शारीरिक संबंध विवाह के दायरे में हो तो ठीक, लेकिन सहमति से शादीशुदा शख्स के साथ फिजिकल होना गलत नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति अमित महाजन ने 29 अप्रैल को पारित एक आदेश में कहा हालांकि सामाजिक मानदंड यह तय करते हैं कि यौन संबंध आदर्श रूप से विवाह के दायरे में ही होने चाहिए लेकिन अगर दो वयस्कों के बीच सहमति से यौन गतिविधि होती है चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो तो इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
पीटीआई, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सामाजिक मानदंड यह तय करते हैं कि यौन संबंध आदर्श रूप से विवाह के दायरे में ही होने चाहिए। लेकिन अगर ये दो वयस्कों के बीच उनकी वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना सहमति से संबंध बनते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हाईकोर्ट ने एक विवाहित व्यक्ति पर शादी का झूठा झांसा देकर एक महिला से दुष्कर्म करने के मामले में पीड़ित को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।
अदालत ने कहा कि अभियुक्त की वैवाहिक स्थिति के बारे में पता चलने के बाद भी पीड़िता का उससे संबंध जारी रखने का निर्णय प्रथम दृष्टया उसकी सहमति की ओर इशारा करता है और इस बात की पुष्टि करने के लिए कोई सबूत नहीं दिखाया गया कि उसने कोई जबरदस्ती की थी।
सहमति से यौन गतिविधि गलत नहीं: हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति अमित महाजन ने 29 अप्रैल को पारित एक आदेश में कहा, "हालांकि सामाजिक मानदंड यह तय करते हैं कि यौन संबंध आदर्श रूप से विवाह के दायरे में ही होने चाहिए, लेकिन अगर दो वयस्कों के बीच सहमति से यौन गतिविधि होती है, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, तो इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।"पहली घटना के लगभग 15 महीने बाद FIR: दिल्ली हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एफआईआर पहली घटना के लगभग पंद्रह महीने बाद दर्ज की गई थी और अभियोजक के कार्यों से किसी दबाव का संकेत नहीं मिलता है। अदालत ने आगे कहा कि हालांकि कथित अपराध जघन्य प्रकृति का है, लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि जेल का उद्देश्य दंडात्मक नहीं है, बल्कि मुकदमे के दौरान आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करना है।
इसमें कहा गया है कि यौन दुर्व्यवहार और जबरदस्ती के झूठे आरोप न केवल आरोपी की प्रतिष्ठा को धूमिल करते हैं बल्कि वास्तविक मामलों की विश्वसनीयता को भी कम करते हैं। इसलिए प्रत्येक मामले में आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोपों के मूल्यांकन में अत्यधिक परिश्रम करना जरूरी है, खासकर जब सहमति और इरादे के मुद्दे विवादास्पद हैं।
जेल में रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं: हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि यह देखते हुए कि आवेदक की उम्र लगभग 34 वर्ष थी, उसकी पत्नी और दो नाबालिग बच्चे थे और वह मार्च 2023 से हिरासत में था और उसे जेल में रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
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