Delhi: निगमायुक्त को LG ने किया और पावरफुल, 2400 करोड़ की योजना कर सकेंगे मंजूर; कूड़े का पहाड़ भी होगा अब खत्म
Delhi MCD दिल्ली के उपराज्यपाल ने निगमायुक्त को बड़ी शक्ति प्रदान की है। अब निगमायुक्त 5 करोड़ तक की परियोजनाओं को मंजूरी दे सकेंगे। इससे पहले स्थायी समिति के पास यह अधिकार था। लेकिन स्थायी समिति के गठन में हो रही देरी के कारण कई परियोजनाएं लंबित थीं। एलजी के इस फैसले से अब इन परियोजनाओं को मंजूरी मिल सकेगी।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में एक बार फिर उपराज्यपाल ने हस्तक्षेप कर दिल्ली की बड़ी समस्या का निवारण कर दिया है। एलजी ने कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने से लेकर कूड़े से बिजली बनाने के प्लांट और मध्य जोन के 25 वार्ड का घर-घर से कूड़ा उठाने की निविदा को भी जारी किया जा सकेगा।
यह शक्तियां स्थायी समिति के पास होती थीं, लेकिन एमसीडी एक्ट के अनुच्छेद 202 का उपयोग करते हुए उपराज्यपाल ने इन परियोजनाओं को मंजूर करने की शक्ति निगमायुक्त को दे दी है। हालांकि एलजी ने आदेश दिया है कि इन परियोजनाओं को मंजूर करने के बाद में निविदाओं का विस्तृत विवरण स्थायी समिति के समक्ष मंजूरी के लिए रखना होगा।
पांच करोड़ की परियोजनाओं को मंजूर करने की शक्ति
उल्लेखनीय है कि निगमायुक्त के पास पांच करोड़ तक की परियोजनाओं को मंजूर करने की शक्ति है। इससे अधिक तक की परियोजनाओं को मंजूर केवल और केवल स्थायी समिति की मंजूरी से किया जा सकता है। निगम में आप और भाजपा के बीच चल रही राजनीतिक खींचतान और कानूनबाजी के चलते स्थायी समिति का गठन करीब 20 माह से नहीं हो पाया है।
इसका सीधा असर एमसीडी से जुड़ी परियोजनओं पर पड़ रहा है। राजनिवास के अनुसार, स्थायी समिति के गठन न होने की वजह से छह लंबित परियोजनाओं को मंजूर करने की शक्ति निगमायुक्त को दे दी है। इन छह परियोनजाओं की लाग 2400 करोड़ रुपये हैं। एलजी के आदेश के बाद निगमायुक्त पांच करोड़ की मौजूदा शक्तियों के अतिरिक्त इन परियोजनाओं को मंजूर कर सकेंगे।
पीएमओं ने भी जताई थी कूड़े के पहाड़ों के निस्तारण में देरी पर चिंता
हाल ही में हुई पीएमओ की एक बैठक में दिल्ली के कूड़े के पहाड़ लैंडफिल साइटों को खत्म करने में हो रही देरी पर चिंता जाहिर की थी। विदित हो कि दिल्ली में पहले लैंडफिल साइटों को खत्म करने की योजना 2026 तक थी, लेकिन स्थायी समिति के गठन में हो रही देरी की वजह से अब इनकी समय-सीमा दिसंबर 2028 हो गई है।
इसकी वजह लैंडफिल साइटों पर पड़े कचरे के निस्तारण के लिए नए टेंडर न होना था। निगम ने टेंडर प्रक्रिया को एक बार बीते वर्ष पूरा कर लिया था लेकिन स्थायी समिति की मंजूरी न मिलने की वजह से टेंडर की वैधता अवधि खत्म हो गई थी। निगम ने अब फिर से टेंडर प्रक्रिया को पूरा कर लिया है।
अगर एलजी से निगमायुक्त को शक्ति नहीं मिलती तो लैंडफिल साइटों से 30-30 लाख टन कचरे निस्तारण के टेंडर की वैधता फिर खत्म हो जाती। निगम ने सेंट्रल जोन में घर-घर से कचरा उठाने का कार्य भी कंपनी की बिना मंजूरी के लिए उसकी कार्यावधि बढा दी है। जबकि बीते वर्ष सितंबर में ही उसकी निविदा का कार्यादेश खत्म हो गया था।
सौरभ भारद्वाज ने नहीं दी मंजूरी तो सीएम से लिया गया अनुमोदन
राजनिवास ने इस मामले में दिल्ली के शहरी विकास मंत्री पर इस मामले में अड़ियल रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। राजनिवास के अनुसार 24 जुलाई 2024 को इस संबंध में शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज को निगमायुक्त की शक्तियां बढ़ाने संबंधी फाइल भेजी थी।
राजनिवास के अनुसार बिना किसी कारण के भारद्वाज ने अपने स्तर पर इस फाइल को लंबित रखा। इसकी वजह से निगम की सेवाएं बुरे तरीके से प्रभावित हुई। एलजी ने ट्राजेक्सन आफ बिजनेस रूल 19(5) का हवाला देते हुए सौरभ भारद्वाज से दो बार फाइल वापस मंगवाई, लेकिन अभी तक फाइल नहीं भेजी गई।
अंत में विकट परिस्थितियों को देखते हुए एलजी ने छह परियोजनाओं को मंजूर करने की वित्तीय शक्ति निगमायुक्त को सौंपने को मंजूर सीएम के अनुमोदन से कर दिया है।
हालांकि सौरभ भारद्वाज पर राजनिवास के बयान को लेकर आप ने पलटवार किया है। आप ने जारी एक बयान मे कहा है कि छह सितंबर को सौरभ भारद्वाज के पास यह फाइल आई और उसी दिन स्वीकृत कर दिया था। ऐसे में एलजी को बताना चाहिए कि उसी दिन इस पर काम क्यों नहीं किया गया। क्या एलजी इस फाइल में विलंब करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। एलजी साहब की निष्क्रियता यह साबित करेगी कि फाइल उनके मौखिक निर्देश पर देरी की गई।
कितनी राशि की कौन-कौन सी परियोजना हुईं मंजूर
- 1137.98 करोड़ की मध्य जोन घर-घर से कचरे के साथ निर्माण एवं विध्वंस कचरा उठाने की निविदा
- 604.26 करोड़ की राशि से नरेला-बवाना में 3000 टन प्रतिदिन की क्षमता का कूड़े से बिजली बनाने का संयंत्र स्थापित करना
- 46.17 करो़ड़ की राशि का सिंघौला की लैंडफिल साइट पर पड़ी गाद का निस्तारण करना
- 156.45 करोड़ की राशि से ओखला लैंडफिल साइट पर पड़े पुराने कचरे का निस्तारण करना
- 223.50 करोड़ की राशि से गाजीपुर लैंडफिल साइट पर पड़े पुराने कचरे का निस्तारण करना
- 223.50 करोड़ की राशि से भलस्वा लैंडफिल साइट पर पड़े पुराने कचरे का निस्तारण करना
इसलिए हुई स्थायी समिति के गठन में देरी
दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति में गठन में देरी आप और भाजपा के बीच चल रही राजनीतिक खींचतान के साथ खानूनी लड़ाई है। स्थायी समिति का गठन फरवरी 2023 में ही हो जाना था लेकिन, आप सरकार उपराज्यपाल द्वारा एमसीडी में नियुक्त मनोनीत सदस्यों के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट चली गई थी। महापौर ने इस मामले का हवाला देते हुए वार्ड कमेटियों के चुनाव को स्थगित करने के आदेश दे दिए थे। पांच अगस्त 2024 को उपराज्यपाल के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट से निर्णय आया तो फिर स्थायी समिति के गठन के लिए वार्ड कमेटियों के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई थी।
मामला तब और लटक गया जब वार्ड कमेटियों के चुनाव के लिए महापौर ने पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति करने से मना कर दिया। एलजी ने अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए वार्ड कमेटियों के चेयरमैन और स्थायी समिति के सदस्य का चुनाव जोन उपायुक्तों को पीठासीन अधिकारी नियुक्त करके चुनाव संपन्न कराया। लेकिन, मामला अब फिर सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा है क्योंकि भाजपा पार्षद कमलजीत सहरावत ने सांसद बनने के बाद निगम की स्थायी समिति के सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया था।
इस पर चुनाव कराया गया तो महापौर ने 26 सितंबर को बुलाई गई बैठक को यह कहते हुए स्थगित कर दिया था कि आप पार्षदों को पुलिस जांच के बाद ही अंदर आने दिया जा रहा था। इसको देखते हुए एलजी ने 27 सितंबर को अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए अतिरिक्त आयुक्त की अध्यक्षता में चुनाव कराया था। जहां आप के पार्षद अनुपस्थित रहे तो भाजपा प्रत्याशी सुंदर सिंह ने जीत दर्ज कर ली थी। आप इसी मामले को लेकर कोर्ट गई है। स्थायी समिति के 18 में 10 सदस्य भाजपा के पास हैं और आठ सदस्य आप के पास हैं।