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Delhi Violence: जामिया हिंसा में पुलिस की जांच पर सवालिया निशान, आरोपितों के खिलाफ सुबूत जुटाने में रही नाकाम

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में दिसंबर 2018 में हुई जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम शफूरा जरगर समेत 12 आरोपितों का आरोप मुक्त होना दिल्ली पुलिस के दामन पर कई सवालिया निशान छोड़ गए है। (फोटो-जागरण)

By Vineet TripathiEdited By: Abhi MalviyaUpdated: Sun, 05 Feb 2023 10:00 PM (IST)
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अदालत में पेश किए गए सुबूत नाकाफी साबित हुए।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में दिसंबर 2018 में हुई जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम, शफूरा जरगर समेत 12 आरोपितों का आरोप मुक्त होना दिल्ली पुलिस के दामन पर कई सवालिया निशान छोड़ गए।

पुलिस की जांच तथ्यों पर खरी नहीं उतरी और अदालत में पेश किए गए सुबूत नाकाफी साबित हुए। पुलिस आरोपितों के हिंसा में शामिल होने के संबंध में ऐसा कुछ नहीं पेश कर सकी, जिसे आधार बनाकर अदालत आरोपितों पर आरोप तय कर सकती। पुलिस की जांच पर सवाल उठाते हुए अदालत ने कहा कि जांच एजेंसियों को तकनीकि का उपयोग करना चाहिए था और विश्वसनीय खुफिया जानकारी एकत्र करने के बाद ही अभियुक्तों के खिलाफ मामला शुरू करना चाहिए था।

अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस का पूरा मामला अपूरणीय साक्ष्य से रहित है।गवाहों से अभियुक्तों की फोटो पहचान करने में लगे तीन सालपूरक आरोप पत्र को देखने से पता चलता है कि अभियोजन ने वही फोटोग्राफ व गवाहों के बयान पेश किए, जोकि मुख्य आरोप पत्र में पेश किए गए थे। गवाहों के जरिये फोटो की पहचान करने की प्रक्रिया अभियोजन ने घटना के तीन साल बाद शुरू किया था।

नहीं पेश किया कोई चश्मदीद

अदालत ने कहा कि पुलिस ने ऐसा कोई चश्मदीद नहीं पेश किया जो पुलिस के उस दावे की पुष्टि कर सके कि अभियुक्त किसी भी तरह से अपराध करने में शामिल थे।ऐसे में घटनास्थल पर अभियुक्तों की मौजूदगी उन्हें अपराध में शामिल होना साबित नहीं कर सकती है।

आरोपितों का समान उद्देश्य साबित नहीं कर सका अभियोजन

अदालत ने कहा कि पुलिस द्वारा दाखिल किए गए आरोप पत्र में अभियुक्तों को गैर-कानूनी समान उद्देश्य के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।अभियुक्तों के एक दूसरे के साथ या भीड़ के साथ मौजूद होने के संबंध में कोई सुबूत नहीं पेश किए गए। अभियोजन पक्ष ने यह भी दावा नहीं किया है कि अभियुक्तों के पास हथियार, लाठी या पत्थर थे। मिलकर साजिश रचने का नहीं सुबूतप्रथम दृष्टया साथ मिलकर हिंसा की वारदात को अंजाम देने के संबंध में आरोप पत्र में एक भी आक्षेप नहीं है।

रिकार्ड पर कोई ''टूलकिट'' भी नहीं रखा गया है जो अभियोजन पक्ष के इस दावे को बल दे सके कि अभियुक्तों ने मिलकर काम किया था।

घटना के समय प्रभावी नहीं थी धारा-144

कुछ पुलिस गवाहों ने अपने बयान में कहा कि घटना के दौरान सीआरपीसी की धारा 144 प्रभावी थी, जबकि ऐसी कोई अधिसूचना रिकार्ड में नहीं पेश की गई।

इन मामलों में भी साक्ष्य नहीं जुटा सकी पुलिस

  • 15 जून, 2021 : उत्तर पूर्वी दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगे की साजिश रचने के आरोपित पिंजरा तोड़ संगठन की सदस्य देवांगना कलीता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को दिल्ली हाई कोर्ट ने जमानत दे दी।15
  • अप्रैल, 2021 : खजूरी खास इलाके में 24 फरवरी, 2020 को चांद बाग पुलिया के पास प्रदीप की पार्किंग में आग लगाने समेत उपद्रव के मामले में आरोपित पूर्व जेएनयू छात्र उमर खालिद को कड़कड़डूमा कोर्ट ने जमानत दे दी थी।
  • 30 जनवरी, 2023 : 24 फरवरी, 2020 को जाफराबाद इलाके में हेड कांस्टेबल दीपक दहिया पर पिस्तौल तानने के आरोपित शाहरुख पठान को हथियार उपलब्ध कराने के आरोप से कड़कड़डूमा कोर्ट ने मेरठ के बाबू वसीम को बरी कर दिया था।
  • 17 मार्च, 2021 : करावल गर क्षेत्र में 25 फरवरी 2020 को शिव विहार के पास धार्मिक स्थल समेत कई जगह आगजनी की घटनाएं हुई थीं। इस मामले में पुलिस ने कई शिकायतों को साथ जोड़ कर एक प्राथमिकी की थी।बाद में एक शिकायतकर्ता को ही पुलिस ने आरोपित बना दिया।कोर्ट ने पुलिस पर सवाल खड़े किए।
  • 19 अक्टूबर, 2022 : दयालपुर थाना क्षेत्र में 25 फरवरी, 2020 को अरुण माडर्न पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल में आगजनी के मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने दाखिल रिकार्ड में कमियों को लेकर जांच अधिकारी हुकुम सिंह की खिंचाई की थी।
  • 19 अक्टूबर, 2022 : दंगे में 25 फरवरी, 2020 को दयालपुर के शक्ति विहार निवासी जय भगवान घर पर दंगाइयों ने आगजनी की थी। कड़कड़डूमा कोर्ट ने मुख्य आरोपित व आप के पार्षद रहे ताहिर हुसैन समेत 10 आरोपितों को बरी करते हुए कहा था कि पुलिस ने दिमाग का उपयोग किए बगैर यह आरोप लगाया। 
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