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यमुना जल बंटवारा: दिल्ली को अधिक हिस्सा पाने के लिए करना होगा प्रयास, तभी हल होगी राजधानी में पानी की किल्लत

यमुना के जल बंटवारे के लिए 12 फरवरी 1994 को पांच राज्यों के बीच समझौता किया गया था। 30 साल के लिए हुए समझौते की यह अवधि अगले साल खत्म हो रही है। अब नए सिरे से जल बंटवारे को लेकर राज्यों के बीच समझौता होगा। इसमें राजधानी में पानी की किल्लत दूर करने के लिए दिल्ली को अधिक हिस्सा पाने कि लिए प्रयास करना होगा।

By Santosh Kumar Singh Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Mon, 24 Jun 2024 07:56 AM (IST)
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हथनी कुंड बैराज से पानी के बंटवारे के लिए नए सिरे से समझौता होगा।

संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। 29 वर्ष पहले यमुना के जल बंटवारे के लिए पांच राज्यों के बीच समझौता हुआ था। उसके अनुरूप यमुना का जल विभिन्न राज्यों को पेयजल, सिंचाई व अन्य कार्य के लिए मिलता है, परंतु इसे लेकर विवाद बना हुआ है। 30 वर्षों के लिए हुए समझौते की अवधि अगले वर्ष समाप्त हो रही है।

दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बीच लंबे विवाद के बाद 12 फरवरी, 1994 को यमुना के जल बंटवारे को लेकर समझौता हुआ था। अब एक बार फिर से हथनी कुंड बैराज से पानी के बंटवारे के लिए नए सिरे से समझौता होगा। अगले कुछ माह में इसकी प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद है।

अपने हिस्से से उत्तराखंड को पानी देता है उत्तर प्रदेश

दिल्ली के साथ ही राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश अधिक पानी की मांग कर रहे हैं। बताते हैं कि इसके लिए कई राज्यों ने जल शक्ति मंत्रालय को पत्र भी लिखा है। अभी तक पांच राज्यों के बीच पानी का बंटवारा होता है। उत्तर प्रदेश अपने हिस्से से उत्तराखंड को पानी देता है।

हरियाणा के जल एवं सिंचाई राज्य मंत्री डॉ. अभय सिंह यादव का कहना है कि हरियाणा वर्ष 1994 के समझौते की समीक्षा के लिए तैयार है। इससे सही तरह से जल वितरण हो सकेगा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मिल रहा है 1049 क्यूसेक पानी

पर्यावरणविद कमोडोर सुरेश्वर धारी सिन्हा ने वर्ष 1995 में जनहित याचिका दायर कर यमुना में पानी का प्रवाह बनाये रखने की मांग की थी। उनकी याचिका पर 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में पेयजल को प्राथमिकता दी थी। इसके आधार पर दिल्ली को अतिरिक्त पानी उपलब्ध कराने के लिए हरियाणा को निर्देश दिया गया था जिससे कि वजीराबाद और हैदरपुर जलाशय में सामान्य स्तर बना रहे।

इस निर्णय के आधार पर दिल्ली को हरियाणा से 1049 क्यूसेक पानी मिलने लगा। इसके साथ ही नहर में रिसाव से पानी की बर्बादी को रोकने की दिशा में काम शुरू हुआ। 1996 में 102 किमी लंबी पक्की कैरियर लाइन नहर (सीएलसी) के निर्माण पर सहमति बनी।

इसके लिए दिल्ली सरकार ने हरियाणा को लगभग साढ़े चार सौ करोड़ रुपये दिए थे, परंतु सीएलसी बनने के बाद रिसाव से बचने वाले इस पानी पर हरियाणा ने अपना अधिकार बताते हुए देने से इनकार कर दिया। बाद में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर वर्ष 2014 से इस नहर से पूरा पानी दिल्ली को मिलना शुरू हुआ।

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