दिल्ली हाई कोर्ट की दो टूक: बच्ची पर हमले के मामले में समझौते को ठुकराया, प्राथमिकी रद्द करने से इन्कार
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मारपीट के एक मामले में समझौते के आधार पर प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि घटना के समय बच्ची तीन साल की थी और उसे गंभीर चोटें आई थीं। अदालत ने यह भी कहा कि बच्ची के पिता को हमलावरों से पैसा लेकर दर्द का सौदा करने का अधिकार नहीं है। अदालत ने प्राथमिकी रद्द करने से मना कर दिया।
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। मारपीट से जुड़े मामले में दोनाें पक्षों के बीच समझौते के आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट ने प्राथमिकी रद करने से इन्कार करते हुए कहा कि जिस समय घटना हुई तब बच्ची की उम्र तीन साल थी। घटना में उसे गंभीर चोट आई और उसने इस दर्द को सहा। न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया की पीठ ने कहा कि उक्त तथ्यों को देखते हुए अदालत को ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि पिता को बच्ची के हमलावरों से पैसा लेकर उसके दर्द का सौदा करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
कोई कानूनी या नैतिक अधिकार नहीं
अदालत ने कहा कि वर्तमान में बच्ची की उम्र आठ साल है, जबकि घटना के दौरान वह तीन साल की थी। याचिकाकर्ता ने बच्ची के सिर पर ईंट से हमला किया और बच्ची को चोट लगी और उसने दर्द को सहा। इतना ही नहीं घटना में अन्य घायलाें को भी चोट लगी और बच्ची के पिता को विवाद को निपटाने का कोई कानूनी या नैतिक अधिकार नहीं है।
पीड़िता को लगीं चाेटें गंभीर
मामले में 2019 में प्राथमिकी हुई थी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता ने कहा कि दर्द झेलने वाली बच्ची के पिता के साथ ही घटना में घायल हुए अन्य लोगों से भी विवाद को सुलझा लिया गया है।
वहीं, दूसरी तरफ याचिका का विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष ने कहा कि घटना में एक बच्ची को चोट पहुंची और ट्रायल कोर्ट के समक्ष उसके पिता ने पहले ही याचिकाकर्ताओें के खिलाफ बयान दिया है।
अभियोजन पक्ष ने यह भी कहा कि पीड़िता को लगी चाेटें गंभीर थी और घायल हुए दो अन्य व्यक्ति भी गंभीर रूप से घायल हुए थे, जबकि तीन अन्य सामान्य रूप से घायल हुए थे। मामले में वर्ष 2019 में शालीमार बाग थाने में मारपीट सहित अन्य धाराओं में प्राथमिकी हुई थी।
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