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Delhi Violence: हिंसा के ऐसे जख्म दिल्ली ने कभी नहीं देखे

Delhi Violence दंगों में अबतक करीब 28 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग बुरी तरह जख्मी हैं। बेहिसाब दुकान मकान और वाहनों को फूंक दिया गया।

By Neel RajputEdited By: Updated: Thu, 27 Feb 2020 09:52 AM (IST)
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Delhi Violence: हिंसा के ऐसे जख्म दिल्ली ने कभी नहीं देखे

नई दिल्ली [सुधीर कुमार]। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद शुरू हुए दंगों ने सामाजिक तानेबाने को ध्वस्त करके रख दिया। दंगों में अबतक करीब 28 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग बुरी तरह जख्मी हैं। बेहिसाब दुकान, मकान और वाहनों को फूंक दिया गया। हजारों लोग लोग बेघर हैं और भारी तादाद में लोग अपने घरों को छोड़कर भागने को मजबूर हैं।

दंगों की शुरूआत मौजपुर में हुई।

जब सीएए के विरोध में जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर धरना प्रदर्शन शुरू हुआ। रोड बंद कर दिया गया। शाहीन बाग से परेशान दूसरा पक्ष सीएए के विरोधियों के विरोध में खड़ा हो गया। इसी बीच सीएए के विरोधियों ने सीएए के समर्थकों पर पथराव शुरू किया जिसके बाद बात बिगड़ती चली गई और मौजपुर से शुरू हुए इस टकराव ने दंगे का रूप धारण किया जो बाद में सांप्रदायिक दंगे में बदल गया।

1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ था तब भी उत्तर पूर्वी दिल्ली में सबसे ज्यादा दंगे हुए थे। उस समय उत्तर पूर्वी जिले के पुलिस उपायुक्त दीपक मिश्र और अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त अजय कश्यप होते थे। जनता कॉलोनी लकड़ी मार्केट में आग लगा दी गई थी और जाफराबाद में हवलदार से रायफल छीन कर उसकी संगीन उसके पेट में घोंप दी गई थी। इसके बाद मौजपुर चौक पर दिल्ली पुलिस के जिला स्पेशल स्टाफ की गाड़ी में आग लगा दी गई। उस समय सीलमपुर, जाफराबाद, जनता कॉलोनी, कबीर नगर, चौहान बांगर, गौतमपुरी, ब्रह्मपुरी, सुभाष मोहल्ला और घोंडा के कुछ हिस्से दंगा प्रभावित रहे। लेकिन इन्हें यहीं तक सीमित कर दिया गया।

लेकिन इस बार उत्तर पूर्वी जिले के कई ऐसे इलाके है जो कभी दंगे की चपेट में नहीं रहे। 1992 में भी यहां कुछ नहीं हुआ। इन इलाकों में यमुना विहार, करावल नगर, मुस्तफाबाद, चांद बाग, गोकलपुरी, शिव विहार शामिल हैं। सीलिंग को लेकर 2007 में भी दंगा हुआ था लेकिन उसने सांप्रदायिक रूप धारण नहीं किया। उस समय भी पुलिस निशाने पर थी।

गोकुलपुर निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक समभोले वर्मा का कहना है कि लोगों की जान जा रही है, दुकानों जल रही हैं। लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं। दंगाई भीड के सर पर तो बस खून सवार है। मैंने 1984 और 1992 दंगे देखे हैं, लेकिन ऐसा डर और खौफ कभी नहीं रहा। इतना नुकसान कभी नहीं हुआ। स्थिति सुधरनी चाहिए।

वहीं जाफराबाद में रहने वाले फहीम बेग ने कहा कि कई दशक से यमुनापार में रह रहा हूं। लेकिन इस बार की घटना ने पुलिस प्रशासन पर कलंक लगा दिया। कभी ऐसी स्थिति नहीं हुई। शांति के लिए लोगों से लगातार संपर्क किया जा रहा है। सबकुछ पहले जैसा होगा, साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी।

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