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डार्कवेब में ‘गुम’ हो गई दिल्ली पुलिस की जांच, दो स्कूलों को मिली धमकी के ईमेल का नहीं लग सका पता

ज्यादातर मामलों में मेल भेजने वाले द्वारा विदेशी सर्वर या डार्कवेब का इस्तेमाल करने के चलते मेल भेजने वाले तक पुलिस नहीं पहुंच पाती है। धमकी भरे ईमेल भेजने वाले ज्यादातर आरोपितों द्वारा ऐसे सर्वर का इस्तेमाल करने से जो अपने उपभोक्ताओं का डाटा साझा नहीं करते हैं या फिर डार्कवेब का इस्तेमाल करने के कारण वह पुलिस की गिरफ्त से बचे रहते हैं।

By Jagran News Edited By: Sonu Suman Updated: Wed, 01 May 2024 10:35 PM (IST)
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दो स्कूलों को मिली धमकी के ईमेल का नहीं लग सका पता
मनीष राणा, नई दिल्ली। दिल्ली के कई स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी देने का मामला कोई पहली बार नहीं है। पहले भी दिल्ली के स्कूलों को इस तरह क धमकी मिलती रही हैं, मगर इतने बडे़ पैमाने पर एक साथ स्कूलों को धमकी पहली बार मिली है। इनमें कुछ मामलों में ही पुलिस आरोपितों तक पहुंच पाती है। ज्यादातर मामलों में मेल भेजने वाले द्वारा विदेशी सर्वर या डार्कवेब का इस्तेमाल करने के चलते मेल भेजने वाले तक पुलिस नहीं पहुंच पाती है। 

धमकी भरे ईमेल भेजने वाले ज्यादातर आरोपितों द्वारा ऐसे सर्वर का इस्तेमाल करने से जो अपने उपभोक्ताओं का डाटा साझा नहीं करते हैं या फिर डार्कवेब का इस्तेमाल करने के कारण वह पुलिस की गिरफ्त से बचे रहते हैं। इस फरवरी में दो स्कूलों को धमकी भरे ईमेल भेजने वाले तक दिल्ली पुलिस नहीं पहुंच सकी है।

डार्कवेब की मदद से भेजे जाते हैं अधिकतर मेल

स्पेशल सेल के एडिशनल कमिश्नर प्रमोद कुशवाहा का कहना है कि ज्यादातर मामलों में ऐसे ईमेल विदेशी सर्वरों और डार्कवेब की मदद से भेजे जाते हैं। जिसके चलते आरोपितों का आइपी एड्रेस ट्रेस करना मुश्किल हो जाता है। इंटरनेट पर कुछ सर्विस प्रोवाइडर ऐसे है, जो अपने उपभोक्ताओं की जानकारी साझा नहीं करते हैं आराेपित इसका ही फायदा उठाते हैं। इसलिए अधिकांश मामले सुलझ नहीं पाते हैं।

आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत यदि कोई किसी को इलेक्ट्रॉनिक रूप में धमकी भरा या अश्लील ईमेल भेजता है, तो उसे तीन साल की जेल और जुर्माना देना पड़ सकता है। इसके अलावा आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 54 के तहत किसी आपदा को लेकर फर्जी और दहशत की खबर फैलाने पर एक साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।

फरवरी में दो स्कूलों को मिली थी धमकी

12 फरवरी, 2024 को दिल्ली के साकेत के पुष्प विहार इलाके में स्थित एमिटी स्कूल को बम से उड़ाने की धमकी दी गई थी। उस वक्त भी स्कूल प्रबंधन को ईमेल के जरिये स्कूल को बम से उड़ाने की धमकी मिली थी। वहीं, दो फरवरी को आरकेपुरम स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल को बम से उड़ाने की धमकी दी गई थी। इसमें प्रिंसिपल को एक मेल भेजा गया था और इसी मेल के जरिये स्कूल में बम ब्लास्ट करने की धमकी दी गई थी। 

बीते साल 25 अप्रैल को दिल्ली पब्लिक स्कूल की आधिकारिक आईडी पर बम की धमकी भरा ईमेल भेजा गया था। 12 अप्रैल, 2023 को डिफेंस कॉलोनी में स्थित द इंडियन स्कूल को ईमेल से ऐसी ही धमकी मिली थी। इससे पहले 2022 नवंबर में भी स्कूल को एक ईमेल आया था, लेकिन उसका सर्वर जर्मनी से था, इसलिए आगे उसका लिंक स्टैबलिश नहीं हो पाया था।

मेल भेजने वाला निकला था स्कूल का ही नाबालिग छात्र

25 अप्रैल, 2023 को दिल्ली पब्लिक स्कूल प्रशासन को उसके आधिकारिक आईडी पर एक ईमेल प्राप्त हुआ था, जिसमें दावा किया गया कि कैंपस में बम लगाया गया, जो बुधवार यानी 26 अप्रैल को सुबह नौ बजे एक्टिवेट हो जाएगा। बाद में पुलिस को कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मामले में पूछताछ की और पाया गया कि इस मेल के लिए रूस स्थित सर्वर का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन आगे की जांच में पता चला कि संदिग्ध दिल्ली में है। 

जांच में यह भी पता चला कि छात्र ने बचने के लिए कथित तौर पर अलग-अलग साफ्टवेयर का इस्तेमाल किया। लड़के की पहचान कर ली गई, क्योंकि वह 16 साल का था, इसलिए न तो उसे पकड़ा जा सकता था और न ही उसे थाने बुलाया जा सकता था। लड़के ने मजे के लिए ऐसा किया था, बाद में पुलिस ने छात्र की काउंसलिग कराई।

अन्य शहरों में भी धमकी का मिल चुका है ईमेल

दिल्ली-एनसीआर में बुधवार को कई स्कूलों को एक साथ परिसर में बम होने का धमकी भरा ईमेल मिला। जबकि इससे पहले बेंगलुरु में भी ऐसा हो चुका है। एक दिसम्बर, 2023 को बेंगलुरु के लगभग 48 स्कूलों को धमकी भरा ईमेल मिला था।

क्या होता है डार्कवेब

डार्कवेब इंटरनेट का वो हिस्सा है, जहां वैध और अवैध दोनों तरीके के कामों को अंजाम दिया जाता है। इंटरनेट का 96 फीसद हिस्सा डीप वेब और डार्क वेब के अंदर आता है। हम इंटरनेट कंटेंट के केवल चार प्रतिशत हिस्से का इस्तेमाल करते है, जिसे सरफेस वेब कहा जाता है। डीप वेब पर मौजूद कंटेंट को एक्सेस करने के लिए पासवर्ड की जरूरत होती है जिसमें ई-मेल, नेटबैंकिंग आते हैं। डार्क वेब को खोलने के लिए टार ब्राउजर का इस्तेमाल किया जाता है। डार्कवेब पर ड्रग्स, हथियार, पासवर्ड, पार्न जैसी प्रतिबंधित चीजें मिलती हैं।

कैसे करता है काम

डार्कवेब ओनियन राउटिंग टेक्नोलॉजी पर काम करता है। ये यूजर्स को ट्रैकिंग और सर्विलांस से बचाता है और उनकी गोपनीयता बरकरार रखने के लिए सैकड़ों जगह रूट और री-रूट करता है। आसान शब्दों में कहा जाए तो डार्क वेब ढेर सारी आइपी एड्रेस से कनेक्ट और डिस्कनेक्ट होता है, जिससे इसको ट्रैक कर पाना असंभव हो जाता है। यहां यूजर की जानकारी इंक्रिप्टेड होती है, जिसे डिकोड करना नाममुकिन है। डार्क वेब पर डील करने के लिए वर्चुअल करेंसी जैसे बिटकाइन का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा इसलिए होता है, ताकि लेनदेन की पहचान न की जा सके।

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