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Delhi High Court: CM आवास के रिनोवेशन मामले में HC ने सुरक्षित रखा फैसला, PWD अफसरों पर खड़े हुए थे सवाल

Delhi High Court लाेक निर्माण विभाग के छह अधिकारियों के खिलाफ अगली सुनवाई तक कठोर कदम उठाने पर अंतरिम रोक लगाने के एकल पीठ के निर्णय के विरुद्ध दिल्ली सरकार की अपील याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित रख लिया। दो घंटे तक चली जिरह के दौरान दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा पीठ ने कहा कि अदालत मामले पर निर्णय सुनाएगी।

By Jagran NewsEdited By: Prince SharmaUpdated: Wed, 20 Sep 2023 05:00 AM (IST)
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Delhi High Court: CM आवास के रिनोवेशन मामले में HC ने सुरक्षित रखा फैसला
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। लाेक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के छह अधिकारियों के खिलाफ अगली सुनवाई तक कठोर कदम उठाने पर अंतरिम रोक लगाने के एकल पीठ के निर्णय के विरुद्ध दिल्ली सरकार की अपील याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित रख लिया।

करीब दो घंटे तक चली जिरह के दौरान दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा व न्यायमूर्ति संजीव नरुला की पीठ ने कहा कि अदालत मामले पर अपना निर्णय सुनाएगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आधिकारिक आवास के नवीनीकरण में नियमों के घोर उल्लंघन अधिकारियों के विरुद्ध सतर्कता विभाग ने कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।

15 सितंबर को पीडब्ल्यूडी अधिकारियों के आवेदन पर एकल पीठ ने अगली सुनवाई तक किसी भी प्राधिकारी को उनके विरुद्ध कठोर कदम उठाने पर अंतरिम रोक लगा दी थी।

17 अगस्त को दिया गया था यह बयान

अदालत ने कहा था कि 17 अगस्त को हुई पिछली सुनवाई पर स्थायी अधिवक्ता ने बयान दिया था कि याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा। इसके कारण अदालत ने अंतरिम आदेश पारित नहीं किया था, लेकिन प्रतिवादी अपने बयान पर कायम न रहते हुए याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध उल्लंघनात्मक कदम उठाया।

ऐसे में 12 अक्टूबर को होने वाली अगली सुनवाई तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ किसी भी प्राधिकारी द्वारा कोई कठोर कदम उठाने पर रोक लगाती है।

15 सितंबर के अंतरिम आदेश को रद करने की मांग

सतर्कता निदेशालय और विशेष सचिव (सतर्कता) वाइ. वी.वी.जे. राजशेखर द्वारा अपील याचिका दायर कर एकल पीठ के 15 सितंबर के अंतरिम आदेश को रद करने की मांग की। सतर्कता निदेशालय ने अधिवक्ता योगिंदर हांडू और मनंजय मिश्रा के माध्यम से दायर अपनी अपील में तर्क दिया कि उक्त आदेश बिना इस तथ्य को देखे पारित किया गया कि कठोर कदम नहीं उठाने के संबंध में बिना किसी अधिकार के अदालत में दिया गया था।

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अधिकारियों की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कीर्ति उप्पल ने पीठ को सूचित किया कि दिल्ली सरकार के कानून और न्याय विभाग के एक कार्यालय ज्ञापन के तहत स्थायी वकील/अतिरिक्त वकील और पैनल में शामिल कोई भी अधिवक्ता बगैर संबंधित विभाग के लिखित निर्देश या मंजूरी के अदालत में लिखित और मौखिक बयान नहीं दे सकता है।

याचिकाकर्ता अधिकारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई

उन्होंने दावा किया कि सक्षम प्राधिकारी के लिखित निर्देश के बिना कोई भी बयान नहीं दिया जा सकता। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया कि उन्हें अदालत की सहायता के लिए लोक निर्माण मंत्री से उचित निर्देश मिले थे। मंत्री ने उन्हें हाई कोर्ट में मामले का बचाव करने के लिए लिखित निर्देश दिए थे और कहा था कि याचिकाकर्ता अधिकारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।

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