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पति-पत्नी द्वारा यौन संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता..., तलाक से जुड़े मामले में दिल्ली HC की अहम टिप्पणी

दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक से जुड़े मामले में कहा कि जानबूझकर यौन संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता है। पीठ ने कहा कि कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाया है कि यौन संबंध के बिना शादी एक अभिशाप है और यौन संबंध में निराशा से अधिक घातक शादी के लिए कुछ भी नहीं है। कहा गया कि पत्नी के विरोध के कारण शादी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी।

By AgencyEdited By: Shyamji TiwariUpdated: Mon, 18 Sep 2023 05:19 PM (IST)
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पति-पत्नी द्वारा जानबूझकर यौन संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता

नई दिल्ली, पीटीआई। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि जानबूझकर यौन संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता है। हाईकोर्ट ने तलाक को बरकरार रखते हुए यह फैसला सुनाया है। इस मामले में दोनों का रिश्ता बमुश्किल 35 दिनों तक ही चल पाया था और संबंध न बन पाने के कारण टूट शादी टूट गई।

पत्नी की अपील को कोर्ट ने किया खारिज

जस्टिस सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील को खारिज करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाया कि यौन संबंध के बिना शादी एक अभिशाप है और यौन संबंध में निराशा से अधिक घातक शादी के लिए कुछ भी नहीं है।

दहेज के लिए परेशान करने के सबूत नहीं

तलाक से जुड़े मामले में कोर्ट ने कहा कि पत्नी के विरोध के कारण शादी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी। पत्नी ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी कि उसे दहेज के लिए उसे परेशान किया गया, था, जिसके बारे में कोई ठोस सबूत नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि इसे क्रूरता भी कहा जा सकता है।

एक मामले में हाईकोर्ट ने पाया कि पति-पत्नी द्वारा जानबूझकर यौन संबंध बनाने से इनकार करना क्रूरता है, खासकर जब दोनों नवविवाहित हों। ऐसे में यह स्वयं तलाक देने का आधार है। पीठ ने 11 सितंबर को अपने आदेश में न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा को भी शामिल किया।

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केवल 35 दिनों तक टिक सका रिश्ता

कोर्ट ने महिला द्वारा वैवाहिक जीवन में घर पर बिताई गई अवधि का जिक्र करते हुए कहा कि वर्तमान मामले में दोनों पक्षों के बीच शादी बमुश्किल 35 दिनों तक चली, बल्कि वैवाहिक अधिकारों से वंचित होने और विवाह संपन्न न होने के कारण पूरी तरह से विफल हो गया। हाईकोर्ट ने कहा कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि 18 साल से अधिक की अवधि में इस तरह का अभाव मानसिक क्रूरता के समान है।

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अदालत ने दर्ज किया कि जोड़े ने 2004 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की और पत्नी जल्द ही अपने माता-पिता के घर वापस चली गई और फिर वापस नहीं लौटी। बाद में पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक के लिए पारिवारिक अदालत का दरवाजा खटखटाया।

इस तरह हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक देने के आदेश को सही ठहराया। हालांकि, परित्याग का आधार साबित नहीं हुआ है, लेकिन पति के प्रति पत्नी का आचरण क्रूरता के समान है, जो उसे तलाक की डिक्री का हकदार बनाता है।

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