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'अदालत के बाहर कुछ हो तो क्या हम आंखें बंद कर लें', हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से क्यों कहा ऐसा; वकील से किए ये सवाल

Delhi High Court ने अप्राकृतिक यौन संबंध और कुकर्म के अपराध के मामले में केंद्र सरकार के वकील से कई सवाल पूछे। साथ ही हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को ऐसे अपराध पर छह महीने में सजा का प्रावधान करने को कहा है। पीठ ने कहा अगर अदालत के बाहर कुछ होता है तो क्या हम अपनी आंखें बंद कर लेंगे।

By Jagran News Edited By: Kapil Kumar Updated: Thu, 29 Aug 2024 05:14 PM (IST)
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कुकर्म जैसे अपराध को लेकर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को सजा प्रावधान करने को कहा। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में अप्राकृतिक यौन संबंध और कुकर्म के अपराध को लेकर कोई धारा नहीं होने के मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को जल्द से जल्द निर्णय लेने को कहा है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि याचिका को प्रतिवेदन के तौर पर लेकर छह महीने के अंदर निर्णय किया जाए। साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता दी कि अगर सरकार से देरी हो तो वह फिर अदालत से संपर्क कर सकता है।

कोर्ट ने वकील से पूछे सवाल

केंद्र सरकार के स्थायी वकील अनुराग अहलूवालिया ने कहा कि मुद्दा विचाराधीन है। इसके लिए कुछ समय की आवश्यकता होगी। इस पर पीठ ने सवाल पूछा कि अगर आज इस प्रकृति का कोई अपराध होता है तो क्या होगा?

अदालत ने कहा कि लोग जो पूछ रहे थे वह यह नहीं था कि सहमति से (अप्राकृतिक) यौन संबंध को दंडनीय बनाया जाए। आपने बिना सहमति के (अप्राकृतिक) यौन संबंध को भी गैरदंडनीय बना दिया। मान लीजिए, आज अदालत के बाहर कुछ होता है, तो क्या हम सब अपनी आंखें बंद कर लेंगे, क्योंकि कानून की किताबों में यह दंडनीय अपराध नहीं है?

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पीठ ने कहा कि मामले की तात्कालिकता है और सरकार को इसे समझना चाहिए। आईपीसी की जगह पर एक जुलाई 2024 से लागू बीएनएस में कुकर्म या अन्य अप्राकृतिक यौन संबंधों के कृत्यों को दंडित करने के प्रविधान को बाहर रखने के विरुद्ध याचिका दायर की है।

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