Delhi MCD Election के लिए कांग्रेस क्यों नहीं कर पाई उम्मीदवार घोषित, खरगे तक पहुंची बात; पढ़ें- Inside Story
दिल्ली नगर निगम चुनाव 2022 के लिए सोमवार (14 नवंबर) को नामांकन का अंतिम दिन है। बावजूद इसके कांग्रेस अब तक अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान नहीं कर पाई है। बताया जा रहा है कि करीब 50 प्रतिशत सीटों पर सहमति नहीं बन पाई है।
By sanjeev GuptaEdited By: JP YadavUpdated: Sun, 13 Nov 2022 08:28 AM (IST)
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। दिल्ली नगर निगम चुनाव 2022 के लिए AAP और भाजपा के उम्मीदवारों की सूची भी आ जाने के बावजूद शनिवार आधी रात तक भी कांग्रेस अपने प्रत्याशी घोषित न कर सकी। इस प्रक्रिया में भी पार्टी की गुटबाजी सतह तक आ गई।
खरगे तक पहुंची अनिल चौधरी की शिकायत
टिकटों के लिए आवेदन से लेकर चयन प्रक्रिया तक पार्टी पूरी तरह से बिखरी नजर आ रही है। कुछ सीटों पर तो उम्मीदवार तक सामने नहीं आए। स्थिति यह हो गई कि शनिवार देर शाम स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के दरबार में जाकर सारी हकीकत बयां की और प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी के रवैये की शिकायत की।
छिपाया गया आवेदन का सही आंकड़ा
गौरतलब है कि अप्रैल में एमसीडी चुनाव टलने के बाद प्रदेश कांग्रेस को लगभग छह माह का अतिरिक्त समय मिल गया। बावजूद इसके प्रदेश अध्यक्ष और उनके सिपहसालारों की टीम ने कोई तैयारी नहीं की। जिन सीटों पर कई उम्मीदवार दावा ठोक रहे थे, वहां तो जनाब अपनी चलाना चाह रहे थे जबकि जिन सीटों से कोई आवेदन ही नहीं आया, वहां उम्मीदवार तलाशने की कोशिश भी नहीं की गई। आवेदनों का सही आंकड़ा तक छिपाया गया। हवा में 1300 आवेदनों का आंकड़ा उछाल दिया गया, लेकिन जब स्क्रीनिंग कमेटी के सामने पत्ते खुले तो सही आंकड़ा इससे कम मिला।पार्टी नेताओं में सामने आए मतभेद
गुरुद्वारा रकाब गंज रोड स्थित पार्टी कार्यालय में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकों का दौर शुरू हुआ तो विभिन्न क्षेत्रों से पार्टी के पूर्व सांसदों और विधायकों के साथ प्रदेश अध्यक्ष के मतभेद भी खुलकर सामने आने लगे। यही वजह रही कि 100 से 125 सीटों पर तो कई दिन पूर्व ही नाम फाइनल हो गए थे, लेकिन शेष बची लगभग इतनी ही सीटों के नाम तय कर पाने में कमेटी सदस्यों के भी पसीने छूट गए।
कांग्रेस में झलक रही तालमेल की कमी में
इस स्थिति में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा, जयप्रकाश अग्रवाल और अरविंदर सिंह लवली के हस्तक्षेप और सहयोग से ही कहीं जाकर उम्मीदवारों की लिस्ट फाइनल हो पाई। पार्टी सूत्रों के मुताबिक यह लिस्ट भी यूं तो शनिवार अल सुबह तक फाइनल हो गई थी, लेकिन घोषित रात भर नहीं हो पाई थी। कारण फिर से वही, प्रदेश नेतृत्व और अन्य वरिष्ठ नेताओं के बीच बेहतर तालमेल ना होना। इसी कारण स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों को राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलने का समय लेना पड़ा। जब वहां से कमेटी को सही निर्णय लेने का निर्देश मिला, तभी जाकर उम्मीदवारों की लिस्ट को अंतिम रूप दिया गया।आपसी फूट का होगा चुनाव में नुकसान
प्रदेश कांग्रेस की इस हकीकत ने कहीं न कहीं 'सूत न कपास, जुलाहों में लठ्ठम लठ्ठा' कहावत को भी चरितार्थ कर दिया। मतलब, मुकाबले में भाजपा और आम आदमी पार्टी के आगे कांग्रेस कहीं ठहर नहीं पा रही, बावजूद इसके उम्मीदवारों की लिस्ट इन दोनों पार्टियों के भी बाद में जारी की गई। नाम तय करने में जिस हद तक गुटबाजी रही, वह इस बार भी पार्टी के लिए अच्छे संकेत नीं दे रही।
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