Delhi Services Bill: सेवा पर अधिकार की कोशिश में AAP सरकार ने बहुत कुछ खो दिया, LG होंगे मोर पावरफुल
बिल में एलजी को यह शक्ति दी गई है कि वह कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकते हैं। विधेयक के पास हो जाने के बाद दिल्ली में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे उन पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण खत्म हो गया है। ये शक्तियां एलजी के जरिये केंद्र के पास चली गई हैं। एनसीसीएसए की सिफारिश पर एलजी फैसला करेंगे।
By Jagran NewsEdited By: Mohammad SameerUpdated: Tue, 08 Aug 2023 06:30 AM (IST)
वीके शुक्ला, नई दिल्ली: सेवा पर अधिकार हासिल करने की कोशिश में दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के हाथ से बहुत कुछ निकल गया है। सेवा विभाग तो नहीं मिला, उल्टे मंत्रियों पर निगरानी और शुरू होने जा रही है। मंत्री अब अपनी मर्जी से फैसले नहीं ले सकेंगे।
सरकार के पास नाम के अलावा अब कुछ नहीं बचा है। राज्यसभा से भी विधेयक पास हो जाने के बाद स्थिति पर गौर करें, तो अब सरकार पर ही निगरानी बढ़ रही है। अब मुख्य सचिव ही तय करेंगे कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत।
इसी तरह अगर सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से गलत है, तो वह मानने से इनकार कर सकते हैं। अध्यादेश के आने के बाद सतर्कता सचिव दिल्ली की निर्वाचित सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, बल्कि उनकी जवाबदेही एलजी के प्रति बनाए गए प्राधिकरण के प्रति होगी। अब अगर मुख्य सचिव को लगेगा कि कैबिनेट का निर्णय गैर-कानूनी है तो वह उसे एलजी के पास भेजेंगे।
इसमें एलजी को यह शक्ति दी गई है कि वह कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकते हैं। विधेयक के पास हो जाने के बाद दिल्ली में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे, उन पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण खत्म हो गया है। ये शक्तियां एलजी के जरिये केंद्र के पास चली गई हैं। विधेयक में आर्टिकल-239 एए पर जोर है, जो केंद्र को नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथारिटी (एनसीसीएसए) बनाने का अधिकार देता है।
एनसीसीएसए की सिफारिश पर एलजी फैसला करेंगे, लेकिन वह ग्रुप-ए के अधिकारियों के बारे में संबधित दस्तावेज मांग सकते हैं। अगर एनसीसीएसए और एलजी की राय अलग-अलग होगी, तो एलजी का फैसला ही अंतिम माना जाएगा।
इसी तरह दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिनियमित कानून द्वारा बनाए गए कियी बोर्ड या आयोग के लिए नियुक्ति के मामले राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण नामों के एक पैनल की सिफारिश एलजी को करेगा। विधेयक में एक नए प्रविधान में कहा गया है कि एलजी ही दिल्ली सरकार द्वारा गठित बोर्डों और आयोगों में राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण द्वारा अनुशंसित नामों के एक पैनल के आधार पर नियुक्तियां करेंगे, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री करेंगे।
लेकिन, इस प्राधिकरण में मुख्यमंत्री अल्पमत में हैं। यानी, प्राधिकरण में वह अपने हिसाब से कुछ भी नहीं करा सकते हैं। जबकि, इससे पहले सरकार की स्थिति ऐसी नहीं थी। सरकार के पास भले ही सेवा विभाग नहीं था, लेकिन उसके पास कैबिनेट के माध्यम से दिल्ली का विकास कराने का पूरा अधिकार था।सरकार कैबिनेट के माध्यम से अपने अनुसार काम करा रही थी। सभी कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन इसी बीच 11 मई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आप को सेवा विभाग मिल गया, लेकिन जिस तरह सरकार अति उत्साह में सक्रिय हुई, उसके बाद 19 मई को केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के सेवा विभाग को लेकर अध्यादेश लेकर आ गई।
इसके बाद यह अध्यादेश पहले लोकसभा और उसके बाद राज्यसभा में पास हो जाने पर अब विधेयक बन गया है। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि सरकार के लिए अपने तरीके से काम करा पाना आसान नहीं होगा।
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