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भषण-पोषण के एक मामले में नाबालिग बच्चे से जुड़ी याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने की अहम टिप्पणी, पढ़िए क्या है पूरा मामला?

पीठ ने सभी तथ्यों को देखने के बाद कहा कि परिवार न्यायालय ने 15 हजार रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण के लिए निर्धारण किया था जिसे बढ़ाकर हाई कोर्ट ने 25 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया था। याचिकाकर्ता के पिता को उसे 25 हजार रुपये प्रतिमाह का भुगतान करना होगा।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Thu, 10 Feb 2022 01:26 PM (IST)
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दिल्ली हाई कोर्ट ने एक नाबालिग बच्चे की याचिका पर विचार करते हुए की टिप्पणी।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। भषण-पोषण के एक मामले में नाबालिग बच्चे से जुड़ी याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की और कहा कि तलाक की स्थिति में बच्चा पिता से भरण-पोषण के लिए अलग से दावा कर सकता है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने स्पष्ट किया कि नाबालिग बच्चा पिता से अपने पालन-पोषण के लिए भरण-पोषण का दावा करने का हकदार है। इसके अलावा ऐसा बच्चा अपने माता-पिता के बीच भरण-पोषण के संबंध में तलाक के समझौते से बाध्य नहीं है।

पीठ ने निर्देश दिया कि मामले में अंतिम फैसला आने तक बच्चे को उसका पिता भरण-पोषण के लिए 25 हजार रुपये प्रतिमाह देगा। नाबालिग बच्चे ने परिवार न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें 15 हजार रुपये प्रतिमाह देने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, 22 अप्रैल 2021 को दिल्ली हाई कोर्ट ने बच्चे की स्कूल फीस समेत अन्य बिंदुओं को देखते हुए इसे बढ़ाकर 25 हजार कर दिया था। हालांकि, बच्चे की मां के आपसी सहमति से तलाक लेने पर बच्चे के लिए पांच हजार रुपये भरण-पोषण के रूप में तय किया गया था। महज पांच हजार रुपये तय करने पर पीठ ने स्पष्ट किया कि नाबालिग होने के कारण बच्चा तलाक समझौते से बाध्य नहीं है और वह पिता से अपने पोषण के लिए भरण-पोषण का दावा करने का हकदार है।

बच्चे ने याचिका में दलील दी थी कि पिता ने अपनी आय का सही ढंग से खुलासा नहीं किया था और अदालत के समक्ष दायर अपने आयकर रिटर्न (आईटीआर) में कृषि को एकमात्र आय का स्त्रोत बताया था। बावजूद इसके कि वह एक संपत्ति से किराये के रूप में आय प्राप्त कर रहे थे। उसने आरोप लगाया कि पिता ने हलफनामे में जानबूझकर गलत तथ्य पेश किए थे।पीठ ने सभी तथ्यों को देखने के बाद कहा कि परिवार न्यायालय ने 15 हजार रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण के लिए निर्धारण किया था, जिसे बढ़ाकर हाई कोर्ट ने 25 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया था। ऐसे में परिवार न्यायालय के समक्ष मामला लंबित रहने तक याचिकाकर्ता के पिता को उसे 25 हजार रुपये प्रतिमाह का भुगतान करना होगा।

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