Move to Jagran APP

Delhi News: कचरे के पहाड़ को समतल करने की परियोजना लक्ष्य से काफी पीछे, जानें क्या है कारण?

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2019 से तीन लैंडफिल साइट्स पर जमा कुल 21 लाख टन कचरे का जैव-खनन किया जा रहा है। विडंबना यह कि हर साल लगभग 20 लाख टन नया ठोस कचरा डंपिंग साइट्स में जाता है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Mon, 13 Jun 2022 12:14 PM (IST)
Hero Image
अक्टूबर 2019 में पांच साल के भीतर सारे कचरे के निष्पादन का रखा गया था लक्ष्य।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। कचरे के पहाड़ को समतल करने की परियोजना लक्ष्य से काफी पीछे चल रही है। पांच साल की निर्धारित समय सीमा में से ढाई साल बीत गए हैं, जबकि दिल्ली की तीन लैंडफिल साइट गाजीपुर, ओखला और भलस्वा में कूड़े के पहाड़ के पांचवें हिस्से से भी कम का निपटारा किया गया है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2019 से तीन लैंडफिल साइट्स पर जमा कुल 21 लाख टन कचरे का जैव-खनन किया जा रहा है। विडंबना यह कि हर साल लगभग 20 लाख टन नया ठोस कचरा डंपिंग साइट्स में जाता है।

एनजीटी ने जुलाई 2019 में तत्कालीन नगर निगमों को डंपिंग साइट्स को कैप करने के बजाय ट्रामेल मशीनों का उपयोग कर पुराने कचरे को बायोमाइन करने का निर्देश दिया था। तीनों निगमों द्वारा एनजीटी को सौंपी गई एक कार्य योजना के अनुसार, गाजीपुर लैंडफिल साइट तीनों डंपिंग साइट्स में सबसे बड़ी है। यह 140 लाख टन पुराने कचरे का भंडारण करती है। ओखला में 60 और भलस्वा में 80 लाख टन पुराना कचरा है। गाजीपुर, ओखला और भलस्वा लैंडफिल साइट्स क्रमश: 70, 46 और 70 एकड़ में फैली हुई है। ओखला लैंडफिल में कचरे को दिसंबर 2023 तक निष्पादित किया जाना है, गाजीपुर और भलस्वा डंपिंग साइट्स की समय सीमा दिसंबर 2024 है।

डीपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, तीन स्थलों पर अब तक केवल 52.5 लाख टन पुराने कचरे को निष्पादित किया गया है। गाजीपुर लैंडफिल साइट में सबसे धीमी प्रगति देखी गई है। पूर्वी दिल्ली में डंप साइट पर मई के अंत तक केवल 11 लाख टन (7.86 प्रतिशत) पुराने कचरे को निष्पादित किया गया है। इसने परियोजना के पहले वर्ष (अक्टूबर, 2019 से अक्टूबर, 2020 तक) में तीन लाख टन पुराने कचरे को निष्पादित किया। दूसरे वर्ष में 4.81 लाख टन (अक्टूबर 2020 से अक्टूबर 2021 तक) और तीसरे वर्ष में अब तक लगभग 3.2 लाख टन कचरे का निपटान किया है।

ओखला डंपिंग साइट पर 60 लाख टन कचरे में से 16.5 लाख टन निष्पादित

आंकड़ों से पता चलता है कि तत्कालीन पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) ने प्रति वर्ष औसतन 4.4 लाख टन कचरे का जैव-खनन किया। इस गति से अधिकारियों को पूरे कचरे को वहां से निष्पादित करने में लगभग 29 वर्ष लगेंगे। ओखला डंपिंग साइट पर 60 लाख टन कचरे में से 16.5 लाख टन को निष्पादित किया जा चुका है। तत्कालीन एसडीएमसी ने पहले वर्ष में लगभग 1.6 लाख टन, दूसरे वर्ष में 5.84 लाख टन और तीसरे वर्ष में 8.66 लाख टन कचरे का जैव-खनन किया।

ओखला लैंडफिल में औसतन 6.6 लाख टन पुराने कचरे को निष्पादित किया जा रहा है, जिसका अर्थ है कि पुराने कचरे से निपटने के लिए और 6.5 वर्षों की आवश्यकता है। पूर्व नार्थ एमसीडी ने परियोजना शुरू होने के बाद से 25 लाख टन (31.25 प्रतिशत) कचरे का जैव-खनन किया है, औसतन हर साल 10 लाख टन। इस हिसाब से अधिकारियों को काम पूरा करने में 5.5 साल और लगेंगे।

दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 11 हजार टन ठोस कचरा होता है उत्पन्न आंकड़ों से पता चलता है कि अक्टूबर 2019 में गाजीपुर, ओखला और भलस्वा लैंडफिल साइट्स पर क्रमश: 12, 8 और 15 ट्रामेल मशीनें चालू थीं। गाजीपुर में मशीनों की संख्या घटकर आठ रह गई, जबकि इसी अवधि के दौरान ओखला में यह 26 और भलस्वा में 44 हो गई। डीपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 11,000 टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है। इसमें से लगभग 5,000 टन निष्पादित किया जाता है और शेष (6,000 टन प्रति दिन या 21.6 लाख टन प्रति वर्ष) लैंडफिल साइट्स में समाप्त हो जाता है। एमसीडी के एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें दिसंबर 2024 तक लक्ष्य हासिल करने की उम्मीद है और ट्रामेल मशीनों की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।