Delhi News: बच्ची के माता-पिता और अपहरणकर्ता के बीच हुई सुलह, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- रद्द नहीं होगी FIR
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अपहरणकर्ता और बच्चे के माता-पिता के बीच हुए समझौते के आधार पर प्राथमिकी को रद्द नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि बच्चों के अपहरण या तस्करी से जुड़े मामले गंभीर अपराध हैं। ऐसे समझौतों के आधार पर प्राथमिकी को रद्द कर दिया जाता है तो यह कानून के शासन को कमजोर करने जैसा होगा।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। नाबालिग लड़की के अपहरण के मामले में आरोपित के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अपहरणकर्ता और बच्चे के माता-पिता के बीच हुए समझौते के आधार पर प्राथमिकी को रद्द नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि बच्चों के अपहरण या तस्करी से जुड़े मामले गंभीर अपराध हैं।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अपहरणकर्ताओं और बच्चे के माता-पिता के बीच हुआ समझौता चिंताजनक था। पीठ ने कहा कि बच्चों के अपहरण और तस्करी एक गंभीर अपराध हैं, जिनका बड़े पैमाने पर समाज के साथ-साथ बच्चों की भलाई और विकास पर भी प्रभाव पड़ता है।
पीठ ने कहा कि यदि ऐसे मामलों में उदार दृष्टिकोण अपनाया जाता है और ऐसे समझौतों के आधार पर प्राथमिकी को रद्द कर दिया जाता है, तो यह आपराधिक कानून के सिद्धांतों को पराजित करने और इस प्रक्रिया में कानून के शासन को कमजोर करने जैसा होगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से समाज में यह संदेश जाएगा कि बच्चों के खिलाफ अपराधों की गंभीरता को निजी समझौतों के जरिये कम किया जा सकता है या नजरअंदाज किया जा सकता है। पीठ ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि बच्चों के माता-पिता चाहते थे कि वह अपहरणकर्ताओं के साथ रहे।
पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों को ऐसी दुविधाओं का सामना करना पड़ता है, फिर भी उन्हें कानून के पक्ष में दृढ़ता से खड़ा रहना पड़ता है। कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि बच्ची अपहर्ताओं से जुड़ गई है।
बच्ची को अगवा कर 20 हजार रुपये में बेचा
वर्ष 2020 में मामले में तीन आरोपित रूबीना, निशा और कपिल कुमार को गिरफ्तार किया गया और उनके पास से नाबालिग को बरामद किया गया था। नाबालिग बच्ची और उसके छोटे भाई का वर्ष 2020 में अपहरण कर लिया गया था। बाद में लड़के को उसके माता-पिता को सौंप दिया गया। जांच के दौरान पता चला कि रूबीना ने बच्ची का अपहरण किया था और फिर उसे 20 हजार रुपये में निशा और कपिल को बेच दिया था।
केस रद्द करने को लेकर पहुंचे कोर्ट
आरोपित व्यक्तियों ने इस आधार पर आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि उन्होंने नाबालिग के माता-पिता के साथ मामला सुलझा लिया था। वहीं, आरोपित निशा और कपिल ने दावा किया कि उनको नहीं पता था कि बच्चे का अपहरण कर लिया गया था। उन्होंने कहा कि मामले में उनपर एक मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है क्योंकि चिकित्सा कारणों से, वह अपना बच्चा पैदा करने में सक्षम नहीं थे।
कानूनी रूप से गोद लेने पर कोई आपत्ति नहीं
उन्होंने पीठ को बताया कि अगर वह कानूनी रूप से बच्चे को गोद लेते हैं तो नाबालिग लड़की के माता-पिता को कोई आपत्ति नहीं है। पीठ ने मानवीय दृष्टिकोण के तर्क को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि यह न केवल आपराधिक न्यायशास्त्र के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ होगा, बल्कि जघन्य अपराध करने वालों को दंडित करने की समाज की वैध अपेक्षाओं के भी खिलाफ होगा।