याचिका में कहा गया है कि संसाधनों की कमी के कारण पार्कों, स्कूलों, औषधालयों, सड़कों और सामुदायिक केंद्रों के रखरखाव सहित आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं में गिरावट आई है, जिससे दिल्ली के नागरिकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता शलभ गुप्ता और प्राची गुप्ता के माध्यम से किया गया था, जिसमें अपर्याप्त धन के कारण होने वाली विशिष्ट विफलताओं पर प्रकाश डाला गया, विशेष रूप से खराब बुनियादी ढांचे और स्वच्छता से पीड़ित एमसीडी संचालित स्कूलों में जिससे अनुच्छेद 21 ए के तहत बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन होता है।

अनुच्छेद 21 और 21ए का  उल्लंघन

इसमें कहा गया है कि पानी की कमी के कारण सार्वजनिक पार्कों की उपेक्षा की जाती है, जिससे हरियाली और सुरक्षा पर असर पड़ता है। खासकर बुजुर्गों के लिए। डिस्पेंसरी, आउटडोर जिम और सामुदायिक केंद्र जैसी आवश्यक सुविधाएं खस्ताहाल हैं, जिससे नागरिक बुनियादी स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं से वंचित हैं।

सार्वजनिक सुविधाओं को बनाए रखने और पर्याप्त धन सुनिश्चित करने में विफलता को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और अनुच्छेद 21 ए के तहत शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन माना जाता है।

याचिका में कहा गया है कि बिगड़ती स्थितियों से नागरिकों के मौलिक अधिकारों को खतरा है। खासकर यह देखते हुए कि जहां विधायकों को सालाना लगभग 15 करोड़ रुपये मिलते हैं, वहीं एमसीडी पार्षदों को केवल लगभग 1 करोड़ रुपये आवंटित किए जाते हैं।

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