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Delhi News: धर्म परिवर्तन के आधार पर कानूनी रूप से नहीं माना जा सकता विवाहित : हाई कोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि धर्म परिवर्तन के आधार पर कानूनी रूप से विवाहित नहीं माना जा सकता है। अदालत ने कहा कि पूरे मामले के तथ्यों व जांच से पता चलता है कि यह प्यार झूठ कानून और मुकदमेबाजी की कहानी है। कार्यालय रिकार्ड में कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं थे जहां दोनों पक्षों के बीच बातचीत और निकाह हुआ था।

By Vineet Tripathi Edited By: Shyamji Tiwari Updated: Fri, 19 Jan 2024 09:22 PM (IST)
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धर्म परिवर्तन के आधार पर कानूनी रूप से नहीं माना जा सकता विवाहित : हाई कोर्ट
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। दुष्कर्म समेत अन्य संगीन अपराध के लिए हुई प्राथमिकी को दोनों पक्षों के बीच शादी होने के आधार पर रद करने की मांग वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी महिला के बीच विवाह प्रथम दृष्टया वैध नहीं है। अभियुक्त द्वारा महिला को निकाहनामे के आधार पर इसकी वैधता का आश्वासन दिया गया है।

संभवत: आरोपित व महिला ने मान लिया था कि प्रतिवादी के धर्म परिवर्तन के कारण वे कानूनी रूप से विवाहित हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। ऐसे में उनका यह तर्क निराधार है कि शादीशुदा होने के कारण प्राथमिकी रद कर दी जाए। अदालत ने कहा कि पूरे मामले के तथ्यों व जांच से पता चलता है कि यह प्यार, झूठ, कानून और मुकदमेबाजी की कहानी है।

प्राथमिकी रद करने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि महिला अनपढ़ थी और केवल हिंदी में हस्ताक्षर कर सकती थी। उसे उर्दू की जानकारी नहीं थी। जांच अधिकारी के अनुसार कार्यालय रिकार्ड में कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं थे जहां दोनों पक्षों के बीच बातचीत और निकाह हुआ था।

धर्मांतरण के बाद कानूनी स्थिति से कराएं अवगत

अदालत ने कहा कि व्यक्ति को धर्मांतरण के बाद उसकी कानूनी स्थिति में संभावित बदलावों के बारे में अवगत कराया जाना चाहिए। अदालत ने निर्देश दिया कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत किए गए विवाह के मामलों को छोड़कर संबंधित अधिकारियों द्वारा धर्मांतरण के बाद अंतर-धार्मिक विवाह के समय दोनों पक्षों की उम्र, वैवाहिक इतिहास, वैवाहिक स्थिति और उसके साक्ष्य के बारे में हलफनामा प्राप्त किया जाना चाहिए। यह भी निर्देश दिया कि इस आशय का एक हलफनामा भी प्राप्त किया जाना चाहिए कि धर्म परिवर्तन स्वेच्छा से किया जा रहा है। धर्मांतरण और विवाह का प्रमाणपत्र अतिरिक्त स्थानीय भाषा में भी होना चाहिए।

मशीनी तरीके से टाइप परफार्मा पर न दर्ज करें बयान

अदालत ने यौन उत्पीड़न का शिकार महिला का मजिस्ट्रेट द्वारा सीआरपीसी-164 का बयान दर्ज करते समय पालन किए जाने वाले दिशानिर्देश भी जारी किए। अदालत ने पीड़िता का बयान मशीनी तरीके से या टाइप किए गए परफार्मा में दर्ज नहीं किए जाने चाहिए।

मजिस्ट्रेट को पीड़ित की गवाही देने और तर्कसंगत उत्तर देने की क्षमता का आकलन करने के लिए उम्र और शैक्षिक पृष्ठभूमि के अनुरूप प्रश्न पूछकर बातचीत करनी चाहिए। प्रारंभिक पूछताछ के साथ-साथ बयान स्थानीय भाषा में होने चाहिए। यौन हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसे मामले में पक्षकारों द्वारा सिस्टम में हेरफेर करने से भी सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।

यह है मामला

पूरा मामला दुष्कर्म और जान से मारने की धमकी से जुड़ा है और आरोपित मकसूद अहमद ने मामले से जुड़ी प्राथमिकी रद करने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। विधवा महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपित उसके पति का दोस्त था। सितंबर 2022 में वह उसके घर आया था और काेल्ड ड्रिंग में नशीला पदार्थ पिलाकर उसके साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद भी कई मौके पर धमकी देकर उसने दुष्कर्म किया।

हालांकि, आरोपित ने जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान निचली अदालत में दूसरी कहानी बताई। उसने बताया था कि दोनों के बीच वर्ष 2007 से लिव-इन रिलेशन में थे और अप्रैल 2012 में दोनों के बीच समझाैता हो गया था। हालांकि, छह महीने बाद दोनों दोबारा फिर पति-पत्नी के तौर पर रहने लगे। हालांकि, कुछ समय बाद विवाद होने पर महिला ने प्राथमिकी कराई। इतना ही नहीं 28 अक्टूबर 2022 को दोनों ने मुस्लिम रीति-रिवाज से शादी कर ली थी।

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