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POCSO Case: अगर पीड़िता की उम्र में कोई संदेह हो तो आरोपी को मिलना चाहिए इसका लाभ: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अस्थिभंग (हड्डियों के परीक्षण के जरिए आयु पहचाने का तरीका) के आधार पर उम्र निर्धारित की जानी हो तो रिपोर्ट में अनुमानित उम्र में दी गई ऊपरी आयु पर विचार किया जाना चाहिए। अगर मामला पॉक्सो अधिनियम का है तो दो वर्ष की त्रुटि सीमा लागू की जानी चाहिए। पीड़िता की उम्र अस्थिभंग के जरिए 16-18 उम्र सामने आई।

By Jagran News Edited By: Geetarjun Published: Wed, 03 Jul 2024 07:36 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jul 2024 07:36 PM (IST)
अगर पीड़िता की उम्र में कोई संदेह हो तो आरोपी को मिलना चाहिए इसका लाभ: दिल्ली हाईकोर्ट

पीटीआई, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कुछ बेहद अहम टिप्पणियां की हैं जो ऐसे मामलों में भविष्य के लिए नजीर बन सकता है। क्योंकि देश की कानून प्रणाली कहती है कि संदेह के आधार पर आरोपी पर केस नहीं चला सकते हैं। कोर्ट ने यह हड्डियों के परीक्षण के आधार पर बताई गई पीड़िता की अनुमानित उम्र पर कहा है।

यौन उत्पीड़न में ट्रायल कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि पीड़ित की उम्र को ऊपरी आयु पर विचार करने और दो वर्ष की त्रुटि का मार्जिन देने के बाद 20 वर्ष माना जाना चाहिए। पीड़िता की उम्र अस्थिभंग के जरिए 16-18 उम्र सामने आई। लेकिन अनुमानित आयु होने की वजह से दो वर्ष ज्यादा माना गया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा?

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अस्थिभंग (हड्डियों के परीक्षण के जरिए आयु पहचाने का तरीका) के आधार पर उम्र निर्धारित की जानी हो तो रिपोर्ट में अनुमानित उम्र में दी गई ऊपरी आयु पर विचार किया जाना चाहिए। अगर मामला पॉक्सो अधिनियम का है तो दो वर्ष की त्रुटि सीमा लागू की जानी चाहिए। त्रुटि सीमा मतलब जो अनुमानित उम्र में सबसे ज्यादा उम्र बताई गई है तो उसमें दो वर्ष और जोड़ देना।

संदेह पर नहीं चला सकते केस

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और मनोज जैन की पीठ कहा कि निर्दोषता की धारणा देश की प्रतिकूल कानूनी प्रणाली में एक अत्यावश्यक दर्शन है। अगर कोई संदेह जैसा है तो ये लाभ आरोपी को मिलना चाहिए। निर्दोषता की धारणा का अर्थ है कि आपराधिक मुकदमे में किसी भी आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसे दोषी साबित नहीं कर दिया जाता।

अस्थिभंग के आधार पर पता की गई उम्र

हड्डियों के सख्त होने या अस्थिभंग के आधार पर किसी की अनुमानित उम्र पता की जाती है। कोर्ट ने स्कूल प्रमाण पत्र या जन्म प्रमाण पत्र न हो तो कोर्ट अस्थिभंग परीक्षण का आदेश देता है। इसके जरिए सटीक उम्र का पता नहीं चल पाता है, लेकिन एक अनुमानित उम्र पता चलती है।

हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के कुछ फैसलों को ध्यान में रखते हुए कहा कि अस्थिभंग परीक्षण में उम्र सटीक नहीं हो सकती है और इसलिए त्रुटि का पर्याप्त मार्जिन दिया जाना चाहिए।

क्या कहती है कानून प्रणाली

कोर्ट ने कहा कि हम इस तथ्य से अनजान नहीं हो सकते हैं कि हम कानून की प्रतिकूल प्रणाली का पालन कर रहे हैं, जहां निर्दोषता की धारणा अपरिहार्य दर्शन है। चूंकि भारत में प्रतिकूल प्रणाली 'आरोपी की निर्दोषता' पर आधारित है। इसलिए सबूत का भार आम तौर पर अभियोजन पक्ष पर पड़ता है।

भारत की आपराधिक प्रणाली तय करती है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ मामला संदेह पर नहीं चलना चाहिए। दो जुलाई को अपने फैसले में कहा कि इसका मतलब है कि अगर कहीं कोई संदेह है तो इसका लाभ आरोपी को मिलना चाहिए।

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यौन उत्पीड़न में पॉक्सो के ऐसे मामलों में जहां भी कोर्ट अगर अस्थिभंग परीक्षण की रिपोर्ट के आधार पर पीड़ित की उम्र निर्धारित करने के लिए कहता है तो अनुमानित उम्र की सीमा में जो सबसे ज्यादा उम्र है उसे पीड़ित की उम्र माना जाना चाहिए। ऐसे में दो साल का त्रुटि मार्जिन भी लागू किया जाना चाहिए।


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