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HC ने दिल्ली-UP पुलिस को चेताया, बिना मजबूत तथ्य के ना दायर करें याचिका; कोर्ट का समय-पैसा होता है बर्बाद

1998 में दर्ज हत्या के एक मामले में वर्ष 2015 में पांच आरोपियों को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस को चेतावनी दी है। कोर्ट ने मामले में उचित तथ्य और रिकॉर्ड पेश करने में नाकाम होने के बावजूद भी पुलिस ने बरी करने के निर्णय के विरुद्ध अपील याचिका दायर करने पर नाराजगी व्यक्त की।

By Vineet TripathiEdited By: GeetarjunUpdated: Tue, 12 Sep 2023 07:38 PM (IST)
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HC ने दिल्ली-UP पुलिस को चेताया, बिना मजबूत तथ्य के ना दायर करें याचिका; कोर्ट का समय-पैसा होता है बर्बाद

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। वर्ष 1998 में दर्ज हत्या के एक मामले में वर्ष 2015 में पांच आरोपियों को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस को चेतावनी दी है। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने मामले में उचित तथ्य और रिकॉर्ड पेश करने में नाकाम होने के बावजूद भी पुलिस ने बरी करने के निर्णय के विरुद्ध अपील याचिका दायर करने पर नाराजगी व्यक्त की। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष को बरी करने के फैसले/आदेश के विरुद्ध अपील दायर करने का निर्णय लेते समय सतर्क और निष्पक्ष रहना चाहिए।

पीठ ने कहा कि अदालत के सामने बड़ी संख्या में ऐसे मामले आए हैं जिनका कोई आधार नहीं है, फिर भी अपील दायर की जाती है। इससे न सिर्फ सार्वजनिक राजकोष को नुकसान होता है बल्कि अदालतों का बहुमूल्य सार्वजनिक समय और पैसा बर्बाद होता है।

दोनों राज्यों की पुलिस ने की लापरवाही

अदालत ने कहा कि पांच व्यक्तियों के बर्बाद हुए समय व प्रतिष्ठा की भरपाई पैसे या किसी अन्य रूप में नहीं की जा सकती। अदालत की राय में जांच में दोनों राज्यों की पुलिस द्वारा किए गए इस तरह के लापरवाह आचरण के लिए उन्हें आगाह किया जाता है।

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हत्या के मामरे में पांच लोगों को किया बरी

उक्त टिप्पणी करते हुए अदालत ने जून 1998 में गाजियाबाद के मसूरी में चरण सिंह, मुकेश और राजबीर सिंह की हत्या के मामले में अशोक (घोषित अपराधी), शोभा राम, योगेश, राकेश और रुकमेश को बरी कर दिया।

लोगों को गलत तरीका से फंसाना था

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अदालत ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड पर पेश सुबूतों से पता चलता है कि यह मामला न केवल प्रतिवादियों को गलत तरीके से फंसाने का है, बल्कि उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद पुलिस और सीबीआईडी द्वारा की गई एक गैरकानूनी जांच का भी मामला है। सुबूतों से स्पष्ट है कि प्रतिवादी अशोक, शोभा राम और योगेश घटना के दिन मुजफ्फरनगर की जिला जेल में थे और इस मामले में हथियार की कोई बरामदगी प्रभावित नहीं हुई।

शिकायतकर्ता टेक चांद ने प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि हथियार से लैस आरोपितों ने उनके भाई समेत तीन लोगों की हत्या की थी। निचली अदालत ने सुबूतों के अभाव में आरोपितों को बरी कर दिया था।

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