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Delhi Qutub Minar News: शोधकर्ताओं ने भी कुतुबमीनार को माना है वेधशाला, जानें अन्य डिटेल

डा. भोजराज द्विवेदी ने कुतुबमीनार व इसके नाम को कुतुबुद्दीन ऐबक से जोड़े जाने को पूरी तरह गलत बताते हुए लिखा है कि कुतुब अरबी भाषा का शब्द है जिसका हिंदी अर्थ ध्रुव होता है। मीनार या नक्षत्र निरीक्षण का स्तंभ थी जिसे सूर्य स्तंभ भी कहा जाता था।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Wed, 18 May 2022 07:56 PM (IST)
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अपनी पुस्तक में अनेक तर्कों से कुतुबुद्दीन ऐबक से इसके संबंधों को किया खारिज
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। राजधानी में स्थित कुतुबमीनार सम्राट विक्रमादित्य काल की वेधशाला है यह तर्क सिर्फ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) से जुड़े पुरातत्वविद का ही नहीं है, बल्कि कुछ अन्य इतिहासकारों एवं ज्योतिषियों के शोध भी इसे बल प्रदान करते हैं। जोधपुर में रहे प्रतिष्ठित ज्योतिषी डा. भोजराज द्विवेदी ने इस विषय पर गहन शोध किया था, जिसके आधार पर उन्होंने एक पुस्तक ‘कुतुबमीनारः हिंदू वेधशाला’ भी लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने कुतुबमीनार के वेधशाला होने को लेकर विभिन्न तर्क दिए हैं, जो सत्य के निकट नजर आते हैं।

डा. भोजराज द्विवेदी ने कुतुबमीनार व इसके नाम को कुतुबुद्दीन ऐबक से जोड़े जाने को पूरी तरह गलत बताते हुए लिखा है कि कुतुब अरबी भाषा का शब्द है, जिसका हिंदी अर्थ ध्रुव होता है। इस तरह यह ध्रुव तारा देखने की मीनार या नक्षत्र निरीक्षण का स्तंभ थी, जिसे सूर्य स्तंभ भी कहा जाता था। यही वजह है कि वेधशाला के इस स्तंभ को अरबी में कुतुबमीनार कहा गया और कुतुबुद्दीन ऐबक से सिर्फ इसका नाम मिलने की वजह से इतिहासकारों ने इसे उससे जोड़ दिया, जबकि ऐबक से जुड़े इतिहास में सिर्फ इसके निर्माण का श्रेय उसे दिए जाने का अलावा इससे जुड़ा कोई अन्य तथ्य नहीं मिलता।

डा. भोजराज द्विवेदी के निधन के बाद उनका कामकाज संभाल रहे उनके पुत्र ज्योतिषी पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी ने बताया कि डा. भोजराज द्विवेदी ने गहन शोध के बाद अपनी पुस्तक में अनगिनत तरीकों से यह स्पष्ट किया है कि कुतुबमीनार एक वेधशाला का स्तंभ था, जो वाराहमिहिर की देखरेख में बनवाया गया था। इसे लेकर उनके कुछ तर्क इस प्रकार हैं...

-हिंदू स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूनाः यह हिंदू स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है, जिसे हिंदू सम्राट ने खुले हाथ से धन खर्च कर लंबे समय में तैयार करवाया। कुतुबुद्दीन ऐबक मात्र चार साल दिल्ली में नाममात्र का सुल्तान ही रहा। इस बीच, वह दो बार गजनी गया और हिंदुस्तान में भी उसका ज्यादातर समय विद्रोहों का दमन करने में बीता। जो सुल्तान शासक के रूप में स्थिर ही नहीं था, उसके द्वारा ऐसी बेजोड़ कृति बनाए जाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

-मेरु-पृष्ठीय श्रीयंत्र सी बनावटः कुतुबमीनार को इसके थोड़ा ऊपर से देखा जाए तो इसकी बनावट मेरु-पृष्ठीय श्रीयंत्र की तरह नजर आएगी। इस प्रकार देखने पर सबसे नीचे 16 गज चौड़ी और 16 गज गहरी कमल की पंखुड़ियां दिखेंगी। फिर एक कमल में से दूसरा, फिर तीसर, चौथा व पांचवां कमल दल निकलता हुआ दिखाई देगा। यह हिंदू वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है।

-सूझबूझ और कौशल का प्रयोगः इस स्तंभ को बनाने में बहुत सूझबूझ और अप्रतिम कौशल का प्रयोग किया गया। साथ ही इसे जल्दबाजी में नहीं, बल्कि बेहद तसल्ली से बनाया गया। ऐसी सूझबूझ या कौशल की किसी ऐसे सुल्तान से अपेक्षा नहीं की जा सकती, जो अनपढ़ व अत्याचारी था, जो अनेक मालिकों के हाथ में बिका और उसका अंतिम मालिक मोहम्मद गोरी था।

-नीचे तक नहीं आती आवाजः कुछ मुस्लिम इतिहासकार कहते हैं कि इस मीनार को अजान देने के लिए बनवाया गया था, जबकि सच्चाई यह है कि यह इतनी ऊंची है कि इसके ऊपर से अजान दी जाएगी तो आवाज नीचे तक नहीं आएगी।

-ज्योतिष नियमों के अनुरूपः ज्योतिष नियमों के अनुसार सभी वेधशालाओं के प्रवेश द्वार व झरोखे उत्तराभिमुख होते हैं और यह मीनार भी उत्तराभिमुख है। मीनार का झुकाव पांच अंश दक्षिण की ओर रखा गया है, जो ज्योतिष सिद्धांतों के अनरूप है। इस वजह से 21 जून को जब वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है, दोपहर 12 बजे मीनार की परछाईं जमीन पर नहीं पड़ती। वर्ष के सबसे छोटे दिन 23 दिसंबर को मीनार की छाया तिगुनी यानी सबसे लंबी दिखाई देती है।

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