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इसमें तीसरे बच्चे का क्या दोष? मां बनी महिला को मैटरनिटी लीव नहीं देने पर हाईकोर्ट सख्त

दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला सरकारी कर्मचारी को मैटरनिटी लीव नहीं देने पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि अगर तीसरा बच्चा या उसके बाद बच्चा होता है तो बच्चे का क्या दोष है। कोर्ट ने उस नियम पर फिर से जांच करने को कहा है जिसमें दो बच्चों के बाद मातृत्व अवकाश पाने के अधिकार को सीमित करने वाला सरकारी नियम है।

By Ritika Mishra Edited By: Geetarjun Updated: Wed, 24 Jul 2024 05:45 PM (IST)
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मैटरनिटी लीव नहीं देने पर दिल्ली हाईकोर्ट हुआ सख्त।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला सरकारी कर्मचारी को दो बच्चों तक मातृत्व अवकाश पाने के अधिकार को सीमित करने वाले सरकारी नियम को लेकर अधिकारियों से सीसीएस (अवकाश) नियम के विशेष प्रावधान की स्थिरता की फिर से जांच करने को कहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि इस नियम के कारण तीसरे और उसके बाद के बच्चे को मातृत्व देखभाल से वंचित होना पड़ता है, जो पहले दो बच्चों को मिली थी।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और गिरीश कठपालिया की पीठ ने कहा कि तीसरा बच्चा पूरी तरह से असहाय है, इसलिए अदालत का कर्तव्य है कि वह मामले में हस्तक्षेप करे।

बच्चे का क्या है दोष?

कोर्ट ने अधिकारियों से पूछा कि इसमें तीसरे और उसके बाद के बच्चे का क्या दोष है, जिनका अपने जन्म पर कोई नियंत्रण नहीं था। कोर्ट ने कहा कि तीसरे बच्चे को जन्म के तुरंत बाद और शैशवावस्था (शिशु अवस्था के दौरान) के दौरान उसे मां के स्पर्श से दूर करना अत्याचारी होगा, क्योंकि नियम 43 के अनुसार उस बच्चे की मां को जन्म के अगले दिन ही आधिकारिक कर्तव्यों के लिए रिपोर्ट करना चाहिए।

अवकाश पाने का मां को अधिकार

केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 1972 के नियम 43 के अनुसार, एक महिला सरकारी कर्मचारी को 180 दिनों की अवधि के लिए मातृत्व अवकाश पाने का अधिकार है, यदि उसके दो से कम जीवित बच्चे हैं।

अदालत ने कहा कि बाल अधिकारों के दृष्टिकोण से देखें तो नियम 43 सीसीएस (अवकाश) नियम एक महिला सरकारी कर्मचारी से पैदा हुए पहले दो बच्चों और तीसरे या बाद के बच्चे के अधिकारों के बीच एक अनुचित अंतर बनाता है। जिससे तीसरे और बाद के बच्चे को मातृ देखभाल से वंचित होना पड़ता है, जो पहले दो बच्चों को मिली थी।

माता-पिता को समझाना चाहिए, न कि बच्चों

पीठ ने कहा कि हालांकि जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य से दो-बाल नीति एक प्रशंसनीय नीति है और अदालत दो से अधिक बच्चों को प्रोत्साहित करने की वकालत नहीं करती है, लेकिन तीन से अधिक बच्चों को हतोत्साहित करने के कदम माता-पिता को संबोधित किए जाने चाहिए, न कि बच्चों को।

पीठ दिल्ली पुलिस अधिकारियों द्वारा एक अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी। जिसमें उन्हें तीसरे बच्चे को जन्म देने वाली एक महिला कांस्टेबल को मातृत्व अवकाश देने का निर्देश दिया गया था।

महिला के बल में शामिल होने से पहले उसकी पहली शादी से दो बच्चे थे। पहली शादी बाद में टूट गई और दोनों बच्चे अपने पिता के पास रहे। दूसरी शादी से उसे तीसरा बच्चा हुआ, लेकिन मातृत्व अवकाश के लिए उसका आवेदन खारिज कर दिया गया। केंद्र समेत अधिकारियों ने इस आधार पर नियम का बचाव किया कि यह सिद्धांत केंद्र सरकार की सार्वजनिक नीति और परिवार नियोजन लक्ष्यों पर आधारित है। यह तर्क दिया गया कि सीसीएस (अवकाश) नियम का नियम 43 भारत सरकार की दो-बाल नीति के अनुरूप बनाया गया था, जिसका उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण करना है।

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