Odd Even Formula: ऑड-ईवन को लेकर CSE का दावा, कहा- सख्ती से लागू हो तो निकल सकते है अच्छे परिणाम
सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता राय चौधरी ने बताया कि राजधानी में जिस दौरान ऑड-ईवन योजना लागू हुई थी उस समय मौसम बेहद खराब रहा था। ऐसे में इस योजना का ही नतीजा रहा जो प्रदूषण का स्तर जानलेवा स्तर तक नहीं पहुंचा। उन्होंने बताया कि इस दौरान हवा की रफ्तार बेहद धीमी रही और कई दिन ऐसे भी रहे जब हवा बिल्कुल बंद रही।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। राजधानी में प्रदूषण पर काबू पाने के लिए दिल्ली सरकार ने सर्वप्रथम सम-विषम व्यवस्था दिसंबर 2015 और जनवरी 2016 में लागू की थी। तब इसके विश्लेषण में सेंटर फार साइंस एंड एंवॉयरमेंट (सीएसई) ने इसे बेहतर प्रयास करार दिया था, बशर्ते इसे सख्ती से लागू किया जाए और छूट का दायरा भी कम हो।
रिपोर्ट में CSE का दावा
सीएसई ने अपने विश्लेषण में कहा था कि इस व्यवस्था के खत्म होने के तुरंत बाद पहले ही कार्यदिवस (18 जनवरी) को दिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के स्तर में 57 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज हो गई थी। इतना ही नहीं, अपनी रिपोर्ट में सीएसई ने ये भी कहा था कि इस योजना के लागू रहने के दौरान जब दिल्ली-एनसीआर की सेटेलाइट इमेज का आकलन किया गया तो नजर आया कि दिल्ली वायु प्रदूषण के मोर्चे पर आसपास के इलाकों से ज्यादा बेहतर स्थिति में था।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता राय चौधरी ने बताया कि राजधानी में जिस दौरान ऑड-ईवन योजना लागू हुई थी, उस समय मौसम बेहद खराब रहा था। ऐसे में इस योजना का ही नतीजा रहा, जो प्रदूषण का स्तर जानलेवा स्तर तक नहीं पहुंचा। उन्होंने बताया कि इस दौरान हवा की रफ्तार बेहद धीमी रही और कई दिन ऐसे भी रहे जब हवा बिल्कुल बंद रही।
ऑड-ईवन फॉर्मूला
रिपोर्ट में सामने आया है कि सम-विषम फार्मूले के दौरान दिल्ली में सुबह व शाम के व्यस्त समय में भले ही प्रदूषण का स्तर अधिक रहा हो, पर दोपहर दो बजे से शाम पांच बजे के बीच इसमें गिरावट नजर आई। इसी तरह ये योजना खत्म होने के बाद किए गए मूल्यांकन में सामने आया है कि सारा दिन दिल्ली में प्रदूषण का स्तर एक समान ही रहा।
चौधरी ने कहा कि अब जरूरत है कि सरकार सर्दी बढ़ने को ध्यान में रखे और प्रदूषण कम करने के लिए तत्काल प्रभाव से कुछ आवश्यक कदम उठाए। इनमें सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बेहतर बनाना, साइकिल चलाने व पैदल चलने के लिए लोगों को प्रेरित करना प्रमुख है। इसके अलावा प्रदूषण को लेकर सर्वोच्च न्यायालयों के निर्देश का पालन और पार्किंग शुल्क में इजाफा किया जाना चाहिए।
CSE के निष्कर्ष
- सीएसई ने कहा कि दिसंबर 2015 के मुकाबले जनवरी 2016 में सम-विषम फार्मूले के समय डीजल-पेट्रोल की खपत में गिरावट दर्ज हुई। डीजल में 7.8 प्रतिशत, जबकि पेट्रोल की खपत में 4.7 प्रतिशत गिरावट आई।
- ट्रैफिक जाम के मामले में भी इस फार्मूले के दौरान काफी राहत मिली। मुख्यरूप से मथुरा रोड, राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 24, राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-1, बहादुर गढ़ रोड व ¨रग रोड पर वाहनों की भीड़ में भारी कमी देखने को मिली। इन मार्गो पर सम विषम के दौरान वाहनों की औसत रफ्तार 50 किमी प्रति घंटा दर्ज हुई, जोकि सामान्य दिनों में 20 से 25 किलोमीटर प्रति घंटा रहती थी।
- योजना के दौरान दिल्ली में पीएम 2.5 व पीएम 10 के साथ-साथ कारों से निकलने वाले धुएं से वातावरण में घुलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा में भी आम दिनों के मुकाबले 40 प्रतिशत की कमी आई। सबसे ज्यादा राहत डीजल कारों के सड़कों पर न उतरने से मिली।
विशेषज्ञों की अलग-अलग राय
प्रदूषण बढ़ने की स्थिति पर सम विषम व्यवस्था हालात पर नियंत्रण करने का एक कारगर उपाय है, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन किसी भी व्यवस्था को लागू करने का एक तरीका होता है। अगर इसे राजनीतिक स्तर पर लागू किया जाएगा तो फायदा कम और जनता को परेशानी ही ज्यादा होगी। इसके तहत छूट भी केवल पर्यावरण अनुकूल वाहनों और अनिवार्य सेवाओं से जुड़े वाहनों को ही दी जानी चाहिए, इसके अतिरिक्त किसी को नहीं। सम विषम प्रदूषण कम करने का अस्थायी उपाय है, प्रयास स्थायी प्रयासों काे बढ़ावा दिए जाने का किया जाना चाहिए। -डॉ. दीपांकर साहा, पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी
मेरे विचार में सम विषम व्यवस्था भी बहुत कारगर नहीं है। वैसे भी राजनीतिक कारणों से दिल्ली में इसके तहत तमाम लाेगों को छूट दे रही है। अगर गंभीरता से सोचा जाए तो सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करके ही प्रदूषण की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। सड़कों पर निजी वाहनों का जो बोझ ऑड इवेन के जरिये कम करने की कोशिश हो रही है, वह सार्वजनिक परिवहन की मजबूती से स्थायी तौर पर हो सकती है।-डॉ. टी के जाेशी, सदस्य, ग्रेप उप समिति, सीएक्यूएम
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