'मुंह बाेले बेटे या सामाजिक रिश्तों को दोबारा से बनाने के आधार पर नहीं दी जा सकती पैरोल', दिल्ली HC ने खारिज की याचिका
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पैरोल पाने का हकदार नहीं है। अदालत ने नोट किया कि याची ने पूर्व में उसे दी गई पैरोल को दो मौके पर जंप किया है। सह-आरोपित को पैरोल देने के याची के तर्क को अदालत ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि सह-आरोपित को आपात स्थिति के कारण पैरोल दी गई है और उसे पैरोल नहीं दी जा सकती है।
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। मुंह बोले बेटे और सामाजिक रिश्तों को दोबारा से बनाने के आधार पर पैरोल की मांग को दिल्ली हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया है। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में दोषी ने एक ऐसे व्यक्ति की मौत के आधार पर पैरोल देने की मांग की है, जिसे उसने बेटा होने का दावा किया है।
अदालत ने कहा कि ऐसे में जबकि मृतक याची का जैविक पुत्र नहीं है, उसे न तो कानूनी परिभाषा में उसका असली बेटा माना जा सकता है और न ही दिल्ली जेल नियम-2018 के तहत पैरोल देने के लिए परिवार के रूप में माना जा सकता है।
याचिकाकर्ता पैरोल पाने का हकदार नहीं: हाईकोर्ट
उक्त तथ्यों को देखते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पैरोल पाने का हकदार नहीं है। अदालत ने नोट किया कि याची ने पूर्व में उसे दी गई पैरोल को दो मौके पर जंप किया है। सह-आरोपित को पैरोल देने के याची के तर्क को अदालत ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि सह-आरोपित को आपात स्थिति के कारण पैरोल दी गई है और उसे पैरोल नहीं दी जा सकती है।2012 में कठोर कारावास की सजा सुनाई थी
याचिका के अनुसार याचिकाकर्ता को फरवरी 2012 में अपहरण के मामले में तीस हजारी कोर्ट ने कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी। 12 साल से जेल में बंद याचिकाकर्ता ने पैरोल देने की मांग करते हुए कहा कि वह बेटे के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सका था और उसे कुछ समय के लिए कस्टडी पैरोल दी गई थी।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।