Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'नाबालिग से दुष्कर्म जैसे संगीन मामलों के प्रति गंभीर नहीं दिल्ली पुलिस', अफसरों की लापरवाही पर HC ने जताई नाराजगी

    दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में जांच अधिकारियों की लापरवाही पर सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट ने जांच अधिकारी के पेश न होने और अभियोजन पक्ष को जानकारी न देने पर सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि जमानत याचिका का विरोध नहीं किया जा रहा है। अदालत ने आरोपित की जमानत याचिका खारिज कर दी और पुलिस को जांच के आदेश दिए।

    By Vineet Tripathi Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Sun, 24 Aug 2025 02:51 PM (IST)
    Hero Image
    नाबालिग से दुष्कर्म जैसे संगीन मामलोें के प्रति गंभीर नहीं दिल्ली पुलिस

    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। नाबालिग से दुष्कर्म जैसे संगीन मामले की जांच के प्रति दिल्ली पुलिस की गंभीरता पर दिल्ली हाई कोर्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए सवाल उठाया है। सुनवाई के दौरान जांच अधिकारी के पेश न होने से लेकर पूरे मामले के संबंध में लोक अभियोजक को जानकारी नहीं देने पर पर दिल्ली हाई कोर्ट ने यहां तक कहा दिया कि ऐसा लगता है कि अभियोजक व जांचकर्ता जमानत याचिका का विरोध नहीं करना चाहते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हालांकि, न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया की पीठ ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि आरोपित को जमानत दी जाए। मामले की गंभीरता को देखते हुए पीड़िता ने ट्रायल में अपनी गवाही के दौरान दुष्कर्म होने का बयान देकर अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया। ऐसे में अदालत आरोपित को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं है और जमानत याचिका खारिज की जाती है।

    अदालत ने रिकार्ड पर लिया कि अतिरिक्त लाेक अभियोजक (एपीपी) नोटिस स्वीकार करते हुए जमानत अर्जी का विरोध किया था। हालांकि, अदालत ने यह भी नोट किया कि एपीपी अदालत के समक्ष मामले में जिरह नहीं कर सके क्योंकि दिल्ली पुलिस के संबंधित जांच अधिकारी मामले से जुड़ी जांच व पुलिस फाइल नहीं लाए थे, जबिक एसएचओ इंस्पेक्टर मनीष भट्टी को मामले में हुई प्रगति की जानकारी नहीं थी। एपीपी ने पीठ को सूचित किया था कि इंस्पेक्टर मनीष भट्टी एसएचओ नहीं बल्कि एटीओ हैं और पहले उन्होंने इंस्पेक्टर को एसएचओ समझ लिया था।

    उक्त तथ्यों को रिकॉर्ड करते हुए पीठ ने कहा कि पूर्व में कई बार निर्देश दिया जा चुका है कि संगीन अपराध के मानत के मामलों में जांच अधिकारियों को सुनवाई शुरू होने से पहले अभियोजक को जानकारी देनी चाहिए और सुनवाई के दौरान फाइल के साथ अदालत में उपस्थित रहना चाहिए।

    पीठ ने कहा कि व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए ऐसे आदेशों की प्रतियां बार-बार संबंधित पुलिस उपायुक्तों को भेजी गई हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में भी जांच अधिकारियों की विफलता के कारण एपीपी अदालत के समक्ष तथ्यों को पेश नहीं कर सके।

    अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति इस तरह का उदासीन रवैया स्वीकार नहीं किया जा सकता। किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के बाद जांचकर्ता को अदालत के समक्ष गिरफ्तारी को उचित ठहराने के लिए आवश्यक रिकार्ड पेश किया जाना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं हो रहा है। पीठ ने उक्त स्थिति को देखते हुए आदेश की प्रति मामले की जांच के लिए पुलिस आयुक्त को भेजने का निर्देश दिया।

    क्या है मामला?

    याचिका के अनुसार अरोपित ने नाबालिग से दुष्कर्म मामले में भलस्वा डेरी थाना में दर्ज प्रकरण में नियमित जमानत की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। याचिका के अनुसार अगस्त 2024 में आरोपित ने मोहल्ले में खेल रही 13 वर्षीय किशोरी को किसी काम के बहाने बुलाया और उसे अपने घर ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया।

    दुष्कर्म के कारण किशाेरी गर्भवती हो गई थी। आरोपित ने जमानत की मांग करते हुए तर्क दिया था कि मामले में सभी गवाहों से पूछताछ हो चुकी है और वह नवंबर 2024 से न्यायिक हिरासत में जेल में है। उसने रिहा करने की मांग करते हुए यह भी तर्क दिया कि उसे सुधार करने का एक मौका दिया जाना चाहिए।