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Farmers Protest: किसानों के कूच से बढ़ी दिल्ली-NCR के लोगों की धड़कनें, रोज जाम में बीत रहे 5-5 घंटे; कौन है इसका जिम्मेदार?

हर दिन जाम में पांच-पांच घंटे जूझने की पीड़ा से लोग सिहर रहे हैं। हमारा क्या कसूर सीमा पर फंसे हैं हुजूर। शहर की इस पीड़ा की अनदेखी नहीं की जा सकती। आखिर लोगों की क्या गलती है जो उन्हें समय-समय पर ऐसी परेशानी झेलनी पड़ती है? ऐसे विरोध प्रदर्शनों के कारण दिल्ली के लोगों को होने वाली परेशानी से बचाने में आखिर कहां है गतिरोध और जिम्मेदार कौन है?

By Jagran News Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Thu, 15 Feb 2024 01:33 PM (IST)
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Farmers Protest: दिल्लीवासियों की आवाज, हमारा क्या कसूर है साहब!
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। पिछले आंदोलन का कष्ट राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की भौगोलिकी के मन से निकला नहीं था कि अब एक बार फिर से किसानों के दिल्ली कूच से फिर धड़कनें बढ़ी हुई हैं। माथे पर आर्थिक संकट की शिकन है। हर दिन जाम में पांच-पांच घंटे जूझने की पीड़ा से लोग सिहर रहे हैं। हमारा क्या कसूर, सीमा पर फंसे हैं हुजूर। शहर की इस पीड़ा की अनदेखी नहीं की जा सकती।

एक ही सवाल है अभी दो दिन से 200 किमी दूर हैं तब ये व्यथा है यदि बोरिया बिस्तर लेकर यहां पहुंचे तो एनसीआर के शहरों का आर्थिक पहिया थमना तय है। शहरों के बीच आवाजाही प्रभावित होने व भारी जाम लगने की आशंका है, वहीं यदि धरना कुछ लंबा चल गया तो आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता में भी समस्या आ सकती है और परिणामस्वरूप ये वस्तुएं महंगी हो सकती हैं।

ऐसे विरोध प्रदर्शनों का जिम्मेदार कौन?

ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर एनसीआर के लोगों की क्या गलती है, जो उन्हें समय-समय पर ऐसी परेशानी झेलनी पड़ती है? ऐसे विरोध प्रदर्शनों के कारण दिल्ली के लोगों को होने वाली परेशानी से बचाने में आखिर कहां है गतिरोध, कौन है इसके लिए जिम्मेदार?

एनसीआर को समय-समय पर पैदा होने वाली ऐसी विषम परिस्थितियों से बचाने के लिए क्या किए जाने चाहिए ठोस उपाय। इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है 

विरोध की नहीं समन्वय और संवाद की जरूरत

दिल्ली कूच के आह्वान के बाद किसानों को दिल्ली के भीतर आने से रोकने के लिए किए गए पुलिसिया इंतजामों से एनसीआर में लाखों लोग प्रभावित हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब किसानों का प्रदर्शन एनसीआर के लोगों के लिए जी का जंजाल बन गया है।

इससे पूर्व भी किसान न सिर्फ कई दिनों के लिए दिल्ली की सीमा के बाहर बैठे थे, बल्कि उनके बीच देश विरोधी तत्व शामिल हो गए थे, जिन्होंने दिल्ली के भीतर आकर लाल किले और आसपास के इलाकों में जमकर उपद्रव मचाया था।

किसानों का वह प्रदर्शन भी क्षेत्र के लिए बड़ी परेशानी का सबब बना था। अब एक बार फिर दिल्ली के चारों ओर बैरिकेडिंग कर दी गई है और किसानों के दिल्ली कूच ने एक बार फिर दिल्ली को बंधक बना दिया है।

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है, इसके सभी प्रवेश मार्ग सुरक्षा कारणों से बंद कर देने या इसके प्रवेश मार्गों पर किसी बड़े समूह द्वारा धरना देने से न सिर्फ क्षेत्र में लोगों को विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर देश की छवि भी खराब होती है।

दिल्ली से एनसीआर के बीच प्रतिदिन अपने कार्यालयों या कामकाज पर जाने वालों को आवाजाही में परेशानी होती है, उन्हें लंबे लंबे यातायात जाम का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यात्रा करने का समय दो से तीन घंटे बढ़ जाता है।

आवश्यक वस्तुओं के बढ़ जाते हैं दाम

वहीं, पूरे एनसीआर में उद्योग और कारोबार बुरी तरह प्रभावित होता है और इनमें काम करने वाले श्रमिक अस्थायी रूप से बेरोजगार हो जाते हैं। यही नहीं, एनसीआर के दुग्ध व सब्जी उत्पादकों को अपना उत्पाद बेचने में समस्या आती है तो आवश्यक वस्तुओं की कमी हो जाने से उन वस्तुओं के मूल्य भी बढ़ जाते हैं।

एनसीआर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभावों के अलावा ऐसे विरोध प्रदर्शनों से स्थानीय लोगों में सामाजिक अव्यवस्था और मानसिक तनाव पैदा होता है। रोजमर्रा की जिंदगी में अशांति और प्रदर्शन की वजह से लोगों में चिंता और तनाव का स्तर बढ़ जाता है।

बढ़ जाती हैं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं

ऐसे धरना प्रदर्शनों का सर्वाधिक बुरा असर विशेष तौर पर कम आय वाले परिवारों पर पड़ता है। रोजगार छिनने और आवश्यक वस्तुओं के मूल्य बढ़ने से उनपर दोहरा असर पड़ता है।

ऐसे प्रदर्शनों की वजह से इन परिवारों की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो जाती है। जो परिवार दो वक्त की रोटी और संसाधन की कमी से जूझ रहे हैं, वह खुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। इतना ही नहीं, उनकी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ जाती हैं।

दिल्ली के प्रवेश द्वारों पर इस तरह के विरोध प्रदर्शनों के सिलसिले को प्रभावी ढंग से रोके जाने की आवश्यकता है। इस बार दिल्ली कूच का आह्वान करने वाले किसानों को जिस तरह पंजाब और हरियाणा की सीमा पर रोका गया है, वह एक उचित कदम है। राष्ट्रीय राजधानी के पास किसी तरह की अव्यवस्था नहीं होनी चाहिए।

यह क्षेत्र के लोगों के लिए भी उचित नहीं है और देश के लिए भी स्वीकार्य नहीं हो सकता। केंद्र सरकार से अपनी बात कहने और अपनी मांगें उनसे मनवाने के लिए कई तरीके अपनाए जा सकते हैं, जिनसे आम जनता को परेशानी न होने पाए।

अव्यवस्था न होने की दोनों पक्षों की है जिम्मेदारी 

जहां एक ओर प्रदर्शन करने वाले समूहों को इस बात की चिंता करनी चाहिए, वहीं शासन-प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राजधानी के आसपास किसी तरह की अव्यवस्था न होने पाए। सही मायने में देखा जाए तो यह दोनों पक्षों का दायित्व होना चाहिए।

जैसे-जैसे इस तरह के प्रदर्शन बढ़ते जा रहे हैं, उसे देखते हुए महत्वपूर्ण है कि इसमें शामिल सभी पक्ष अपने प्रभाव को स्वीकार करें। वे बुनियादी मुद्दों को इस तरह से हल करने का प्रयास करें, जिससे समावेशिता, संचार और शांति को बढ़ावा मिले।

देश सामूहिक संकल्प का उपयोग करके समृद्धि और सामाजिक न्याय की अपनी खोज में मजबूत और एकजुट होकर उभर सकता है। यह जानकारी जागरण संवाददाता शनि पाथौली से दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमृता बजाज से बातचीत पर आधारित है। 

लोकतांत्रिक हो विरोध जताने का तरीका

देश के हर नागरिक को अपनी बात रखने के लिए संवैधानिक मूलभूत अधिकार प्राप्त हैं। चाहे सरकार के सामने बात रखने का मसला हो अथवा अन्य जगहों पर विरोध जताने का तरीका, हमेशा लोकतांत्रित ही होना चाहिए। लेकिन, दशकों से देखा जा रहा है लोग विरोध जताने के लिए शहर की सीमाओं को जाम कर देते हैं जिससे दूसरों को भारी परेशानी होती है।

विरोध जताने वाले को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस तरह उन्हें अपनी बात रखने का मूलभूत अधिकार प्राप्त है उसी तरह अन्य को भी मूलभूत अधिकार प्राप्त हैं कि उनके आवागमन आदि में कहीं कोई व्यवधान न पैदा करें जिससे उन्हें परेशानी हो।

सरकार अथवा अन्य विभागों द्वारा लोगों की मांगें न मानने पर लोग सड़कें अथवा रेल मार्ग जाम कर तोड़फोड़ करना शुरू कर देते हैं, जो अच्छी बात नहीं है। विरोध करने का गलत तरीका अपनाने से बड़ी संख्या में आम लोगों को परेशानी होती है।

सड़कों पर धरने से जनजीवन बुरी तरीके से प्रभावित

सीमाओं अथवा सड़कों पर धरने पर बैठकर जाम लगाकर विरोध जताने से महानगर व एनसीआर में रहने वाले लोगों का जनजीवन बुरी तरीके से प्रभावित हो जाता है। रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है। आवश्यक वस्तुएं शहर में नहीं आ पाती हैं। नौकरी पेशा लोगों को कार्यालय आदि जाने में परेशानी होती है।

सरकार से बातचीत के कई तरीके हो सकते हैं। अपनी बातों को रखने से लोग इंटरनेट मीडिया का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। हिंसक तरीके से विरोध जताने से कोई लाभ नहीं होता है। इससे बात और अधिक बिगड़ती है। लोगों को विरोध जताने के लिए हमेशा लोकतांत्रिक तरीका ही अपनाना चाहिए।

दिल्ली में है घनी आबादी

दिल्ली देश की राजधानी है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की की बहुत ही सघन आबादी है। हर रोज लाखों की संख्या में नौकरी पेशा व बिजनेस के सिलसिले में लोग एक जगह से दूसरे जगह जाते हैं। ऐसे में सीमाओं पर जाम लगाने से लोगों का आम जनजीवन प्रभावित हो जाता है। क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए लोगों को उकसाने लगी हैं। इससे आम लोगों को कुछ हासिल होने के बजाए नुकसान ही होता है।

लोगों को अपनी समझदारी से ही कोई कदम उठाना चाहिए। किसी के बहकावे में आकर विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होना चाहिए। समाज के हर वर्ग के लोगों को जागरूक होने व सोच समझ कर कोई कदम उठाना चाहिए। अगर लोग नहीं समझ रहे हैं तब पुलिस को सख्ती करने की जरूरत है।

अगर लोग सीमाओं व शहर के अंदर जाम लगाने की कोशिश करते हैं तब उनके साथ बेहद सख्ती से निपटा जाना चाहिए। सीमाओं पर लंबे समय तक जाम लगाने से आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता में समस्या में आ जाती है। इससे कई वस्तुएं महंगी हो जाती हैं।

अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है बुरा असर

साथ ही इससे अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ता है। पुलिस को इस दिशा में काफी सोचने की जरूरत है। अगर कोई विरोध प्रदर्शन के दौरान सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तब उससे आर्थिक नुकसान वसूला जाना चाहिए। सरकारी संपत्ति देश की और आम लोगों के पैसों से बनाई हुई संपत्ति है।

इससे आम लोगों का ही नुकसान होता है। देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ कई हल निकाले गए हैं। हर मसले का हल होता है, सरकारी सेवाएं ठप करने से देश को नुकसान होता है। देश से प्रेम है तो शांतिपूर्वक बात मनवाने का रास्ता तलाशा जाना चाहिए।

अगर फिर भी रास्ता नहीं निकल रहा तो पुलिस को सख्त रवैया अपनाना चाहिए। फिलहाल पुलिस ने जो इंतजाम किए हैं, उससे बार्डर पर जाम लग रहा है। सीमा पर आने से पहले ही प्रदर्शनकारियों को रोका जा सके, इस पर विचार करना चाहिए, जिससे जाम की स्थिति उत्पन्न ही न हो।

यह जानकारी जागरण संवाददाता राकेश कुमार सिंह से दिल्ली पुलिस के पूर्व पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित है। 

सबक से सीख की उम्मीद 

पिछले किसान आंदोलन से सिर्फ दिल्ली ने दो लाख करोड़ का आर्थिक दंड झेला था। शहरों की सीमाएं लगभग सालभर बंद रही थीं। आना-जाना दूभर था। हरियाणा के बार्डर के आसपास से कितने उद्योग पलायन कर गए थे।

एनसीआर में रोजगार की उम्मीद से आए परिवार लौट गए थे। इस बार दिल्ली की सीमाओं पर सख्ती तो कड़ी की है, लेकिन देखना अब यही होगा कि पिछले सबक से कितना सीखा है।

प्रतिदिन कितने वाहन करते हैं दिल्ली का आवागमन?

जिला वाहनों की संख्या
गौतमबुद्धनगर 18 लाख
गाजियाबाद 07 लाख
गुरुग्राम 10 लाख
फरीदाबाद 4 लाख

एनसीआर के किस जिले को कितना आर्थिक नुकसान?

  • गौतमबुद्धनगर : 5 करोड़
  • गाजियाबाद : 1.50 करोड़
  • गुरुग्राम : 38 करोड़
  • फरीदाबाद : 5 करोड़

जिले से लगी दिल्ली की सीमाएं 

गौतमबुद्धनगर : 7

गाजियाबाद : 6

गुरुग्राम : 4

फरीदाबाद : 4

दिल्ली के मुख्य बॉर्डर : 13

  1. सिंघु बॉर्डर
  2. गाजीपुर बॉर्डर
  3. टीकरी बॉर्डर
  4. ढ़ासा बॉर्डर
  5. कोंड़ली
  6. औचंदी
  7. झड़ौदा
  8. भौपुरा
  9. अप्सरा
  10. कालिंदी कुंज
  11. डीएनटी
  12. बदरपुर
  13. कापसहेड़ा

साल भर लोग रहे थे परेशान 

  1. किसानों के सिंघु, टीकरी और गाजीपुर पर जमें रहने के चलते तीनों बार्डर पर यातायात प्रभावित रहा
  2. हरियाणा,पंजाब,हिमाचल व यूपी जाने वाले वाहनों को यात्रा में घंटों का अतिरिक्त समय देना पड़ा।
  3. बार्डर इलाकों में किसानों के जमें रहने के चलते स्थानीय व्यापार हुआ था प्रभावित।
  4. किसानों द्वारा फैलाई गंदगी से परेशान रहे थे स्थानीय लोग।
  5. हजारों की संख्या में जमा बाहर के किसानों के बीच स्थानीय लोगों ने किया था खुद को असुरक्षित महसूस।

दिल्ली की सीमा हुए बड़े प्रदर्शन

  • 8 फरवरी  2024 : भारत किसान परिषद के नेतृत्व में किसानों के दिल्ली कूच के आह्वान के कारण आठ फरवरी को दिल्ली जाने वाले प्रमुख मार्ग पर आठ घंटे जाम की समस्या रही थी। ट्रैफिक जाम सुबह से शाम से नोएडा-ग्रेटर नोएडा, चिल्ला बार्डर, डीएनडी बार्डर की लिंक रोड बंद रहने के कारण वाहन चालकों को परेशानी का सामना करना पड़ा था।
  • 2 दिसंबर 2021 से 28 जनवरी 2022 के दौरान भारतीय किसान यूनियन (भानु) गुट ने चिल्ला बार्डर पर करीब 58 दिन तक कृषि कानूनों के विरोध में धरना दिया था।
  • चिल्ला बार्डर से नोएडा से दिल्ली जाने वाली सड़क 58 दिन तक बंद थी।
  • 15 दिसंबर 2019 को शुरू हुआ था दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में मुस्लिम समुदाय और छात्रों के प्रदर्शन के कारण दिल्ली में प्रदर्शन 24 मार्च 2020 तक चला था।
  • 98 दिन चले इस प्रर्दशन के कारण नोएडा कालिंदी कुंज से होकर दिल्ली जाने वाला बार्डर बंद था इस कारण चालकों को डीएनडी, चिल्ला बार्डर होते हुए सरिता विहार, फरीदाबाद आदि की ओर जाना पड़ता था।
-क्या आप मानते हैं कि दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन या धरना कर राजधानी को बंधक बना लिया जाना अनुचित है?

-हां : 96

नहीं : 4

-क्या प्रदर्शनकारियों को दिल्ली की सीमाओं के बजाय किसी वैकल्पिक स्थान पर प्रदर्शन के लिए बाध्य किया जाना चाहिए?

हां : 99

नहीं : 1

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