Delhi: पैनिक बटन घोटाले में अब तक नहीं दर्ज हुआ केस, ढाई माह बाद भी FIR की नहीं मिली अनुमति
एसीबी के संयुक्त आयुक्त मधुर वर्मा का कहना है कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में प्रविधान है कि सरकारी विभाग के खिलाफ केस दर्ज करने से पहले विजिलेंस सचिव से अनुमति लेनी होती है। विजिलेंस सचिव ने परिवहन विभाग से इस मामले में जानकारी मांगी लेकिन जानकारी मुहैया नहीं कराई गई। नियमत विभाग इसके लिए दो माह का समय लेता है।
राकेश कुमार सिंह, नई दिल्ली: पैनिक बटन घोटाला मामले में भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) को विजिलेंस सचिव की ओर से मुकदमा दर्ज करने की अनुमति अब तक नहीं मिल पाई है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए डीटीसी, कलस्टर बसों, टैक्सियों और ऑटो में पैनिक बटन और ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) लगाए थे। जिसमें 100 करोड़ रुपये से अधिक की राशि का घोटाला मामले सामने आया था।
ढाई माह पहले ही एसीबी ने विजिलेंस सचिव सुधीर कुमार को पत्र लिखकर मुकदमा दर्ज करने के संबंध में अनुमति मांगी थी। एसीबी को उम्मीद थी कि विजिलेंस सचिव से जल्द अनुमति मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब एसीबी ने सोमवार को विजिलेंस सचिव को दोबारा पत्र लिखकर जल्द अनुमति देने की मांग की है।
केस दर्ज कराने के लिए लेनी होती है अनुमति
एसीबी के संयुक्त आयुक्त मधुर वर्मा का कहना है कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में प्रविधान है कि सरकारी विभाग के खिलाफ केस दर्ज करने से पहले विजिलेंस सचिव से अनुमति लेनी होती है। विजिलेंस सचिव ने परिवहन विभाग से इस मामले में जानकारी मांगी, लेकिन जानकारी मुहैया नहीं कराई गई। नियमत: विभाग इसके लिए दो माह का समय लेता है। विशेष परिस्थिति में एक माह का अतिरिक्त समय ले सकता है।
पैनिक बटन के मामले में मिली थी कई खामियां
बता दें कि जून में पैनिक बटन के मामले में खामियां सामने आने पर एलजी वीके सक्सेना ने एसीबी को टैक्सी, आटो, डीटीसी और कलस्टर बसों में लगे पैनिक बटन का आडिट करने के निर्देश दिए थे। आडिट में भारी अनियमितताएं पाई गईं। 112 (पुलिस के कमांड और कंट्रोल रूम) नंबर से पैनिक बटन कंट्रोल रूम की कोई कनेक्टिविटी नहीं पाई गई।
95 करोड़ रुपये का किया गया भुगतान
इस तरह का फर्जीवाड़ा सामने आने पर सरकार की पूरी कवायद पर पानी फिरने का मामला सामने आया। एसीबी का कहना है कि सरकार दावा करती रही है कि सभी बसों में पैनिक बटन लगे हैं, सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। लगभग 5,500 बसों में पैनिक बटन जैसे डिवाइस लगाए गए थे, जिनमें वर्तमान में 4,600 बसें अभी सड़कों पर चल रही हैं। बसों में डिवाइस लगाने के लिए एक कंपनी को 95 करोड़ रुपये का भुगतान भी किया गया।
मेंनटेनेंस के लिए 3,000 रुपये प्रतिमाह हो रहे खर्च
इसके अलावा 3,000 रुपये प्रतिमाह प्रति बस के मेंनटेनेंस पर अलग से खर्च किया जा रहा है, लेकिन महिलाओं को इससे कोई फायदा न होने पर सारा खर्च बेकार जा रहा है। बसों में जो सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, उसे मानीटर करने के लिए 41 व्यूइंग सेंटर तो बना दिए गए, लेकिन उनमें एक में भी कर्मचारी मौजूद नहीं था। अधिकतर सीसीटीवी कैमरे भी खराब पाए गए।
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