Delhi Hospital: न पूरी दवा है और न ही पूरे डॉक्टर, इंदिरा गांधी अस्पताल खुद है बीमार
दिल्ली के इंदिरा गांधी अस्पताल में आधुनिक सुविधाओं की कमी मरीजों के लिए परेशानी का सबब बन रही है। दवाओं और डॉक्टरों की कमी के कारण मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल में इमरजेंसी में ग्लूकोज की बोतल तक की किल्लत है। साथ ही पर्चे पर लिखी 50 प्रतिशत से अधिक दवाएं समाप्त हो चुकी हैं।
रिषभ बाजपेयी, पश्चिमी दिल्ली। द्वारका के सबसे बड़े इंदिरा गांधी अस्पताल में लिफ्ट, सेंट्रलाइज्ड एसी और सेंसर वाले गेट जैसी आधुनिक सुविधाएं तो हैं पर यहां पर दवा और डॉक्टर्स की काफी कमी है। डॉक्टर्स की कमी के चलते सबसे अधिक समस्या जच्चा-बच्चा विभाग को झेलनी पड़ रही है, क्योंकि यहां पर केवल दो डॉक्टर ही हैं, जो कि दिन में ड्यटी पर रहते हैं।
रात के समय में प्रशिक्षु डॉक्टर के भरोसे जच्चा-बच्चा को छोड़ा जा रहा है। अस्पताल की इमरजेंसी में ग्लूकोज की बोतल नहीं है। साथ ही पर्चे पर लिखी 50 प्रतिशत से अधिक दवाएं समाप्त हो चुकी हैं। एक्स-रे की सुविधा रात आठ बजे के बाद नहीं है। माइनर ओटी डॉक्टर्स की कमी की वजह से बंद पड़ा है। ब्लड बैंक बना ही नहीं है।
भटकते हैं इमरजेंसी में आए मरीज
इमरजेंसी गेट पर लगे कैमरे काम नहीं कर रहे हैं। खून या अन्य जांच के लिए बनाई गई लैब शाम चार बजे के बाद बंद हो जाती है, जिसकी वजह से शाम को इमरजेंसी में आए मरीजों को जांच करवाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है।सुविधाएं हैं, फिर भी...
द्वारका सेक्टर-9 स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल की तीन अलग-अलग बिल्डिंग हैं, जिसमें ओपीडी, इमरजेंसी और वार्ड हैं। मरीजों का ख्याल रखने के लिए सभी बिल्डिंग में लिफ्ट और सेंट्रलाइज्ड एसी जैसी अच्छी सुविधाएं हैं। अस्पताल में रोजाना 15-16 ओपीडी संचालित हो रही है, जिसमें रोजाना करीबन 3,000 से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं।
हैरानी वाली यह है कि इस अस्पताल में मरीजों को न तो पूरी दवाएं मिल पा रही हैं और न ही डॉक्टर्स की कमी के कारण उनका एक्स-रे हो रहा है। इमरजेंसी में ग्लूकोस की बोतल तक की किल्लत है। जच्चा-बच्चा केंद्र में रोजाना पांच से छह डिलीवरी होती है।
16 डॉक्टर की जगह सिर्फ दो डॉक्टर
नाम न छापने की शर्त पर एक चिकित्सक ने बताया कि यहां पर 16 डॉक्टर होने चाहिए, लेकिन यहां पर इस समय केवल दो ही डॉक्टर हैं,जो कि दिन में ड्यूटी पर रहते हैं। इस कारण रात के समय में जच्चा-बच्चा को प्रशिक्षु डॉक्टर के भरोसे रहना पड़ता है। रात में कोई सीनियर डॉक्टर नहीं होता है। जच्चा-बच्चा के लिए अस्पताल में ओटी भी नहीं है।
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