सर्विस चार्ज लेने के मामले में सुनवाई जारी रखेगा दिल्ली HC, रेस्तरां एसोसिएशन ने दायर की थी याचिका
पांच सितंबर को हुई पिछली सुनवाई पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रेस्तरां निकाय के सदस्यों से कहा था कि अपने ग्राहकों से सेवा शुल्क के रूप में ली जाने वाली राशि के लिए कर्मचारी योगदान शब्द का उपयोग करें। अदालत ने निर्देश दिया था कि सेवा शुल्क लेने वाले एफएचआरएआइ के सदस्य इसके लिए कर्मचारी योगदान शब्द का इस्तेमाल करेंगे।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। सेवा शुल्क लेने से जुड़े मामले पर मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट आगे की सुनवाई जारी रखेगा। पांच सितंबर को हुई पिछली सुनवाई पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रेस्तरां निकाय के सदस्यों से कहा था कि अपने ग्राहकों से सेवा शुल्क के रूप में ली जाने वाली राशि के लिए कर्मचारी योगदान शब्द का उपयोग करें।
न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह की पीठ ने फेडरेशन आफ होटल्स एंड रेस्तरां एसोसिएशन आफ इंडिया (एफएचआरएआइ) को निर्देश दिया था कि वे अपने मेन्यू कार्ड में इसे स्पष्ट रूप से दर्ज करें और बिल का दस प्रतिशत से अधिक शुल्क न लें।
अदालत ने उक्त निर्देश होटलों और रेस्तरांओं को भोजन बिलों पर स्वचालित रूप से सेवा शुल्क लगाने से रोकने वाले दिशानिर्देशों के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया था।
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एफएचआरएआइ ने अदालत को सूचित किया था कि उनके सदस्यों के रूप में 3300 से अधिक प्रतिष्ठान हैं और जबकि इसके सदस्यों के बीच सेवा शुल्क लगाने के संबंध में कोई एकरूपता नहीं है। उन्हें राशि के लिए वैकल्पिक शब्द के उपयोग पर कोई आपत्ति नहीं थी।
एफएचआरएआइ ने कहा था कि इसके कुछ सदस्य अनिवार्य शर्त के रूप में सेवा शुल्क लगा रहे हैं। 1100 सदस्यों वाले याचिकाकर्ता नेशनल रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कहा कि सेवा शुल्क स्वीकृत शब्द है और इसे प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है। इसके उपयोग के संबंध में कोई भ्रम नहीं है।
इस पर अदालत ने कहा था कि मामले में सुनवाई की जरूरत है। ऐसे में यह निर्देश दिया जाता है कि सेवा शुल्क लेने वाले एफएचआरएआइ के सदस्य इसके लिए कर्मचारी योगदान शब्द का इस्तेमाल करेंगे।
पिछली सुनवाई पर अदालत ने याचिकाकर्ता रेस्तरां एसोसिएशन से पूछा था कि क्या सेवा शुल्क शब्द को कर्मचारी कल्याण निधि जैसी वैकल्पिक शब्दावली से बदलने पर कोई आपत्ति है या नहीं। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) द्वारा चार जुलाई 2022 को जारी किए गए दिशानिर्देशों पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी।