Move to Jagran APP

'मुंह बाेले बेटे या सामाजिक रिश्तों को दोबारा से बनाने के आधार पर नहीं दी जा सकती पैरोल', दिल्ली HC ने खारिज की याचिका

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पैरोल पाने का हकदार नहीं है। अदालत ने नोट किया कि याची ने पूर्व में उसे दी गई पैरोल को दो मौके पर जंप किया है। सह-आरोपित को पैरोल देने के याची के तर्क को अदालत ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि सह-आरोपित को आपात स्थिति के कारण पैरोल दी गई है और उसे पैरोल नहीं दी जा सकती है।

By Vineet Tripathi Edited By: Sonu Suman Published: Mon, 24 Jun 2024 05:42 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2024 05:42 PM (IST)
मुंह बाेले बेटे या सामाजिक रिश्तों को दोबारा से बनाने के आधार पर नहीं दी जा सकती पैरोल

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। मुंह बोले बेटे और सामाजिक रिश्तों को दोबारा से बनाने के आधार पर पैरोल की मांग को दिल्ली हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया है। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में दोषी ने एक ऐसे व्यक्ति की मौत के आधार पर पैरोल देने की मांग की है, जिसे उसने बेटा होने का दावा किया है।

अदालत ने कहा कि ऐसे में जबकि मृतक याची का जैविक पुत्र नहीं है, उसे न तो कानूनी परिभाषा में उसका असली बेटा माना जा सकता है और न ही दिल्ली जेल नियम-2018 के तहत पैरोल देने के लिए परिवार के रूप में माना जा सकता है।

याचिकाकर्ता पैरोल पाने का हकदार नहीं: हाईकोर्ट

उक्त तथ्यों को देखते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पैरोल पाने का हकदार नहीं है। अदालत ने नोट किया कि याची ने पूर्व में उसे दी गई पैरोल को दो मौके पर जंप किया है। सह-आरोपित को पैरोल देने के याची के तर्क को अदालत ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि सह-आरोपित को आपात स्थिति के कारण पैरोल दी गई है और उसे पैरोल नहीं दी जा सकती है।

2012 में कठोर कारावास की सजा सुनाई थी

याचिका के अनुसार याचिकाकर्ता को फरवरी 2012 में अपहरण के मामले में तीस हजारी कोर्ट ने कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी। 12 साल से जेल में बंद याचिकाकर्ता ने पैरोल देने की मांग करते हुए कहा कि वह बेटे के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सका था और उसे कुछ समय के लिए कस्टडी पैरोल दी गई थी।

दो बार याचिकाकर्ता पैरोल जंप कर चुका है

उसने कहा कि लंबे समय से जेल में है और पूर्व में दी पैराेल की शर्तों का उसने पूरा पालन किया है। उसने कहा कि बेटे की मौत के दौरान वह दोबारा अपने परिवार के साथ रिश्ते स्थापित करना चाहता है। वहीं, अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि पूर्व में दो बार याचिकाकर्ता ने पैरोल को जंप किया है और जेल के अंदर भी उसका आचरण असंतोषजनक है। ऐसे में उसकी याचिका खारिज की जानी चाहिए।

ये भी पढ़ें- इस मानसून भी पुराने लोहा पुल के सहारे चलेगी ट्रेनें, 25 साल बाद भी इसके नजदीक नया पुल नहीं बन सका


This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.