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जज के लिए मांगी थी मौत की सजा, अब IITian को खुद देना पड़ेगा जवाब; जारी हुआ कारण बताओ नोटिस

आईआईटी के पूर्व छात्र की याचिका खारिज करते हुए अदालत की अवमानना की कार्यवही करते हुए जुर्माना लगाया है। नरेश शर्मा ने एकल पीठ के साथ ही सरकारी अधिकारियों और सुप्रीम कोर्ट पर आपत्तिजनक आरोप लगाए हैं। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा व न्यायमूर्ति संजीव नरुला की पीठ ने कहा कि अदालत की राय में दुर्भावना के तहत दिए गए बयान का इरादा न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने का है।

By Vineet TripathiEdited By: Nitin YadavUpdated: Thu, 07 Sep 2023 06:51 PM (IST)
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न्यायधीश के लिए मौत की सजा मांग करने वाले पर दिल्ली HC की कार्यवाही।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। याचिका खारिज करने के लिए एकल न्यायाधीश के लिए मौत की सजा की मांग को लेकर याचिका दायर करने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता आईआईटी के पूर्व छात्र नरेश शर्मा के विरुद्ध अवमानना के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

नरेश शर्मा ने एकल पीठ के साथ ही सरकारी अधिकारियों और सुप्रीम कोर्ट पर आपत्तिजनक आरोप लगाए हैं। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा व न्यायमूर्ति संजीव नरुला की पीठ ने कहा कि अदालत की राय में दुर्भावना के तहत दिए गए बयान का इरादा न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने का है।

पीठ ने कहा कि इस अदालत और सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर अपमान की अनदेखी नहीं की जा सकती है। ऐसे में याचिकाकर्ता के खिलाफ अवमानना के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है। अदालत ने पूछा क्यों न याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए।

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सुनवाई से पहले देना होगा नोटिस का जवाब

अदालत ने याचिकाकर्ता नरेश शर्मा को 18 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई से पहले कारण बताओ नोटिस पर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।

याचिकाकर्ता नरेश शर्मा ने अपील याचिका दायर कर 20 जुलाई के एकल पीठ के निर्णय को चुनाैती दी थी। एकल पीठ ने नरेश शर्मा की याचिका काे खारिज करते हुए 30 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था।

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नरेश ने उक्त याचिका में आरोप लगाया था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है। साथ ही तर्क दिया कि इसमें सार्वजनिक संगठनों का अधिकार शामिल है जो आपराधिक रूप से स्थापित नहीं हैं।

याचिका में कहा गया था कि आईआईटी, एम्स और आइआइएम जैसे शीर्ष संस्थानों सहित सैकड़ों सरकारी संगठन देशद्रोह के अपराधी हैं, क्योंकि सोसायटी पंजीकरण अधिनियम-1860 के तहत ऐसे संगठनों के लिए सरकार के आदेश की अवज्ञा करना और सरकार के खिलाफ सेना में शामिल होने का कानूनी विकल्प है।

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