Delhi: छह वर्ष बाद दुष्कर्म पीड़िता का दोबारा परीक्षण करने की अनुमति देने से HC का इनकार, कोर्ट ने दिया तर्क
घटना के छह साल बाद दुष्कर्म पीड़िता का दोबारा परीक्षण करने की अनुमति देने से इनकार करने के निचली अदालत के निर्णय को दिल्ली हाईकोर्ट ने बरकरार रखते हुए महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने कहा कि महज अधिवक्ता के बदलने के कारण घटना के छह साल बाद पीड़िता को दोबारा से परीक्षण करने की अनुमति देने से वही आघात पहुंचाएगा।
By Jagran NewsEdited By: GeetarjunUpdated: Tue, 05 Sep 2023 07:43 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। घटना के छह साल बाद दुष्कर्म पीड़िता का दोबारा परीक्षण करने की अनुमति देने से इनकार करने के निचली अदालत के निर्णय को दिल्ली हाईकोर्ट ने बरकरार रखते हुए महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने कहा कि महज अधिवक्ता के बदलने के कारण घटना के छह साल बाद पीड़िता को दोबारा से परीक्षण करने की अनुमति देने से वही आघात पहुंचाएगा, जिसका सामना पीड़िता पूर्व में भी कई बार कर चुकी है।
अपील याचिका खारिज करते हुए अदालत ने यह भी कहा कि यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पोक्सो अधिनियम की धारा 33(5) पीड़िता को गवाही देने के लिए बार-बार बुलाने के संबंध में विशेष अदालतों पर प्रतिबंध लगाती है।
23 अगस्त को निचली अदालत ने दिया था आदेश
अदालत ने नोट किया कि पूर्व में पीड़िता से बचाव पक्ष ने लंबी जिरह की है। इसके साथ ही पीड़िता की आंटी से भी जिरह की गई है। आरोपित विश्व प्रताप उर्फ बाबी ने रोहिणी कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के 11 अगस्त 2023 के आदेश को चुनौती दी थी। इसमें अदालत ने पीड़िता का दोबारा परीक्षण करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।2017 को किया था पीड़िता के साथ दुष्कर्म
आरोप है कि तीन जुलाई 2017 को जब 13 वर्षीय पीड़िता घर पर अकेले थी। रात करीब नौ बजे आरोपित घर में घुसा और जबरदस्ती उसने पीड़िता से दुष्कर्म किया था। साथ ही इसके बारे में किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी दी थी।ये भी पढ़ें- 'पहले लगाया यौन संबंध का आरोप, फिर रिहाई की मांग', दोहरे रवैये से HC नाराज; कहा- विवाह करवाने को नहीं है कोर्ट
दोबारा परीक्षण कराने के लिए आरोपी ने दी ये दलील
आरोपित ने यह कहते हुए पीड़िता से दोबारा परीक्षण करने की अनुमति देने की मांग की थी कि मामले में उसकी तरफ से पूर्व में पेश अधिवक्ता ने सही तरीके से जिरह नहीं की थी। साथ ही गवाहों से कुछ प्रश्न नहीं पूछे गए थे।
वहीं, अभियोजक ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि 13 वर्षीय पीड़िता का पहले ही परीक्षण किया जा चुका है और अब आरोपित का बयान रिकॉर्ड के लिए मामला सूचीबद्ध है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह याचिका सिर्फ और सिर्फ मामले की सुनवाई टालने के लिए दायर की गई है।
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