'शांतिपूर्ण सभा में भी हिंसक भाषण सही नहीं...', जामिया हिंसा मामले में दिल्ली HC ने निचली अदालत का फैसला पलटा
Jamia Violence Case दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया हिंसा मामला पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया है। अदालत ने साकेत कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि शांतिपूर्ण सभा में भी हिंसक भाषण सही नहीं है।
By Vineet TripathiEdited By: Nitin YadavUpdated: Tue, 28 Mar 2023 11:51 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। वर्ष 2019 के जामिया हिंसा मामले में जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम, सफूरा जरगर व छह अन्य के खिलाफ दंगा और गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा होने का आरोप तय कर दिया गया। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि हिंसा को भड़काने का काम करने वाली हिंसा और हिंसक भाषण को भारतीय संविधान के तहत संरक्षित नहीं किया गया हैं। शांतिपूर्ण सभा का अधिकार उचित प्रतिबंधों के अधीन है और हिंसक कृत्यों की रक्षा नहीं की जाती है।
निचली अदालत के आदेश को पलटा
आरोपमुक्त करने के निचली अदालत के आदेश को पलटते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया इमाम, तन्हा और जरगर सहित 11 आरोपितों में से आठ के खिलाफ दंगा करने और गैरकानूनी रूप से एकत्र होने का आरोप बनता है।अदालत ने उक्त आदेश व टिप्पणी दिल्ली पुलिस द्वारा दायर की गई पुनरीक्षण याचिका का निस्तारण करते हुए किया।
नए आरोपित तय करने का आदेश
आरोपितों के खिलाफ नए आरोप तय करने का आदेश देते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कातां शर्मा की पीठ ने कुछ आरोपितों का जिक्र करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया जैसा कि वीडियो में देखा जा सकता है, प्रतिवादी भीड़ की पहली पंक्ति में थे। वे दिल्ली पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे और बेरिकेड्स को हिंसक रूप से धकेल रहे थे।भीड़ कालेज कैंपस के गेट और उसके बाहर लगातार पत्थर, बोतलें और ट्यूब फेंकते हुए कब्जा कर रही थी। यह इंगित करता है कि संविधान के तहत यह एक शांतिपूर्ण सभा नहीं थी।अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से इनकार नहीं किया गया है और यह अदालत अपने कर्तव्य के बारे में जागरूक है। अदालत ने इमाम, जरगर के अलावा मोहम्मद कासिम, महमूद अनवर, शहजर रजा खान, उमैर अहमद, मोहम्मद बिलाल नदीम और चंदा यादव पर आइपीसी की धारा 143 (गैरकानूनी जमावड़ा), 147 (दंगा), 149 (गैरकानूनी जमावड़े का हर सदस्य अपराध का दोषी), 186 (लोक सेवक को सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में बाधा डालना), 353 (सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल) और 427 (शरारत के कारण नुकसान या क्षति) के साथ-साथ सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम की धारा-तीन के तहत नए आरोप तय किया।
वहीं गैरकानूनी जमावड़े की धारा-143 के तहत आसिफ इकबाल तन्हा, मोहम्मद शोएब और मोहम्मद अबुजर पर आरोप तय करते हुए अन्य अपराधों से आरोप मुक्त कर दिया। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी भी आरोपित व्यक्ति के खिलाफ मुकदमे के दौरान आरोपमुक्त किए गए मामलों के संबंध में कोई सुबूत रिकार्ड में आता है, तो निचली अदालत उनके खिलाफ कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है। निचली अदालत ने चार फरवरी को इमाम, तन्हा, जरगर समेत 11 आरोपितों को यह कहते हुए आरोप मुक्त कर दिया था कि पुलिस ने उन्हें बली का बकरा बनाया है। हालांकि, आरोपित मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया था।
पुलिस पर की गई टिप्पणियों को हटाया
इसके साथ ही हाई कोर्ट ने पुलिस और उसकी जांच के खिलाफ निचली अदालत द्वारा टिप्पणियों को हटा दिया।अदालत ने कहा कि आरोप के स्तर पर निचली अदालत द्वारा की गई टिप्पणी को टाला जाना चाहिए था क्योंकि इस स्तर पर स्वयं निचली अदालत के लिए भी स्पष्ट नहीं होगा कि क्या विरोध शांतिपूर्ण था या फिर राज्य सरकार हिंसा के खतरे को रोकने की कोशिश करके दूसरों को हिंसक प्रदर्शनकारियों से बचाने के लिए काम कर रही थी। ताकि, उन लोगों के लिए कानून का शासन सुनिश्चित किया जा सके जोकि इस हिंसक विरोध का हिस्सा नहीं थे।
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