Delhi Police: सीपी संजय अरोड़ा ने ACP व SHO की तैनाती को लेकर जारी किया नया लेटर, पढ़िये डिटेल
Delhi Policeएक थाने में थानाध्यक्ष का कार्यकाल महज दो साल का माना जाता है लेकिन कुछ को दो साल से पहले भी हटा दिया जाता था तो कुछ दो साल बाद तक भी पद पर बने रहते थे। तैनाती को लेकर पहले कोई मापदंड नहीं था।
By JagranEdited By: Vinay Kumar TiwariUpdated: Fri, 30 Sep 2022 10:10 AM (IST)
नई दिल्ली [राकेश कुमार सिंह]। Delhi Police: दिल्ली पुलिस में एसीपी व इंस्पेक्टरों की तैनाती को लेकर मुख्यालय ने बुधवार को दो अलग-अलग परिपत्र (सर्कुलर) जारी कर महकमे में खलबली मचा दी। नए आदेश के मुताबिक जिले के सब डिवीजन में एसीपी की तैनाती अब केवल चार साल की ही होगी और इंस्पेक्टर को थानाध्यक्ष पद की कुर्सी तीन साल तक के लिए ही मिलेगी।
अब से पहले दिल्ली पुलिस में न तो एसीपी व न ही इंस्पेक्टरों के लिए कोई मापदंड था। एसीपी लगातार कई सालों तक सब डिवीजन में तैनात रहते थे। वे स्पेशल सेल, क्राइम ब्रांच आदि यूनिटों में नहीं जाना चाहते थे। इंस्पेक्टर भी सालों तक थानाध्यक्ष पद पर बने रहते थे। कई इंस्पेक्टरों को लगातार छह से सात थानों में थानाध्यक्षों की जिम्मेदारी मिल जाती थी।
एक थाने में थानाध्यक्ष का कार्यकाल महज दो साल का माना जाता है लेकिन कुछ को दो साल से पहले भी हटा दिया जाता था तो कुछ दो साल बाद तक भी पद पर बने रहते थे। तैनाती को लेकर पहले कोई मापदंड नहीं था। अब मापदंड बना देने पर महकमे में खलबली मची हुई है।
दिल्ली पुलिस में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी पुलिस आयुक्त ने इसको लेकर परिपत्र जारी किया है। मुख्यालय के अधिकारी कहते हैं कि महकमे में भ्रष्टाचार को खत्म करने, पारदर्शिता लाने व सभी को बराबर का अधिकार देने के मकसद से ऐसा किया गया है। लेकिन खास बात यह भी है कि दिल्ली पुलिस में भी मंत्रालयों व नेताओं की सिफारिशों पर 50 प्रतिशत से अधिक तैनाती होती है। ऐसे में क्या इस तरह के परिपत्र का पालन हो पाएगा? यह आने वाला समय ही बताएगा।
क्योंकि दिल्ली पुलिस में आइपीएस के भी सभी शीर्ष पदों पर तैनाती के लिए कोई मापदंड नहीं है और सिफारिशें वहां भी चलती रहीं है। इस नए आदेश से पहले पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने मौखिक तौर पर यह फैसला लिया था कि इंस्पेक्टरों को लगातार दो थानों के थानाध्यक्ष नहीं बनाए जाएंगे। इसके बीच एक साल का गैप होना चाहिए। वैसे शुरू से परंपरा रही है कि थानाध्यक्षों के ट्रैक रिकार्ड व उनके बेहतर अनुभव को देखते हुए कई थानों में थानाध्यक्षोें की जिम्मेदारी मिलती थी।
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थानाध्यक्ष लगाने से पहले इंस्पेक्टरों को किसी थाने में एक साल इंस्पेकटर इंवेस्टिगेशन व एक साल एटीओ रहने की व्यवस्था थी। नई व्यवस्था के तहत मुख्यालय में स्क्रीनिंग की जिम्मेदारी डीसीपी हरेंद्र कुमार सिंह को सौंपी गई है। वे इंस्पेक्टरोें को मुख्यालय बुलाकर पूछते हैं कि वे थानाध्यक्ष लगना चाहते हैं अथवा नहीं। हामी भरने वाले इंस्पेक्टरों के ट्रैक रिकार्ड की जांच की जाती है। जिनके रिकार्ड अच्छे होते हैं उन्हें साक्षात्कार के लिए काल किया जाता है।
ऐसा इसलिए किया गया है कि पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना से बिना किसी इंस्पेक्टरों से राय जानें उन्हें थानाध्यक्ष लगा दिया था। नतीजा यह सामने आया था कि बड़ी संख्या में इंस्पेक्टर थानाध्यक्ष की कुर्सी नहीं संभाल पाए। कई थानाध्यक्षों ने मुख्यालय में पेश होकर पद से हटाने की संस्तुति की थी।
कईयों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने से महकमे की छवि खराब हुई थी। इस बार साक्षात्कार के लिए पहली बार पांच विशेष आयुक्तों के बोर्ड का गठन किया गया है, जिनमें विशेष आयुक्त एचआर, दोनों विशेष आयुक्त कानून एवं व्यवस्था, विशेष आयुक्त इंटेलीजेंस व विशेष आयुक्त विजिलेंस को रखा गया है।
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