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दिल्ली का एक ऐसा पार्क जहां मौजूद है हजारों साल पुराना इतिहास, बहुत लोग हैं अनजान; यहां घूमने के साथ उठाएं खाने का लुत्फ

दिल्ली की बात करने पर लोगों के जहन में सबसे पहले लाल किला इंडिया गेट आदि की तस्वीरें ध्यान में आती हैं लेकिन ये तो दिल्ली का एक बहुत छोटा सा इतिहास बताते हैं। अगर असली दिल्ली और उसके हजारों साल पुराने इतिहास को जानना है तो यहां के महरौली पार्क में आएं जहां आपको ऐसी-ऐसी चीजें देखने को मिलेंगी जो आपको विस्मृत कर देंगी।

By Jagran News Edited By: Pooja Tripathi Updated: Sat, 06 Jul 2024 07:46 PM (IST)
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दिल्ली के महरौली पार्क में छिपा है यहां का हजारों साल पुराना इतिहास। जागरण ग्राफिक

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। किसी को भी दिल्ली घूमने आना हो, या तो दिल्लीवालों को भी दिल्ली पर्यटन करना हो तो कुछ ही चुनिंदा स्थान तक सपाटा करके रह जाते हैं। एक दौर था दिल्ली में बाहर से आने वाले व्यक्तियों को प्रमुख पर्यटक स्थलों पर बिकने वाले पोस्टकार्ड में लालकिला, कुतुब मीनार और राजपथ पर इंडिया गेट राजधानी के जीवंत प्रतीक होते थे।

मानो इनके बिना किसी का दिल्ली दर्शन पूरा नहीं होता था। पर यह दिल्ली की एक अधूरी तस्वीर थी क्योंकि दुनिया में बहुत कम शहर ऐसे हैं जो दिल्ली की तरह अपने दीर्घकालीन अविच्छिन्न अस्तित्व एवं प्रतिष्ठा को बनाए रखने का दावा कर सकें।

ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली, दमिश्क और वाराणसी के साथ आज की दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। दिल्ली का इतिहास, शहर की तरह की रोचक है। इतना रोचक कि सदियों पुराने इतिहास के ‘अवशेष’ अब भी महरौली पुरातत्व पार्क में छूटे हैं। पुरातत्व विभाग भी उन पर अध्ययन कर रहा है :

महरौली पुरातत्व पार्क

महरौली को दिल्ली का सबसे पुराना शहर इसीलिए कहा जाता है क्योंकि यहां के तकरीबन 200 एकड़ में इतिहास अपनी गवाही के सैकड़ों प्रमाण समेटे है। यहां अनंगपाल के समय से ही लोग रहते आए हैं।

आप भी भारतीय इतिहास की धरोहर को और करीब से समझना और देखना चाहते हैं तो दक्षिणी दिल्ली के महरौली पुरातत्व पार्क जरूर जाना चाहिए। कुतुबमीनार परिसर स्थल से सटा यह पार्क अपने आप में 100 से ज्यादा ऐतिहासिक धरोहरों का गौरव है।

बलबन के मकबरे के अवशेष। विपिन शर्मा

यहां पर दिल्ली के अलग-अलग शासकों के कई किले, मस्जिद, कब्र और जल संरक्षण की सदियों पुरानी व्यवस्था बावली देखने को मिल जाएंगी। यहां पर खंडहर बन चुके कुछ किले ऐसे भी हैं, जिनके ढांचे अपने समय की गौरवगाथा को अवशेषों से ही प्रमाणित करते हैं।

आज भले इनकी पहचान ‘कौन हूं मैं’ में गुम है, लेकिन सैंकड़ों लाल पत्थर कहते हैं कि इनका जिम्मेदारी से संरक्षण कर एक धरोहर स्वरूप आकार दिया जा सकता है। इतिहास उसी तरह है जैसे आपकी पीढ़ियां, इस शहर के विकास की पीढ़ी ये धरोहर ही हैं।

एक दशक पहले डरावना था पार्क का माहौल

जितनी दूरी तक निगाह ले जा सकते हैं देख लीजिए, इतिहास की दहलीज पर खड़ा महसूस करेंगे। जगह-जगह कब्र हैं। खंडहर बन चुका किला है। बताते हैं एक दशक पहले तक तो यहां इस पार्क में डरावना माहौल था।

यहां पर पर्यटक आने-जाने से कतराते थे। प्रवेश के कई द्वार भी बंद रहते थे। जब पुरातत्व विभाग ने इतिहास के खजाने का जिम्मा संभाला तो इसकी सूरत और सीरत बिलकुल आईने से धूल हटने की तरह हो गई।

आज यहां पर हर महीने 50 से 60 हजार देशी व विदेश पर्यटक आते हैं। स्थानीय निवासी सुबह और शाम को पार्क में टहलने आते हैं।

ग्यासुद्दीन बलबन व मुगल सहित कई शासकों की कहानी छिपी

इस पार्क में ग्यासुद्दीन बलबन, मुगल सहित कई शासकों की कहानियां दबी हैं। ग्यासुद्दीन ने वर्ष 1224 से 1286 तक दिल्ली पर शासन किया था। यहां पर बलबन का मकबरा और कब्र हैं।

कहते हैं उस समय किले का नाम कुशक-ए-लाल था। ग्यासुद्दीन बलबन दिल्ली सल्तनत के शासक इल्तुतमिश का तुर्की (अब तुर्किए) गुलाम था, जो बाद में नासिरुद्दीन महमूद के शासन काल में वजीर बना दिया गया था।

बलबन का मकबरा। विपिन शर्मा

नासिरुद्दीन कुतुबुद्दीन की वंशावली में अंतिम सुल्तान था। इसलिए नासिरुद्दीन की मृत्यु होने के बाद बलबन उसका उत्तराधिकारी बना। बलबन का मकबरा पूरी तरह खंडहर हो चुका है। इसका मुख्य गेट पर्यटकों को आकर्षित करता है।

बलबन के मकबरे के अवशेष। विपिन शर्मा

दास्तान-ए-दिल्ली में आदित्य अवस्थी लिखते हैं 'बलबन को महरौली के पास ही दफनाया गया था। उसके मकबरे के अवशेष आज भी महरौली-गुरुग्राम रोड पर अंधेरिया मोड़ से महरौली की ओर आते हुए, फूलमंडी से कुछ पहले, बाएं हाथ पर दिखाई देते हैं। जब यह मकबरा बनाया गया था तो इसे अलाई दरवाजे और इल्तुतमिश के मकबरे की तर्ज पर चौकोर ही बनाया गया था।’

बाबरनामा में बाबर ने भी इस महल और मकबरे को देखने का उल्लेख किया है। इसके निर्माण का वर्ष किताब के अनुसार 1255 के आसपास का मिलता है।

मुगलकालीन ढाबा। विपिन शर्मा

हालांकि इन तथ्यों में कितनी सत्यता है पुरातत्व विभाग ने इतिहासकारों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है। यह पूरा मकबरा स्तंभों पर बना हुआ है। मकबरे पर बनी छतरी इसी तरह बनी अन्य इमारत के अवशेष की कहानी कहती है।

पार्क में है भारत की सबसे पुरानी मेहराब

इस पार्क में भारत की सबसे पुरानी मेहराब भी देखने को मिलती है। यह ग्यासुद्दीन बलबन के मकबरे पर दिखती है। इसे मकबरे के द्वार पर बनाया गया है। यह लाल पत्थर से बनी है।

इतिहासकारों का मानना है कि इससे पहले के इतिहास में बहुत ही कम मेहराब देखने को मिलती हैं। यहां के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों में जमाली-कमाली मस्जिद भी शामिल है। इस मस्जिद का नाम जलाल खान के नाम पर रखा गया है।

कमाली-जमाली मस्जिद

बताया जाता है कि जलाल खान मुगल शासक हुमायूं और लोधी वंश के शासक सिकंदर लोधी के शासनकाल में कवि हुआ करते थे। इसके अलावा जमाली कमाली मस्जिद से करीब 500 मीटर दक्षिण में मढ़ी मस्जिद है।

यह मस्जिद इस मायने में अद्भुत है कि इसका नमाज पढ़ने का कक्ष एक खुली दीवार वाली मस्जिद के साथ-साथ एक ढंकी हुई मस्जिद को दर्शाता है।

कमाली-जमाली मस्जिद

अधम खान का भुलभुलैया

यहां पर अधम खान का मकबरा भी अपने आप में बेहद आकर्षित है। मुगल शासक अकबर की परवरिश महम अंगा ने की थी। महम अंगा के के दो बेटे अधम खान और कुली खान थे। इस मकबरे में अधम खान को 1567 में उनकी मां महम अंगा के साथ दफनाया गया था। इसे ‘भुलभुलैया’ के रूप में भी जाना जाता है।

कुली खान के मकबरे को ब्रिटिश गर्वनर ने बना लिया था अपना घर

पार्क में अधम खान के मकबरे के पास ही उनके भाई कुली खान का मकबरा है। बताते हैं कि अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर के समय में ब्रिटिश का गवर्नर जनरल थामस टी मेटकाफ थे। उसने छुट्टियां बिताने दिल्ली के सिविल लाइंस से महरौली पार्क कुली खान के मकबरे को अपना घर बना लिया था।

इसे यूरोपीय सौंदर्य शैली में फिर से डिजाइन करवाया था। इस शैली में घर के चारों ओर बगीचे रखने को काफी महत्त्व दिया जाता है। यह जगह मेटकाफ को इतनी पसंद आई थी कि उसने इसे दिल-कुशा यानी दिल की खुशी का नाम दिया था।

जल इतिहास लिए बावलियां

जल संरक्षण इस समय तो हाहाकार मचा है, लेकिन हमारी धरोहर में इतने नायाब जल संरक्षण के साधन हैं फिर भी हम उन सबके संरक्षण के प्रति अन्यमनस्क दिखते हैं।

यहां मौजूद गंधक की बावली के इतिहास पर आप सबरंग में भी कई बार विस्तार से पढ़ चुके हैं। इल्तुतमिश के शासनकाल 1211-36 में बनी इस बावली को देखने दूर से पर्यटक आते हैं। इसका संरक्षण सफल हो जाए, पुरातत्व विभाग इसी जिद्दोजहद में जुटा है।

एक राजों की बावली भी है, इसे तो यहां की सबसे आकर्षक रोमांचक जगह माना जाता है। इसका निर्माण सिकंदर लोधी के शासनकाल में हुआ था। अच्छी बात ये है कि आज भी इसमें जल संरक्षण होता है।

राजों की बावली। विपिन शर्मा

इसके अंदर बारिश का पानी काफी समय तक संरक्षित रहता है। इसके बारे में बताया जाता है कि कुतुबमीनार की नींव रखने वाले कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रजिया के लिए इस शाही बावली को बनवाया था।

इतिहास की सैर के साथ उठाएं खाने का भी लुत्फ

इस पुरातत्व पार्क में पर्यटक इतिहास की सैर करने के साथ साथ खाने का भी लुत्फ उठा सकते हैं। यहां पर कुछ दिन पहले ही एक ऐतिहासिक इमारत में कैफे शुरू किया गया है। यहां से सीधा कुतुबमीनार का नजारा भी दिखता है, तो अपनी संध्या को परिवार के साथ खुशनुमा बना सकते हैं।

इस कैफे के आसपास विभिन्न कालखंडों की 50 से अधिक संरचनाएं हैं। यह कैफे दिल्ली विकास प्राधिकरण की तरफ से संभाला जा रहा है। यहां पर सुबह 10 बजे से देर शाम तक खाने का आनंद ले सकते हैं।

बलबन के मकबरे के अवशेष। विपिन शर्मा

एक हजार साल पुराने इतिहास से रूबरू होने का मौका

इस पार्क का इतिहास एक हजार साल पुराना है। मस्जिदों और मकबरों के अलावा यहां पुराने मंदिरों के अवशेष भी मिले हैं। जिनके इतिहास का पता लगाया जा रहा है।

यहां पठानकाल में बना मकबरा भी बेहद रोमांचित करने वाला है। महरौली बस टर्मिनल के पीछे बने इस मकबरे की चारदीवारी क्षतिग्रस्त हो गई थी।

चारदीवारी के चारों कोणों में अष्टकोणिय बुर्ज थे। इनमें से तीन विलुप्त हो चुके हैं। इसमें एक गुबंद भी है। यहां इस पार्क में आप सुबह नौ बजे से सूरज छिपने तक आ सकते हैं। वो भी एकदम निश्शुल्क।

पठान काल में बनाई गई गुंबददार छतरी व इसके चारो और कब्रें हैं। विपिन शर्मा

इन ऐतिहासिक धरोहर का किया जा रहा संरक्षण

महरौली पार्क में बलबन के मकबरे, जमाली कमाली मस्जिद और राजों की बावली के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की देखरेख में संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम किया जा रहा है। इसके अलावा एएसआइ यहां बिखरे हुए नक्काशीदार पत्थरों और अवशेषों की पहचान करने और संरक्षित करने का भी निर्देश दिया गया है।

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