दिल्ली HC ने 'वर्जिनिटी टेस्ट' को बताया असंवैधानिक, सच जानने के लिए महिला आरोपी का नहीं करा सकते यह टेस्ट
संविधान में महिला को गरिमा का अधिकार दिया गया है। पीठ ने कहा कि इसलिए वह यह व्यवस्था देती है कि हिरासत में यह परीक्षण लैंगिक भेदभाव पूर्ण है और महिला आरोपित की गरिमा के मानवाधिकार का उल्लंघन है।
By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Wed, 08 Feb 2023 10:45 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। महिला आरोपित के कौमार्य परीक्षण को मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए इसे लैंगिक भेदभाव और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन बताया। कोर्ट ने कहा कि इसके लिए किसी कानूनी प्रक्रिया में प्रविधान नहीं है। ऐसा परीक्षण अमानवीय व्यवहार का रूप है।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने यह आदेश सिस्टर सेफी की याचिका पर सुनाया जिन्होंने वर्ष 1992 में केरल में एक नन की मौत से संबंधित आपराधिक मामले के सिलसिले में उनका कौमार्य परीक्षण कराए जाने को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।
संविधान में महिला को दिया गया गरिमा का अधिकार
पीठ ने कहा कि न्यायिक हिरासत में ली गयी महिला का कौमार्य परीक्षण असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। संविधान में महिला को गरिमा का अधिकार दिया गया है। पीठ ने कहा कि इसलिए वह यह व्यवस्था देती है कि हिरासत में यह परीक्षण लैंगिक भेदभाव पूर्ण है और महिला आरोपित की गरिमा के मानवाधिकार का उल्लंघन है।पुलिस हिरासत में रहते हुए भी महिला को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। यह परीक्षण करना न केवल उसकी शारीरिक पवित्रता, बल्कि उसकी मनोवैज्ञानिक पवित्रता के साथ जांच एजेंसी के हस्तक्षेप के समान है। पीठ ने कहा कि गरिमा का अधिकार तब भी निलंबित नहीं होता है जब किसी व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप लगता है या उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है।
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