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'ऐसा लगेगा न्याय बिकने के लिए है', दिल्ली HC ने कहा- पैसे देकर रद्द नहीं की जा सकती यौन उत्पीड़न की FIR

Delhi High Court एक आरोपी ने यौन उत्पीड़न की प्राथमिकी रद्द कराने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। आरोपी ने महिला का उत्पीड़न किया। इसके बाद दोनों में समझौता हो गया और पैसों के भुगतान की बात हुई। कोर्ट ने मामले पर विचार करते हुए कहा कि इस तरह के गंभीर मामले में प्राथमिकी रद्द नहीं की जा सकती।

By Vineet Tripathi Edited By: Geetarjun Published: Tue, 02 Jul 2024 07:55 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2024 07:55 PM (IST)
पैसों के भुगतान के लिए नहीं रद्द की जा सकती यौन उत्पीड़न की प्राथमिकी।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि यौन उत्पीड़न के आरोपों से संबंधित मामलों को मौद्रिक भुगतान के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ऐसा करने का मतलब यह होगा कि न्याय बिक्री के लिए है। प्राथमिकी रद्द करने की मांग वाली राकेश यादव की याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में पीड़िता और उसके बच्चे के आत्म-सम्मान, जीवन और मृत्यु के मुद्दों को दर्ज किया गया है।

पीड़िता के पास उसे मिलने वाली धमकियों और अन्य आरोपों के सुबूत हैं। पीठ ने कहा कि इस अदालत की राय है कि यौन हिंसा के आरोपों से जुड़े आपराधिक मामलों को मौद्रिक भुगतान के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है। पीठ ने उक्त टिप्पणी भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत हुई प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार करते हुए की।

महिला का चार बार यौन उत्पीड़न

प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि संबंधित महिला का एक व्यक्ति द्वारा चार बार यौन उत्पीड़न किया गया था। आरोपित और पीड़िता की मुलाकात इंटरनेट मीडिया पर हुई थी। याचिका के अनुसार, आरोपी ने खुद को तलाकशुदा बताया और शादी के झूठे बहाने कर महिला के साथ यौन उत्पीड़न किया।

गंभीर मामले में नहीं रद्द होगी प्राथमिकी

बाद में दोनों के बीच समझौता हो गया और 12 लाख रुपये के भुगतान पर मामले को रद्द करने पर सहमति बनी। आरोपी की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए अंततः 1.5 लाख रुपये की राशि तय की गई थी। कोर्ट ने मामले पर विचार करते हुए कहा कि इस तरह के गंभीर मामले में प्राथमिकी रद्द नहीं की जा सकती।

समझौता के आधार पर प्राथमिकी रद्द नहीं

पीठ ने कहा कि अदालत की राय है कि आरोपी और शिकायतकर्ता को आपराधिक न्याय प्रणाली में हेरफेर करने या अपने स्वयं के हितों की पूर्ति के लिए न्यायिक संसाधनों का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसलिए समझौता करने के आधार पर पीड़िता-आरोपित अधिकार के तौर पर प्राथमिकी को रद्द करने की मांग नहीं कर सकते।

पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को मामले का फैसला उसकी योग्यता के आधार पर करना चाहिए और शिकायतकर्ता व आरोपित दोनों के लिए प्राकृतिक न्याय के आलोक में तथ्यों की जांच करनी चाहिए।


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