Delhi JNU: छात्रों के दवाब से जेएनयू प्रशासन ने टेके घुटने, वापस लिया धरना देने पर जुर्माना लगाने का नियम
जेएनयू के चीफ प्रोकटर रजनीश कुमार मिश्रा द्वारा जारी अधिसूचना में बताया गया है कि प्रशासनिक कारणों से 28 फरवरी को छात्रों के लिए अनुशासन के नियम और उचित आचरण के तहत आदेश को जेएनयू के कुलपति की मंजूरी से वापस ले लिया है।
By Nihal SinghEdited By: Abhi MalviyaUpdated: Thu, 02 Mar 2023 08:40 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) परिसर में धरना और प्रद्दर्शन पर जुर्माना लगाने पर छात्रों के विरोध के बाद जेएनयू प्रशासन झुक गया है और जारी नियमों को वापस ले लिया है। जेएनयू के चीफ प्रोकटर रजनीश कुमार मिश्रा द्वारा जारी अधिसूचना में बताया गया है कि प्रशासनिक कारणों से 28 फरवरी को छात्रों के लिए अनुशासन के नियम और उचित आचरण के तहत आदेश को जेएनयू के कुलपति की मंजूरी से वापस ले लिया है।
इन नियमों में विरोध-प्रद्दर्शन और जालसाजी जैसे विभिन्न कार्यों के लिए सजा निर्धारित की गई थी। साथ ही ये भी स्पष्ट किया गया था कि जेएनयू परिसर में अगर कोई छात्र धरना देता है तो उन पर 20 हजार रुपये का जुर्माना और हिंसा करने पर उनका दाखिला रद्द किया जा सकता है या 30 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाने तक का प्रविधान था। इसका छात्र विरोध कर रहे थे।
एबीवीपी ने कहा-छात्र एकता की जीत
जेएनयू ने के नए नियमों को वापस लेने का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने स्वागत किया है। साथ ही इसे छात्र एकता की जीत भी बताया है। इससे पहले एबीवीपी ने इन नियमों को तुगलकी फरमान बताया था और इसे तुरंंत वापस लेने की मांग की थी। एबीवीपी जेएनयू के नवनिर्वाचित अध्यक्ष उमेश चंद्र अजमीरा ने कहा कि छात्रों के खिलाफ जो भी निर्णय होगा हम उसका विरोध करेंगे।तुगलकी फरमान की तरह जारी किए गए नियमों का एवीबीपी का विरोध कया था, जिसकी वजह से प्रशासन को इन नियमों को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कहा कि प्रद्दर्शन करने, किताब की फोटोकापी करने, सही मुद्दों को उठाने जैसी लोकतांत्रिक गतिविधियों के लिए भी जुर्माना और दंड लगाना किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता।एबीवीपी जेएनयू के नवनिर्वाचित इकाई मंत्री विकास पटेल ने कहा कि ये तुगलकी फरमान की तरह था। इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। इसके लिए पुराने नियम पर्याप्त रूप से प्रभावी थे। सुरक्षा और शैक्षणिक विषयों में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय और जेएनयू प्रशासन ने मानवीय और लोकतांत्रिक हितों के हनन पर ध्यान केंद्रित किया था।
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