दिल्ली मेरी यादें : जनपथ पर थीं कोका कोला व ड्राई फ्रूट्स की दुकानें
कनाट प्लेस में रीगल रिवोली ओडियन व प्लाजा दिल्ली के मशहूर सिनेमाघर हुआ करते थे। आपको एक किस्सा बताता हूं। वर्ष 1958 की बात है। मेरी उम्र करीब 10 वर्ष थी। हमारा पूरा परिवार ओडियन में धर्मपुत्र फिल्म देखने गया। रात नौ से 12 का शो था।
नई दिल्ली [रितु राणा]। 30 जनवरी, 1948 को पंजाब में जन्मे दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर इंदर मोहन कपाही चार माह के थे, जब उनका परिवार पंजाब से दिल्ली आकर बस गया। सेंट स्टीफन कालेज से इन्होंने फिजिक्स में बीएससी और एमएससी की पढ़ाई की। 1979 से 2012 तक किरोड़ीमल कालेज में पढ़ाया। सेवानिवृत्त होने के बाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी गढ़वाल, सिक्किम और पुडुचेरी के विवि से जुड़े हैं।
ऐसे बीता बचपन
मेरा बचपन कनाट प्लेस में घूमते हुए बीता है। जनपथ से जो मार्ग कस्तूरबा गांधी रोड को जोड़ता है, वहीं एक कोठी में हम रहते थे। पहले कनाट प्लेस के आसपास उस समय कोठियां ज्यादा हुआ करती थीं। बाराखंभा रोड व कर्जन रोड जिसे अब कस्तूरबा गांधी मार्ग के नाम से जाना जाता है, वहां बीसवीं सदी के आठ के दशक तक सिर्फ कोठियां ही थीं। उसके बाद मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बननी शुरू हुईं। जनपथ पर बंटवारे के बाद दिल्ली आए शरणार्थियों को खोखे दिए गए थे। वहां कोका कोला, ड्राई फ्रूट्स व छोटी छोटी कपड़ों की दुकानें थीं। लेकिन, वर्ष 1970 में एक दिन लीगल आर्डर के तहत लोगों ने रातों रात खोखे की जगह बड़ी बड़ी दुकानें बना लीं। हनुमान मंदिर के आगे जो बड़े बड़े एंपोरियम हैं वो भी उसी समय बने। पहले यहां सब खाली जमीन थी और कुछ सरकारी आवास थे।
भूकंप से मच गई थी अफरा-तफरी
कनाट प्लेस में रीगल, रिवोली, ओडियन व प्लाजा दिल्ली के मशहूर सिनेमाघर हुआ करते थे। आपको एक किस्सा बताता हूं। वर्ष 1958 की बात है। मेरी उम्र करीब 10 वर्ष थी। हमारा पूरा परिवार ओडियन में धर्मपुत्र फिल्म देखने गया। रात नौ से 12 का शो था। शो के बीच में ही तेज भूकंप आ गया। कुर्सियां हिलने लगीं। सब लोग घबरा गए। अफरा तफरी मच गई। तभी मां बोली अच्छा है हम सब एक साथ हैं। फिर सब लोग किसी तरह थियेटर से बाहर आए। वह दिल्ली के तेज भूकंपों में से एक था। उस समय सिनेमाघरों व बाजारों में एक बड़ी सी मशीन होती थी जो वजन, लंबाई बताने के साथ ही भविष्य भी बताती थी। भविष्य जानने के लिए मशीन के पास लोगों की भीड़ लगी रहती थी।
स्टैंडर्ड में आम लोग भी लेते थे काफी की चुस्की
कनाट प्लेस में स्टैंडर्ड रेस्त्रां काफी मशहूर था। वहां के सारे रेस्त्रां काफी महंगे थे, स्टैंडर्ड ही एक मात्र ऐसा रेस्त्रां था जहां आम लोग भी जाया करते थे। वहां एक रुपये में एस्प्रेसो काफी के साथ एक बिस्कुट मिलता था, जो बहुत स्वादिष्ट होता था। इसके नीचे एक मिठाई की दुकान थी। दिल्ली में सबसे पहले जो साफ्टी आइसक्रीम आई, वो वहीं मिलती थी। आठ आने में हम इसका स्वाद लिया करते थे। दिल्ली अब भले ही बदल गई है पर पुरानी दिल्ली आज भी बिल्कुल वैसी ही है। कनाट प्लेस में उस समय भी हाई प्रोफाइल लोग ही रहते थे। किसी को किसी से कोई मतलब नहीं होता था। जब हम पुरानी दिल्ली घूमने जाते थे तो वहां लोगों का व्यवहार देख अपनापन महसूस होता था।