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Delhi MCD Election 2022: चुनाव में स्पष्ट बहुमत न होने पर बड़े दल का खेल बिगाड़ देते हैं पार्षद

एमसीडी चुनाव के एग्जिट पोल में वैसे तो आप को स्पष्ट बहुमत मिलने का अनुमान जताया गया है लेकिन चुनाव परिणाम में अगर किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो यहां दूसरे दल के महापौर प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने पर दल-बदल का नियम लागू नहीं होता।

By Nidhi VinodiyaEdited By: Updated: Wed, 07 Dec 2022 12:27 PM (IST)
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चुनाव में स्पष्ट बहुमत न होने पर बड़े दल का खेल बिगाड़ देते हैं पार्षद
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता । दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव के एग्जिट पोल में वैसे तो आम आदमी पार्टी (आप) को स्पष्ट बहुमत मिलने का अनुमान जताया गया है, लेकिन चुनाव परिणाम में अगर किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है, तो यहां दूसरे दल के महापौर प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने पर दल-बदल का नियम लागू नहीं होता। ऐसे में पार्षद की सदस्यता पर भी कोई खतरा नहीं होता है। वह पूरे पांच वर्ष किसी भी दल के समर्थन में रहकर कार्य कर सकता है।

पूर्व में भी ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं, जब पूर्ण बहुमत न होने की स्थिति में भाजपा का महापौर और कांग्रेस का उपमहापौर तक बन गए हैं। निगम एक्ट व्हिप जारी करने का भी नियम नहीं है। एमसीडी चुनाव में राजनीतिक दल के प्रत्याशी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ लेते हैं और उनकी राजनीतिक पार्टी को मान्य भी माना जाता है। इसलिए विपक्ष के नेता के साथ तीसरे दल के पार्षदों के नेता को भी कमरा आवंटित किया जाता है।

बहुमत न होने की स्थिति में निर्दलीय की लगती है लॉटरी

एमसीडी चुनाव में अगर किसी दल को बहुमत नहीं मिलता है, तो उसमें निर्दलीय पार्षदों की लॉटरी लगती है, क्योंकि उनका समर्थन लेने के लिए दूसरे दल उन्होंने निगम की विभिन्न समितियों के चेयरमैन से लेकर उपमहापौर पद तक ऑफर करते हैं। पूर्व में नरेला जोन वार्ड समिति में भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था। ऐसे में निर्दलीय पार्षद अर्चना को भाजपा ने उपमहापौर बना दिया था। वह इस बार भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ी हैं। इससे पहले भी कई निर्दलीय को निगम में बड़े पद मिले हैं।

कई पार्षदों ने किया था क्रास वोट 

दिल्ली की तीन निगम होने के बाद वर्ष 2012 में चुनाव में दक्षिणी निगम में भाजपा को स्पष्ट बहुमत तो मिला था, लेकिन कुछ सदस्यों ने बगावत कर दी थी। इससे वर्ष 2014-15 में कांग्रेस के पार्षद प्रवीण राणा उपमहापौर बन गए थे, जबकि महापौर भाजपा के पार्षद खुशीराम थे। दरअसल, भाजपा के पार्षदों ने क्रॉस वोट कर दिया था। भाजपा किसी तरह अपना महापौर तो जिताने में कामयाब रही, लेकिन उपमहापौर पद पर भाजपा के पार्षदों ने कांग्रेस को वोटिंग कर दी। यही वजह रही कि 104 में कांग्रेस ने केवल 28 सीट जीती थी, लेकिन उपमहापौर पद पर 59 मत लेकर विजयी हो गई। जबकि, भाजपा के पास सदस्यों की संख्या 59 थी।

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