गालिब उस धड़कन की तरह हैं जो हर दिल्लीवासी के दिल में धड़कती है
दिल्ली गालिब का 220वां जन्मोत्सव मना रही है। इस मौके पर आयोजित दो दिवसीय गालिब की दिल्ली कार्यक्रम में उन्हें नज्म, परिचर्चा, जायकों संग याद किया गया।
नई दिल्ली [जेएनएन]। मिर्जा असदुल्लाह बेग खां उर्फ गालिब। भारत की सरजमीं पर शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने इस नाम को न सुना हो। फिर चाहे आप प्यार में हों या फिर उर्दू और कविताओं के प्रेमी हों। गालिब दिल की धड़कन की तरह हैं जो हर दिल्लीवासी में धड़कते हैं। बिना उनके इश्क का इजहार अधूरा है फिर चाहे वो दूसरे शहर से ही क्यों ना हो। दिल्ली से गालिब का नाता तेरह साल की उम्र से जुड़ा। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय ने उन्हें अपने बेटे को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
गालिब का 220वां जन्मोत्सव
दिल्ली गालिब का 220वां जन्मोत्सव मना रही है। इस मौके पर आयोजित दो दिवसीय गालिब की दिल्ली कार्यक्रम में उन्हें नज्म, परिचर्चा, जायकों संग याद किया गया। दो दिवसीय कार्यक्रम में दस्तर-खान-ए गालिब, गम-ए-हस्ती, अजब वक्त, महफिल-ए-गालिब समेत अन्य कार्यक्रम आयोजित हुए। रविवार को आयोजित शहर-ए-आरजू परिचर्चा में लेखक विलियम डेलरिंपल, मृदुला गर्ग, अनुराग बत्रा, विक्रम लाल ने गुजरते वक्त के साथ बदलती दिल्ली पर अपने विचार रखें।
दिल्ली सात बार बसी और उजड़ी
इस मौके पर मृदुला गर्ग ने कहा कि दिल्ली सात बार बसी और उजड़ी। इसी उजड़ी, बसी दिल्ली के बारे में सिर्फ पढ़ा सुना नहीं बल्कि इसके खंडहरों में भटकते हुए मेरा बचपन बीता है। उन्होंने कहा कि दरअसल मेरे पिता का ख्याल था कि अगर आप इतिहास की बुलंद इमारतों के खंडहर बचपन में ही देख लें तो जिंदगी का फलसफा समझ सकते हैं।
दिल्ली को हर शख्स पसंद करता है
मृदुला ने कहा मेरा साबका शाहजहांनाबाद वाली दिल्ली नहीं बल्कि बंगाली मार्केट वाली नई दिल्ली से हुआ था। यह बाबुओं की नगरी थी, साफ सुथरी और तांगों से सफर करने वाली दिल्ली। तब शहर की रफ्तार भी तांगे सी ही थी। 1943 के बाद अचानक सब कुछ बदल गया। पंजाब से आए लोगों ने कई कारोबार शुरू किए। हमारे घर के पास एक मार्केट खुला जिसका नाम रिफ्यूजी मार्केट था। बाद में जनपथ, शंकर मार्केट, कमला मार्केट बनाया गया। बाहरी शहरों से दिल्ली आने वाला हर शख्स एक आरजू लेकर आता है जिसे दिल्ली पूरा करती है। यही वजह है कि हर शख्स इसे पसंद करता है और यहां रहना चाहता है।
जायका है अलग
विलियम डेलरिंपल ने कहा कि दिल्ली गंगा जमुनी तहजीब का संरक्षण सालों से करती रही है। 18वीं सदी का जायका भी रहा मौजूद गालिब की दिल्ली कार्यक्रम का खास आकर्षण 18वीं सदी का जायका था। प्रसिद्ध शेफ सलमा युसूफ हुसैन ने इन जायकों की सूची काफी शोध के बाद तैयार की थी। इसे दस्तर-खान-ए-गालिब नाम दिया गया था। इसमें बादाम का शरबत, पालक शोरबा, लौकी का कबाब, सीक कबाब, भुना गोश्त, अशरफी दलिया, भरता तिलाई, पुदीना रायता, बेसन की रोटी, फिरनी, मिश्रित सौंफ, शामी कबाब, यखनी, कोरमा गोश्त, लौकी गोश्त, दम करेले, मोतिया कबाब आदि शामिल थे।
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