जिस मालचा महल के लिए बेगम विलायत ने लड़ी लड़ाई, वहीं की आत्महत्या; अब है हॉन्टेड हाउस
History of Malcha Mahal चाणक्यपुरी के जंगल में स्थित मालचा महल अपनी डरावनी स्थिति के कारण लोगों में कौतूहल का विषय बना हुआ है। इस महल को लेकर कहानी कुछ दिलचस्प है। लोगों का ऐसा मानना है कि यहां आत्माएं भटकती हैं।
By Nitin YadavEdited By: Nitin YadavUpdated: Sat, 06 May 2023 10:36 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण ऑनलाइन डेस्क। देश की राजधानी दिल्ली में घूमने की एक से बढ़कर एक खूबसूरत जगहें हैं। दोस्तों के साथ मनोरंजन करने से लेकर परिवार के साथ पिकनिक मनाने तक के लिए दिल्ली में हर तरह के स्थान मौजूद हैं। अगर आप डरावने स्मारक देखना चाहते हैं और उनके बारे में वहीं जाकर कहानी सुनना चाहते हैं तो दिल्ली में आपके लिए ऐसा ही एक महल है जिसको मालचा महल के नाम से जाना जाता है।
मालचा महल का इतिहास
चाणक्यपुरी के जंगल में स्थित मालचा महल अपनी डरावनी स्थिति के कारण लोगों में चर्चा का विषय है। तुग़लक़ के समय में बनाया गया यह स्मारक सालों तक खाली पड़ा है। लोगों का ऐसा मानना है कि यहां आत्माएं भटकती हैं। इस महल को 1325 में सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने अपने शिकारगाह के रूप में बनवाया था, लेकिन 1985 में खुद को अवध के नवाब रहे शाही परिवार का सदस्य होने का दावा करने वाली महिला बेगम विलायत महल अपने परिवार के साथ यहां रहने लगीं, इसके बाद इस जगह को ‘विलायत महल’ के नाम से जाना जाने लगा। वह महिला बिना बिजली-पानी के अपने 10-11 कुत्तों के साथ यहां रहती थीं।
महिला ने रेलवे स्टेशन के वीआईपी लाउंज को बनाया घर
इस महल को लेकर कहानी कुछ दिलचस्प है। अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को 1856 में अंग्रेजों ने सत्ता से बेदखल कर दिया था। उन्हें कोलकाता जेल में डाल दिया गया, जहां उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 26 साल गुजारे। जब 1947 में देश को आजादी मिली तब तक वाजिद अली शाह का खानदान इधर-उधर बिखर चुका था। बेगम विलायत महल 1970 के करीब लोगों के सामने आईं। उनका दावा था कि वो अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह की परपोती हैं। वह भारत सरकार से उन तमाम जायदाद के बदले मुआवजे की मांग कर रहीं थीं, जिसे भारत सरकार ने उनके दादा-परदादा से जब्त कर लिया था। जब विलायत महल की मांगों पर कोई सुनवाई नहीं हुई तो एक दिन अचानक उन्होंने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के वीआईपी लाउंज को अपना घर बना लिया। 10 साल तक उन्हें वहां से हटाने की नाकाम कोशिशें होती रहीं। आखिरकार सरकार ने उन्हें मालचा महल दे दिया।
महिला ने महल में की आत्महत्या
मालचा महल में आने के तकरीबन 10 साल बाद 62 साल की उम्र में बेगम विलायत महल ने 1993 में उन्होंने आत्महत्या कर ली। उनके बाद उनके परिवार के अन्य लोग भी यहीं एक-एक करके मर गए। इस परिवार की अंतिम मौत विलायत महल के बेटे अली रज़ा की 2017 में हुई। उसके बाद से यह जगह सुनसान है। कहा जाता है कि भूख से उनकी मौत हो गई। मौत के बारे में भी करीब एक माह बाद पता चल सका।रात में और डरावना हो जाता है महल
ऐसा भी कहा जा रहा है कि सूरज डूबने के बाद जंगल के भीतर मौजूद यह स्थान बहुत सुनसान हो जाता है। छत की तरफ जाती सीढ़ियां रात में एक डरावना अनुभव देती हैं। साथ ही हिरण, बंदर, उल्लू और चमगादड़ की आवाज़ें इस अनुभव को रात में और अधिक डरावना बना देती हैं।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।