भाभी की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, जरूरत के समय बहन को बेसहारा नहीं छोड़ता भाई
पीठ ने कहा कि पति पर दूसरी शादी से हुए बच्चे के साथ ही 79 वर्षीय आश्रित पिता व एक तलाकशुदा बहन की जिम्मेदारी है। रिश्तों में गणितीय सूत्र नहीं देखना चाहिए। हर बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल करे।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। भरण-पोषण के मामले में भाई-बहन के रिश्ते को भारतीय संस्कृति के रूप में रेखांकित करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। ननद (पति की तलाकशुदा बहन) पर कोई राशि खर्च न करने की महिला की दलील को ठुकराते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि भारत में भाई-बहन का रिश्ता भले ही एक-दूसरे पर वित्तीय निर्भरता का नहीं हो सकता है, लेकिन उम्मीद की जाती है कि भाई या बहन जरूरत के समय एक-दूसरे को अकेला नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि रिश्ते में एक-दूसरे के प्रति देखभाल की गहरी भावना होती है।
छह हजार रुपये भरण-पोषण देने के पारिवारिक न्यायालय के आदेश के खिलाफ महिला की पुनरीक्षण याचिका पर अदालत ने विचार करने के बाद यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि इन परिभाषाओं को पारिवारिक सदस्यों के बीच एकजुटता की हिमायती भारतीय संस्कृति के आलोक में पढ़ा जाना चाहिए।
अदालत के विचार से भले ही तलाकशुदा बहन कानूनी व नैतिक रूप से अपने पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है, लेकिन विशेष अवसरों पर और किसी आकस्मिक आवश्यकता के मामले में भाई से अपनी बहन के लिए कुछ राशि खर्च करने की अपेक्षा की जाती है। ऐसे में प्रतिवादी के नैतिक दायित्व के रूप में तलाकशुदा बहन के लिए वार्षिक आधार पर व्यय के रूप में कुछ राशि अलग रखी जानी चाहिए।
पीठ ने कहा कि पति पर दूसरी शादी से हुए बच्चे के साथ ही 79 वर्षीय आश्रित पिता व एक तलाकशुदा बहन की जिम्मेदारी है। रिश्तों में गणितीय सूत्र नहीं देखना चाहिए। हर बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल करे। इस टिप्पणी के साथ पीठ ने प्रतिवादी की कुल आय को सभी पक्षों में समान रूप से बांटते हुए महिला की भरण-पोषण राशि छह हजार से बढ़ाकर साढ़े सात हजार करने का आदेश दिया।