जेल में बंद जैश आतंकी फिरोज भट ने शादी करने के लिए मांगी पैरोल, दिल्ली HC ने मांग ठुकराते हुए कहा- संभव नहीं
पैरोल देने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि इससे कुछ हद तक दोषी को सांत्वना मिल सकती है कि वह अपने माता-पिता को देख सकता है और उनसे बात कर सकता है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को एक जघन्य अपराध में दोषी ठहराया जाना और क्षेत्र में उसकी उपस्थिति के बारे में वास्तविक आशंका होना सुरक्षा हित के लिए खतरनाक है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने 20 साल से अधिक समय से जेल में बंद दोषी आतंकवादी को पैरोल देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि ऐसी आशंका है कि क्षेत्र में व्यापक सुरक्षा हित को देखते हुए उसकी उपस्थिति खतरनाक होगी।
आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सदस्य दोषी फिरोज अहमद भट ने अपने माता-पिता से मिलने और शादी करने के लिए पैरोल की मांग की थी। हालांकि, अदालत ने जेल अधीक्षक को फिरोज के माता-पिता के साथ वीडियो कॉल की एक बार व्यवस्था करने का निर्देश दिया।
दोषी को मिल सकती है सांत्वना: हाईकोर्ट
पैरोल देने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि इससे कुछ हद तक दोषी को सांत्वना मिल सकती है कि वह अपने माता-पिता को देख सकता है और उनसे बात कर सकता है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को एक जघन्य अपराध में दोषी ठहराया जाना और क्षेत्र में उसकी उपस्थिति के बारे में वास्तविक आशंका होना व्यापक सुरक्षा हित के लिए खतरनाक है।फिरोज को पैरोल देने का आधार नहीं
अदालत ने कहा कि यह भी एक तथ्य है कि सह-अभियुक्तों में एक एक पैरोल पर रिहा होने के बाद वह फिर से एक आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया था। हालांकि, बाद में एक मुठभेड़ में मार गिराया गया था। उपरोक्त तथ्यों व परिस्थितियों को देखते हुए फिरोज को पैरोल देने का आधार नहीं है और उसकी याचिका खारिज की जाती है।
भट को 2003 में गिरफ्तार किा गया था
भट को वर्ष 2003 में आतंकवादी के मामले में गिरफ्तार किया गया था और आतंकवाद निरोधक अधिनियम, भारतीय दंड संहिता और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। भट ने तर्क दिया था कि वह 44 वर्ष का है और 20 साल से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में हैं।उसने कहा कि वह शादी करना चाहता है और उसके वृद्ध माता-पिता उसके लिए दुल्हन की तलाश कर रहे हैं। ऐसे में उसे पैरोल पर रिहा किया जाए। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने यह कहते हुए पैरोल देने का विरोध किया कि आतंकवादी गतिविधियों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने से जुड़े मामलों में दोषियों को पैरोल नहीं दी जानी चाहिए। यह भी कहा कि मामले में एक सह-आरोपित पैरोल मिलने के बाद फरार होने के बाद आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया था।
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